
'पहली बार जब मैंने इंसानी मांस खाया तो मेरे शरीर ने उसे बाहर फेंक दिया...लेकिन हमारे लिए इससे भी बुरा समय आ रहा था...', 1972 के एंडीज विमान दुर्घटना के 16 बचने वाले लोगों में एडुआर्डो स्ट्रॉच भी शामिल थे. यह कहानी है समुद्रतल से 12,000 फीट की ऊंचाई पर माइनस 30 डिग्री तापमान में बिना खाना-पानी के 72 दिन मौत से घिरे रहने के बावजूद जिंदगी की जंग लड़ने की.
एंडीज विमान दुर्घटना और उसमें बचे लोगों की जिजीविषा की कहानी पर एक फिल्म बनी है, 'सोसाइटी ऑफ द स्नो', जो हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज की गई है.
13 अक्टूबर 1972 का दिन था जब उरुग्वे एयर फोर्स की फ्लाइट 571 ने क्रू समेत 45 लोगों के साथ उड़ान भरी. मौसम बेहद खराब था और विमान के सामने क्या है, पायलट के लिए देख पाना एकदम मुश्किल था. पायलट ने जहाज की स्थिति का गलत अनुमान लगाया और देखते ही देखते विमान एंडीज पर्वत की चोटी से टकराकर क्रैश हो गया.
इस क्रैश में विमान में सवार 45 लोगों में से 33 लोग जिंदा बचे लेकिन इन जिंदा बचे लोगों के लिए आगे का वक्त मौत से भी बदतर था. रूह कंपा देने वाली ठंड में 33 लोग बिना पर्याप्त कपड़ों के धीरे-धीरे मरने लगे. एंडीज पर्वत पर ठंड इतनी ज्यादा थी कि बर्फ के अलावा वहां कुछ नहीं था.
पहले जूते, कपड़े फिर इंसानी मांस को खाने लगे लोग
कुछ ही दिनों में विमान का बचा खुचा खाना खत्म हो गया और भूखे लोगों ने पेट दर्द रोकने ने लिए अपने जूतों और कपड़ों तक को खाना शुरू कर दिया.
भूख से लोगों की हालत बिगड़ती जा रही थी जिसे देखते हुए बचे लोगों ने आपस में बातचीत की और फैसला किया गया कि किसी तरह खुद को बचाए रखेंगे ताकि उन्हें जिंदा रेस्क्यू किया जा सके... और जिंदा रहने के लिए उनका खाना जरूरी था. एक लंबी बहस के बाद तय हुआ कि वो बर्फ में दबे अपने सहयात्री मनुष्यों का मांस खाएंगे ताकि जीवित रह सकें.
ब्रिटिश अखबार द सन को दिए एक इंटरव्यू में एंडीज विमान दुर्घटना में बचने वाले एडुआर्डो स्ट्रॉच ने अपनी भयावह कहानी बयां की है.
'जब मैंने पहली बार इंसानी मांस खाया...'
76 साल के एडुआर्डो ने बताया कि दुर्घटना में उन्होंने कई करीबी दोस्तों को खो दिया और खुद को बचाने के लिए उन्हें इंसानी मांस खाना पड़ा था.
वो बताते हैं, 'जब मैंने पहली बार इंसानी मांस खाया तो मेरे दिमाग में कोई हलचल नहीं हुई....मैंने इंसानी मांस खाने के लिए खुद को पूरी तरह तैयार किया था लेकिन मेरे शरीर ने उस मांस को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, उसे बाहर फेंक दिया.'
उनका कहना था कि उनकी संस्कृति ऐसी है कि उनका शरीर इंसानी मांस को हजम नहीं कर पाया. वो बताते हैं, 'इंसानी मांस का कोई टेस्ट नहीं था....ऐसा लग रहा था कि मैं चावल खा रहा हूं.'
भूख और ठंड से मरते लोगों को इंसानी मांस खाने के लिए एडुआर्डो के चचेरे भाई फिटो ने तैयार किया था. वो पहला व्यक्ति था जिसने बर्फ में अच्छे से संरक्षित शवों को काटकर उन्हें खाने लायक बनाया. फिटो ने अपने भाई और बाकी लोगों को मांस के छोटे टुकड़े खाने के लिए तैयार किया.
एडुआर्डो बताते हैं, 'मेरे लिए पहली बार इंसानी मांस खाना आसान नहीं था. उसने मेरी मदद की.'
दुर्घटना के 10वें दिन ही विमान का खाना समाप्त हो गया था जिसके बाद लोगों के पास इंसानी मांस खाने के अलावा कोई चारा नहीं था. एडुआर्डो बताते हैं कि वो लोग बस इतना ही मांस खाते थे कि उनकी जान बची रहे.

