यूक्रेन की स्पेशल फोर्स ने रूस पर ताबड़तोड़ एयरस्ट्राइक की हैं. यूक्रेन ने रूस के हवाई ठिकानों को निशाना बनाया है और जमीन पर मौजूद 41 रूसी बमवर्षक विमानों को तबाह कर दिया. अनुमान के मुताबिक रूस के 30 फीसदी से ज्यादा बमवर्षक बेड़े टीयू-95, टीयू-22 और ए-50 हवाई रडार को यूक्रेन के ड्रोन अटैक से नुकसान हुआ है.
इसके अलावा यूक्रेन ने 100 से ज्यादा ड्रोन शिपिंग कंटेनर्स से उड़ाए थे, जिन्होंने रूसी एयरबेस के पास से गुजरते वक्त हमलों को अंजाम दिया. रूस ने इन बॉम्बर्स का इस्तेमाल युद्ध के दौरान यूक्रेनी ठिकानों को निशाना बनाने के लिए किया था. रूसी मीडिया ने इन हमलों को 'पर्ल हार्बर' करार दिया है. 1941 में हवाई में अमेरिकी बेड़े पर शाही जापानी नेवी ने हमले किए थे, जिसने अमेरिका को द्वितीय विश्व युद्ध में ला खड़ा किया और इन हमलों को पर्ल हार्बर नाम दिया गया था.
यूक्रेन की तरफ से ये हमले ऐसे वक्त में किए गए हैं, जब वह रूस के साथ जंग के चौथे साल में है. यह वॉर के हाई पॉइंट्स में से एक है और 2 जून को इस्तांबुल में रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता के दूसरे दौर से ठीक पहले इन्हें अंजाम दिया गया है. 16 मई को पहले दौर में दोनों पक्षों के बीच कैदियों की सबसे बड़ी अदला-बदली हुई थी.
अब तक का सबसे बड़ा हमल
आकार, पैमाने और जटिलता के मामले में यूक्रेन ने दुनिया के सबसे बड़े हमलों में से एक को अंजाम दिया है. ओलेन्या, मरमंस्क और इरकुत्स्क और साइबेरिया में दो हवाई ठिकानों पर हमला किया. करीब 6000 किलोमीटर से ज़्यादा दूरी पर और तीन टाइम ज़ोन में ये हमले किए गए. ये हमले एडमिरल विलियम मैकरेवन के स्पेशल ऑपरेशन के सिद्धांत पर खरा उतरते हैं - एक आसान प्लानिंग, जिसे सावधानी से छिपाया गया, बार-बार प्रैक्टिस की गई और जिसे स्पीड के साथ खास मकसद के लिए अंजाम दिया गया. इसने नागरिक रसद को हथियार बनाया, बिना किसी व्यक्ति के पकड़ में आए रिमोट तरीके से हमले किए हैं.
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इजरायल ने दुनिया के दो सबसे जटिल विशेष मिशनों को अंजाम दिया. पहला, जुलाई 1976 में युगांडा के एंटेबे एयरपोर्ट पर बंधकों को छुड़ाना, जहां 100 से ज़्यादा इजराइली सैनिकों ने 106 इजरायली यात्रियों को बचाने के लिए दुश्मन के इलाके में 3000 किलोमीटर से ज़्यादा की उड़ान भरी, आतंकवादियों को मार गिराया और ज़मीन पर युगांडा की वायुसेना के एक-चौथाई हिस्से को तबाह कर दिया. दूसरा 2023 में, मोसाद ने लेबनान में 1000 से ज़्यादा हिज़्बुल्लाह गुर्गों को मारने और घायल करने के लिए पेजर बम का इस्तेमाल किया.
भारत का सबसे बड़ा स्पेशल फोर्स मिशन ऑपरेशन जैकपॉट, जिसे इंडियन नेवी ने प्लान किया और मुक्ति वाहिनी के नौसेना कमांडोज ने 15 अगस्त, 1971 की रात को अंजाम दिया था. इसमें (तत्कालीन) पूर्वी पाकिस्तान में चार पाकिस्तानी बंदरगाहों पर एक साथ हमला किया गया था, जिसमें 22 व्यापारी जहाज डूब गए थे और तबाह हो गए थे. ये हमले 500 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में चार बंदरगाहों- चटगांव, चलना-मोंगला, नारायणगंज और चांदपुर पर किए गए थे.
नाटो के रोल को नकारा
यह तर्क दिया जा सकता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध मास्को और नाटो के बीच एक प्रॉक्सी वॉर है. यूक्रेनी सैनिक पश्चिमी देशों की ओर से सप्लाई किए गए हथियारों और कम्युनिकेशन डिवाइस का इस्तेमाल करके जमीन पर लड़ते हैं. ये रूस के लिए नाज़ुक मुद्दे रहे हैं, जिसके बाद यूरोप में नाटो के ठिकानों और गोला-बारूद के भंडारों पर हमला करने की धमकी दी गई है.
