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'अमीरों के लिए टैक्स छूट, गरीबों पर बोझ', एक्सपर्ट्स ने की अमेरिकी टैरिफ की आलोचना

जियोपॉलिटिकल इकोनॉमी रिसर्च ग्रुप की निदेशक राधिका देसाई ने चेतावनी दी कि इस नीति का बोझ आम अमेरिकियों पर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि ये टैरिफ दरअसल बहाना बनेंगे अमीरों को टैक्स में छूट देने का. इसका पहला और सबसे स्पष्ट असर ये होगा कि मेहनतकश आम अमेरिकी इसका खामियाजा भुगतेंगे, जबकि एक छोटा वर्ग इसका लाभ उठाएगा.

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डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में रेसिप्रोकल टैरिफ का ऐलान किया था
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में रेसिप्रोकल टैरिफ का ऐलान किया था

अमेरिका द्वारा सभी व्यापारिक साझेदारों से आयातित वस्तुओं पर भारी भरकम रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने के फैसले पर व्यापार और आर्थिक विशेषज्ञों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये कदम अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया को भड़का सकता है. साथ ही अमेरिका में घरेलू असमानता को भी बढ़ा सकता है.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक कार्यकारी आदेश पर सिग्नेचर करते हुए सभी आयातों पर 10 प्रतिशत का न्यूनतम बेसलाइन टैरिफ लागू कर दिया है, जबकि कुछ देशों पर इससे भी ज्यादा दरें लागू की गई हैं. ट्रंप प्रशासन का कहना है कि ये फैसला अमेरिकी व्यापार को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए लिया गया है, लेकिन विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं.

'दुनिया के अन्य देश अमेरिकी व्यापार से दूरी बना लेंगे'

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक जियोपॉलिटिकल इकोनॉमी रिसर्च ग्रुप की निदेशक राधिका देसाई ने चेतावनी दी कि इस नीति का बोझ आम अमेरिकियों पर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि ये टैरिफ दरअसल बहाना बनेंगे अमीरों को टैक्स में छूट देने का. इसका पहला और सबसे स्पष्ट असर ये होगा कि मेहनतकश आम अमेरिकी इसका खामियाजा भुगतेंगे, जबकि एक छोटा वर्ग इसका लाभ उठाएगा. उन्होंने कहा कि इस नीति का दीर्घकालिक असर यह हो सकता है कि दुनिया के अन्य देश अमेरिकी व्यापार से दूरी बनाना शुरू कर देंगे.

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'एशियाई देशों को जोड़ सकता है यह मुद्दा'

जापान मैक्रो एडवाइजर्स Inc के मैनेजिंग डायरेक्टर और मुख्य अर्थशास्त्री टाकुजी ओकुबो ने भी इस नीति की आर्थिक और रणनीतिक आलोचना की. ओकुबो ने कहा कि आर्थिक दृष्टिकोण से यह नीति स्पष्ट रूप से नुकसानदेह है, लेकिन यह एक ऐसी चुनौती है जो जापान, चीन, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ जैसे देशों को एकजुट कर सकती है. उन्होंने ये भी कहा कि जियो-पॉलिटिकल लिहाज़ से यह नीति एशिया में तनाव कम करने में मददगार हो सकती है, क्योंकि इससे संयुक्त हितों पर संवाद की संभावना बढ़ेगी.

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