अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि चीन द्वारा भारत-चीन सीमा पर उठाए गए कुछ कदम 'उकसावे' वाले रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति के उप सहायक और इंडो-पैसिफिक के समन्वयक कर्ट कैंपबेल ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका भारत के साथ अपने संबंधों को और गहरा करना चाहता है. उन्होंने वाशिंगटन स्थित एक थिंक-टैंक से कहा कि भारत संयुक्त राज्य अमेरिका का दोस्त नहीं है और न ही कभी होगा लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भारत और अमेरिकी करीबी सहयोगी नहीं बन सकते.
थिंक टैंक - सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (CNAS) ने गुरुवार को भारत-चीन सीमा तनाव और इंडो पेसिफिक में अमेरिका की रणनीति पर एक विस्तृत रिपोर्ट, 'इंडिया-चाइना बॉर्डर टेंशन एंड यूएस स्ट्रैटेजी इन द इंडो-पैसिफिक' प्रकाशित की.
इस मौके पर CNAS से बात करते हुए उन्होंने कहा, 'हम दोस्त नहीं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम करीबी सहयोगी नहीं हो सकते और बहुत सी चीजें साझा नहीं कर सकते. इस तरह हमें उस भूमिका को समझने की जरूरत है जो भारत वैश्विक मंच पर एक महान देश के रूप में निभाएगा.'
उन्होंने आगे कहा, 'हम इसे प्रोत्साहित करना चाहते हैं और इसका समर्थन करना चाहते हैं. हम भारत के साथ अपने संबंध को गहरा करना चाहते हैं, जो पहले से ही बहुत मजबूत है. भारत और अमेरिका के लोगों के बीच जितना गहरा संबंध है, शायद उतना गहरा संबंध हम किसी और देश के नागरिक से साझा नहीं करते.'
भारत के साथ रिश्ते अमेरिका के लिए सबसे महत्वपूर्ण
कैंपबेल ने कहा कि भारत-अमेरिका संबंध 21वीं सदी में अमेरिका के लिए सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध है. उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि यह बात तो तय है कि हम एक साथ और अधिक निकटता से काम करने वाले हैं. मैं मानता हूं कि हमारे लोगों का संबंध मजबूत है...हम एक ऐसे जीवंत रिश्ते में हैं जो गहरा, समृद्ध और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होता जा रहा है.'
अमेरिकी थिंक टैंक की रिपोर्ट
अमेरिका के दो पूर्व अधिकारियों ने भारत-चीन सीमा तनाव और इंडो पेसिफिक में अमेरिका की रणनीति पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है जिसमें सुझाव दिया गया है कि अगर चीन के साथ संघर्ष शुरू होता है तो अमेरिका को भारत का पूर्ण समर्थन करना चाहिए.
अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका को संयुक्त राष्ट्र सहित सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन के अतिक्रमण के खिलाफ बोलने की जरूरत है. भारत को परिष्कृत सैन्य प्रौद्योगिकी प्रदान करने, सैन्य उपकरणों का मिलकर उत्पादन और विकास शुरू करने, सैन्य और नौसैनिक क्षमता को मजबूत करने में अमेरिका को भारत की मदद करने की जरूरत है.
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि अमेरिका को चीन के साथ भारत के क्षेत्रीय विवादों और चीन की मुखरता के खिलाफ अन्य सहयोगियों और साझेदारों के साथ मिलकर काम करना चाहिए. इसमें तर्क दिया गया कि 2020 में भारत-चीन के सैनिकों के बीच सीमा पर जो झड़प हुई, उससे चीन एक मजबूत स्थिति में आ गया है जबकि भारत बचाव की मुद्रा में है.
अमेरिकी रिपोर्ट को लिसा कर्टिस और डेरेक ग्रॉसमैन ने मिलकर तैयार किया है. लिसा डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार के समय राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में दक्षिण एशिया के लिए वरिष्ठ निदेशक के रूप में कार्यरत थीं. भारत-चीन झड़प के समय उन्होंने भारत से साथ काम किया. वहीं, डेरेक ग्रॉसमैन रैंड कॉर्पोरेशन के एक वरिष्ठ विश्लेषक हैं और उन्होंने अमेरिका की सेंट्रल खुफिया एजेंसियों, राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी और रक्षा खुफिया एजेंसी में काम किया है.
