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चीन और सोलोमन द्वीप के बीच हुए सुरक्षा समझौते ने अमेरिका की नींद क्यों उड़ा दी?

चीन और सोलोमन द्वीप के बीच हुए सुरक्षा समझौते ने अमेरिका की नींद उड़ा दी है. इस एक फैसले के बाद से प्रशांत क्षेत्र में सियासी हलचल तेज हो गई है. चीन को लेकर कहा जा रहा है कि वो वहां पर अब अपना सैन्य ठिकाना स्थापित कर सकता है.

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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग
स्टोरी हाइलाइट्स
  • समझौते के बाद प्रशांत क्षेत्र में बढ़ा तनाव
  • अमेरिका बोला- सोलोमन में बढ़ेगी अस्थिरता

चीन और सोलोमन द्वीप के बीच एक अहम सुरक्षा करार हो गया है. प्रशांत क्षेत्र के लिहाज से इस समझौते को निर्णायक माना जा रहा है. ये भी कहा जा रहा है कि ये करार चीन को इस क्षेत्र में जबरदस्त सैन्य फायदा दे जाएगा. चीन और सोलोमन द्वीप जरूर इन बातों को नकार रहे हैं, लेकिन एक्सपर्ट और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जो इनपुट साझा किए जा रहे हैं, उसके मुताबिक ये सुरक्षा करार असल में चीन की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है.

इस समझौते को लेकर बताया गया है कि चीन द्वारा सोलोमन द्वीप में कानून व्यवस्था को कायम करने के लिए पुलिस और दूसरे सैन्य बल भेजा जा सकता है. इसके अलावा समझौते के तहत जरूरत पड़ने पर लंगर डालने के लिए चीन द्वारा अपना युद्धपोत भी वहां पर भेजा जा सकता है. चीन भी इस समझौते को सिर्फ वहां के लोगों की भलाई वाला बता रहा है. उसकी नजरों में इस समझौते की वजह से लोगों की संपत्ति को सुरक्षित रखा जाएगा. 

लेकिन अब इस समझौते ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की नींद उड़ा दी है. उनकी नजरों में चीन ने सिर्फ दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए ये करार किया है, उसका असल मकसद सोलोमन द्वीप में अपना सैन्य ठिकाना बनाना है. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के प्रवक्ता जान किर्बी तो यहां तक कह रहे हैं कि इस करार की वजह से विकास की जगह सोलोमन द्वीप में अस्थिरता बढ़ सकती है.

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अब इस समय दुनिया की चिंता सिर्फ ये सुरक्षा करार नहीं है, बल्कि सोलोमन द्वीप के जो प्रधानमंत्री हैं, उन्हें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भी करीबी माना जाता है. इस समय सोलोमन द्वीप के पीएम मानेश्शे सोगावरे हैं जिनकी कई नीतियां चीन को समर्थन करने वाली दिखाई दे रही हैं. वर्ष 2019 में भी सोलोमन द्वीप समूह ने ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ दिए थे. तब उनकी तरफ से चीन संग रिश्तों को स्थापित किया गया था. उस एक फैसले के बाद से ही प्रशांत क्षेत्र में चीन की नीयत को लेकर सवाल उठने लगे थे. अब जब ये करार हो गया है, कई आशंकाएं घर कर गई हैं.

वैसे इन आशंकाओं को दूर करने के लिए सोलोमन सरकार द्वारा एक बयान जारी किया गया है. उस बयान में कहा गया है कि चीन को इस इलाके में कभी भी सैन्य अड्डा बनाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है. चीन भी ऐसी मंशा नहीं रखता है. सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया है कि सोलोमन द्वीप की विदेश नीति हमेशा से सिर्फ शांति और समृद्धि वाली रही है. उनका कोई दुश्मन नहीं है और सभी से दोस्ती रखी गई है. चीन संग हुए समझौते को भी वहां की सरकार ने संप्रभुता का मुद्दा बता दिया है.

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