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हालांकि, ऑपरेशन स्पाइडर वेब में यूक्रेन ने इस बात पर जोर दिया है कि हमले नाटो/पश्चिमी देशों के समर्थन के बिना अपने दम पर किए गए थे. राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि नतीजे सिर्फ यूक्रेन को हासिल हुए हैं. ऐसा पश्चिम के संभावित प्रभाव को कम करने के लिए किया गया था. हमले में यूक्रेनी ड्रोन का इस्तेमाल किया गया और यूक्रेनी सरकार ने तुरंत इसकी जिम्मेदारी भी ले ली. लंबी दूरी की टॉरस मिसाइलों जैसे पश्चिमी देशों के किसी भी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया. यूक्रेन ने तस्वीरें जारी करके दिखाया कि उन्होंने खुले में खड़े बमवर्षकों को निशाना बनाने के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हाई-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया.
न्यूक्लियर अटैक करेगा रूस?
रूस ने चार साल के संघर्ष के दौरान कम से कम एक बार परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की धमकी दी है. एक जून का बड़ी हमला मुसीबत है क्योंकि यह रूस के रणनीतिक बमवर्षक बेड़े पर हुआ है. इसका मतलब है कि युद्ध की स्थिति में रूस के पास अब परमाणु हथियार लॉन्च करने के लिए पहले से कम विमान हैं. रूसी अधिकारियों ने एक जून के यूक्रेनी हमलों के लिए जवाबी कार्रवाई की धमकी दी है. हमलों के तुरंत बाद एक जून को रूस ने यूक्रेन पर 400 से ज्यादा ड्रोन दागे. रूस वही कर सकता है जो उसने पहले किया है- ओरेशनिक और हाइपरसोनिक जैसी सशस्त्र मिसाइल को फायर करना, जिन्हें रोका नहीं जा सकता.
अब ड्रोन वॉर का टाइम
साल 2022 से पहले ही, आर्मेनिया-अज़रबैजान संघर्ष में इसके संकेत मिले थे और सऊदी अरब की तेल रिफाइनरियों पर हूती हमले ने साफ किया था कि ड्रोन सभी हमलों में मददगार थे. रूस-यूक्रेन युद्ध ने ड्रोन युद्ध के एक नए युग की शुरुआत की, जहां ड्रोन्स ने मैन्ड फाइटर एयरक्राफ्ट से लेकर छोटे हथियारों तक हर एक प्लेटफॉर्म की जगह ले ली है. रूस और यूक्रेन दोनों के पास ही ड्रोन का बड़ा और अभेद जखीरा है. इसके लिए हज़ारों फर्स्ट पर्सन व्यू (FPV) ड्रोन और वायर-गाइडेड FPV ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है, जिन्हें जैम नहीं किया जा सकता. इससे प्रथम विश्व युद्ध जैसा माहौल पैदा हो गया है, जिसने आर्टिलरी और मशीन गन के आने से युद्ध के मैदान में खुली आवाजाही को अविश्वसनीय रूप से खतरनाक बना दिया था.
भारत के लिए भी बड़ा सबक
भारत ने चार दिन तक ऑपरेशन सिंदूर के तहत किए गए हवाई हमलों के दौरान पाकिस्तान को निशाना बनाने के लिए बड़े पैमाने पर ड्रोन का इस्तेमाल किया और पाकिस्तानी सैन्य ठिकाने तबाह किए. लेकिन पर्ल हार्बर स्टाइल के ये हमले भारतीय ठिकानों के लिए भी बड़ा सबक हैं. 2021 में पाकिस्तानी आतंकियों ने जम्मू में एक भारतीय एयरबेस पर हमला किया. हमले में दो क्वाडकॉप्टर साइज के ड्रोन ने दो विस्फोटक डिवाइस गिराए, जो बिना किसी की जान लिए फट गए. यह एक वॉर्निंग शॉट था क्योंकि हमलावर खुले में खड़े कई हेलीकॉप्टरों को निशाना बनाने से चूक गए थे.
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हमले में इस्तेमाल हुए IED की जांच से पता चला कि इसमें पाकिस्तान का रोल था. ऐसे में पाकिस्तान आगे भी भारतीय एयरबेस और अन्य प्रतिष्ठानों पर बड़े पैमाने पर एक साथ हमले करने के लिए इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल कर सकता है. विमान और हेलीकॉप्टर सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं, जब वे जमीन पर और खुले में खड़े होते हैं. कमर्शियल सैटेलाइट इमेजरी की आसान उपलब्धता का मतलब है कि सभी विमानों, युद्धपोतों और पनडुब्बियों की लोकेशन आसानी से पता लगाई जा सकती है. ऐसे में सभी सैन्य विमानों को ब्लास्ट प्रूफ स्ट्रक्चर से तत्काल ढकने की जरूरत है. सभी हवाई अड्डों को स्वदेशी काउंटर-UAS सिस्टम से सुरक्षित करना चाहिए.