'भारत को खुफिया जानकारी प्रदान करे अमेरिका'
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रिपोर्ट में अमेरिकी सरकार से की गई सिफारिशों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी योजनाओं और इरादों का आकलन करने के लिए भारत के साथ संयुक्त खुफिया समीक्षा और किसी संघर्ष की स्थिति में आकस्मिक प्लान को बढ़ाना शामिल है. कहा गया है कि अमेरिका को एक अनौपचारिक संगठन की स्थापना या समर्थन करना चाहिए जो नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना की स्थिति का पता लगाने के लिए सेटैलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल करे.
32 पन्नों की रिपोर्ट में भारत-चीन सीमा विवाद के इतिहास, 2020 के सीमा गतिरोध, चीन द्वारा पिछले समझौतों का बार-बार उल्लंघन और सीमा पर दोनों देशों के सैन्य संतुलन के बारे में एक सर्वेक्षण पेश किया गया है.
भारत-चीन संघर्ष में पाकिस्तान की भूमिका का जिक्र
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान को सीधे अथवा उसके भागीदारों से माध्यम से यह संकेत दिया जाना चाहिए कि वो भारत-चीन के बीच किसी भी संघर्ष के दौरान तटस्थ रहे.
इस बात का जिक्र किया गया है कि अगर भारत-चीन के बीच किसी तरह का गतिरोध होता है तो उसमें पाकिस्तान की संभावित भूमिका क्या रहेगी. इस बात की भी विस्तृत चर्चा है कि भारत अमेरिका से क्या चाहता है और अमेरिका समर्थन के मामले में भारत को क्या पेशकश कर सकता है.
रिपोर्ट के विमोचन कार्यक्रम में अमेरिकी सीनेटर जेफ मर्कले ने कहा कि चीन नियमित रूप से यह टेस्ट करने की कोशिश कर रहा है कि वो नियंत्रण रेखा को धकेलकर कितनी दूर तक जा सकता है. जेफ ने पिछले महीने सीनेट में चीनी आक्रमण की निंदा करने वाले प्रस्ताव को को-स्पॉन्सर किया था और भारत के प्रतिक्रिया की सराहना की थी.
अपने भाषण के दौरान उन्होंने दिसंबर 2022 में अरुणाचल प्रदेश में हुई झड़प का जिक्र किया और कहा कि अमेरिका द्वारा प्रदान की गई खुफिया जानकारी के आधार पर भारत ने चीन को पीछे धकेल दिया. पिछले हफ्ते ही एक अमेरिकी रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी जिसमें यह खुलासा हुआ था कि भारत-चीन संघर्ष के दौरान अमेरिका भारत को खुफिया सहयोग प्रदान कर रहा था.
उन्होंने कहा कि वो चाहते हैं, भारत यूक्रेन में रूसी आक्रामकता के खिलाफ अधिक मुखर रूप से बोलें और रूस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में शामिल हों. जेफ ने साथ ही चीन का मुकाबला करने के लिए भारत को अपना समर्थन देने की बात को दोहराया.
चीन को लेकर रिपोर्ट में क्या लिखा गया?
रिपोर्ट में इस बात को स्वीकार किया गया है कि चीन ने 2020 में भारत के साथ जो किया, उसे लेकर कई तरह की थ्योरी हैं लेकिन इसका कोई ठोक स्पष्टीकरण नहीं है. लेकिन पिछले डेढ़ दशक में भारत के खिलाफ चीन की बढ़ती आक्रामकता उसकी बढ़ती आर्थिक और सैन्य ताकत का नतीजा है.
कहा गया है कि सीमा पर चीन का कार्रवाइयों और फिर भारत की प्रतिक्रियाओं ने मौजूदा सीमा समझौतों को अप्रासंगिक बना दिया है. रिपोर्ट में नियंत्रण रेखा के पास चीन की सैन्य गतिविधियों, भारत से लगी सीमा के लिए पश्चिमी थिएटर कमांड की स्थापना, नियंत्रण रेखा पर सैना की संख्या को बढ़ाना, वायु और मिसाइल रक्षा प्रणालियों की मजबूती, संवेदनशील क्षेत्रों में सड़कों सहित बुनियादी ढांचे का बड़े पैमाने पर विस्तार को डॉक्यूमेंट किया गया है.
अमेरिकी अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में नियंत्रण रेखा पर भारत की स्थिति का भी जिक्र किया है, लेकिन उनका कहना है कि चीन भारत से अधिक मजबूत स्थिति में है.