अभी बाकी था कयामत का वो दिन....
लेकिन इंसानी मांस खाना ही बचे लोगों की असली परीक्षा नहीं थी बल्कि सबसे बड़ी परीक्षा बाकी ही थी.
विमान दुर्घटना में बचे लोग टूटे विमान के अंदर सोकर खुद को ठंड और बर्फीली हवा से बचाते थे. अचानक एक दिन भयंकर बर्फ का तूफान आया और सबकुछ तबाह हो गया. एडुआर्डो जिंदा ही बर्फ में दब गए, उन्हें लगा कि वो मर गए. एडुआर्डो कहते हैं कि मुझे लगा कि मौत ऐसी ही होती है.
वो याद करते हैं, 'मैं बर्फ में दब गया था. मुझे लगा कि मैं मर गया हूं. मैंने मौत को महसूस किया....वो बेहद अजीब, पावरफुल फीलिंग थी. मैं उस वक्त बाहर नहीं निकलना चाहता था...मैं मरना चाहता था. मैं और मुश्किल नहीं झेलना चाहता था लेकिन कुछ ही सेकंड बाद मैंने देखा कि मैं बाहर निकलने और खुद को बचाने के लिए हाथ-पैर मार रहा हूं.'
उनके चचेरे भाई ने बर्फ को खोदकर उन्हें बाहर निकालने में मदद की. बर्फीले तूफान के कारण 8 लोग बर्फ में दबकर मारे गए. मरने वालों में एडुआर्डो के सबसे अच्छे दोस्त मार्सेलो परेज शामिल थे.
'मेरा दोस्त मेरे बगल में बर्फ में दबकर मर गया'
एडुआर्डो याद करते हैं, 'मार्सेलो मेरा सबसे करीबी दोस्त था लेकिन वो मेरे बगल में ही बर्फ में दबकर मर गया. जब मुझे समझ आया कि मार्सेलो मर चुका है तो जैसे मुझे इलेक्ट्रिक शॉक लगा. मैंने उसे बचाने की कोशिश की...उसके चेहरे से बर्फ हटाया लेकिन वो मर चुका था.'
एडुआर्डो अपने दोस्त की मौत का गम भी नहीं मना सके थे. अगर वो अपने दोस्त के गम में डिप्रेशन में चले जाते तो इससे उनकी जान को खतरा था.
वो बताते हैं, 'हमारा दिमाग ऐसे हालात में जिस तरह काम करता है, देखना दिलचस्प था...हम उदास नहीं हुए, रोए नहीं. हम उदास होकर अपनी एनर्जी नहीं बर्बाद कर सकते थे क्योंकि इससे हमारी जान जा सकती थी.'
वो कहते हैं कि 72 दिनों में हमारी सबसे बड़ी लड़ाई पॉजिटिव रहने को लेकर थी जिस कारण हम जीवित बच पाए. एडुआर्डो को यकीन था कि एक न एक दिन उन लोगों को रेस्क्यू कर लिया जाएगा.

11वें दिन ही बंद हो गया था रेस्क्यू अभियान
रेस्क्यू को लेकर बचे लोगों की उम्मीदें भी धूमिल हो गई थीं क्योंकि क्रैश के ग्यारहवें दिन ही उन लोगों ने रेडियो पर सुना कि खोज और बचाव अभियान को बंद कर दिया गया है. दुनिया ने मान लिया था कि क्रैश में कोई नहीं बचा होगा और विमान के मलबे को सूनसान बर्फ के पहाड़ में देख पाना असंभव जैसा था.
एडुआर्डो बताते हैं, 'हम हर वक्त अपने चाहने वालों, अपने परिवार वालों के बारे में सोच रहे थे. प्यार ही था जिसने हमें इतने लंबे समय तक जिंदा रखा और हमें बचा लिया.'
बर्फ के बीच फंसे लोगों का शरीर पानी के बिना अकड़ गया था. बर्फ को पानी में बदलना बेहद मुश्किल था. लेकिन एडुआर्डो का भाई फिटो बेहद तेज दिमाग वाला था. वो एक मेटल ट्रे में बर्फ को रखकर दिन में बर्फ पिघलाकर पानी बनाया करता जिससे लोग अपनी प्यास बुझाते.
धीरे-धीरे मरने लगे लोग तब...
महीनों इंतजार करने के बाद भी जब कोई रेस्क्यू के लिए नहीं आया और बीमार लोग धीरे-धीरे मरने लगे तब बचे लोगों ने खुद ही मदद ढूंढने की सोची. उनके पास पहाड़ चढ़ने के लिए कोई उपकरण नहीं था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. नैंडो पर्राडो और रोबर्टो कनेस्सा ने 12 दिसंबर को फैसला किया कि वो ट्रेक करेंगे, जबकि उनके पास पर्याप्त गर्म कपड़े नहीं थे और न ही उन्हें ट्रेकिंग का अनुभव था.
एडुआर्डो ट्रेक के लिए नहीं जा सके क्योंकि उन्हें ऊंचाई से समस्या थी. दोनों लोग 10 दिन के ट्रेक के बाद आखिरकार मदद मांगने में कामयाब हुए और लोगों को एंडीज पर्वत से लाने के लिए हेलिकॉप्टर रवाना कर दिए गए.

रेस्क्यू टीम को देखना एडुआर्डो के लिए अपनी जिंदगी का सबसे खुशनुमा लम्हा था. वो बताते है, 'मैं मुस्कुराए जा रहा था....वो मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत लम्हा था. वो बहुत गहरी खुशी थी, हमें बचा लिया गया. हेलिकॉप्टर की वो आवाज इतनी कमाल थी...मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत संगीत.'
रेस्क्यू हेलिकॉप्टर 22 दिसंबर को क्रैश साइट पर पहुंचा लेकिन उस दिन केवल 6 लोगों को ही एयरलिफ्ट किया जा सका. खराब मौसम के कारण बाकी लोगों को अगले दिन रेस्क्यू किया गया.