रिपोर्ट में कहा गया, 'बीजिंग ने अक्साई चीन के भीतर अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाकर एक तरीके से अपना क्षेत्रीय विस्तार किया है. 2020 में सीमा पर जहां छोटी चीनी चौकियां मौजूद थीं, उन्हें पहले अस्थायी तंबू शिविरों में बदल दिया गया और धीरे-धीरे करने उन्हें स्थायी शिविरों में तब्दील कर दिया गया. डेपसांग में 2020 से पहले चीन सिर्फ नजर बनाए रखता था लेकिन अब वहां उसने टैंक और आर्टिलरी सिस्टम के अलावा सेना के शिविर और गोला बारूद का भंडारण कर लिया है.'
रिपोर्ट में कहा गया है कि गलवान और हॉट स्प्रिंग्स जैसे क्षेत्रों में भी, जहां भारत-चीन सैनिकों के बीच झड़प हुई है, वहां चीन ने आधुनिक सड़कों से जुड़े बड़े सैन्य ठिकाने स्थापित कर लिए हैं. चीन ने न केवल अक्साई चीन सीमा के साथ बल्कि तिब्बती पठार के पार भी अपनी एयर पोजर सुविधाओं और लॉजिस्टिक नोड्स का विस्तार किया है.
रिपोर्ट में कहा गया, 'चीन ने भारत के साथ अपनी विवादित सीमा पर खुद को मजबूत किया है, जबकि भारत अब अपने क्षेत्रीय दावों को फिर से लागू करने और लद्दाख में अपनी जमीन के और अधिक चीनी कब्जे में जाने से रोकने के लिए रक्षात्मक स्थिति बनाए रखी है. भारत पूर्वी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश में भी चीनी खतरे का सामना कर रहा है.'
कैंपबेल कहते हैं, 'चीन ने भारत से लगी 5,000 मील की इस विशाल सीमा को लेकर जो कुछ कदम उठाए हैं, वे भारत के दोस्तों और भागीदारों के लिए उत्तेजत और चिंता पैदा करने वाले हैं.'
विदेश मंत्रालय ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में चीन को लेकर क्या कहा?
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसी महीने जारी 2022 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट मे कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को बदलने की चीन की एकतरफा कोशिशों ने क्षेत्र को अस्थिर किया है.
रिपोर्ट में कहा गया, 'चीन के साथ भारत एक जटिल रिश्ता साझा करता है. अप्रैल-मई 2020 से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति को एकतरफा बदलने के चीनी प्रयासों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति को भंग किया है और समग्र संबंधों को प्रभावित किया.'
रिपोर्ट में विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने चीनी विदेश मंत्रालय से कहा है कि संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सीमा पर शांति की बहाली की जरूरत होगी.
विदेश मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है, 'चीन के साथ भारत के रिश्ते जटिल हैं. दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए हैं कि सीमा विवाद का अंतिम समाधान होने तक, सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखना द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक जरूरी आधार है.'
2020 के संघर्ष के बाद भारत चीन को लेकर अधिक सजग
अमेरिकी थिंक टैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 के संघर्ष के बाद भारत क्वाड के माध्यम से द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों तरह के सहयोग के लिए और अधिक तत्पर हो गया है. चीन के साथ भारत मजबूत आर्थिक संबंध और सीमा पर सैन्य तनाव को कम करते हुए राजनयिक संबंध रखना चाहता था लेकिन अब ऐसा नहीं है.
चीन के साथ सीमा पर संघर्ष की घटना ने चीन की चुनौतियों को लेकर भारत के साथ-साथ अमेरिकी नजरिए को भी बदला है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि संघर्ष की स्थिति में भारत अमेरिका से खुफिया जानकारी और सर्दियों की मदद की उम्मीद करेगा. साथ ही वो अमेरिका से संयुक्त अभ्यास, आपात स्थितियों में वरिष्ठ सैन्य और रक्षा अधिकारियों के परामर्श और भारतीय सीमा के दावों की रक्षा करने की जरूरत को क्वाड बयानों में शामिल करने का अनुरोध भी कर सकता है.
भारत अमेरिकी मदद पर निर्भर होने की धारणा को पसंद करेगा?
साथ ही, भारत अपने लोगों को यह बताना चाहता है कि वह युद्ध की स्थिति में भी सैन्य अभियानों को सक्षम और सफलतापूर्वक तरीके से संभाल सकता है. भारत ऐसी स्थिति में अमेरिका पर निर्भर होने की आम धारणा से भी बचने की कोशिश करेगा.
रिपोर्ट में कहा गया, 'जैसा कि उनका देश एक तेजी से उभरती हुई शक्ति बन गया है, भारतीय अधिकारी चीन के साथ सीमा विवाद के निपटान के लिए अमेरिका पर निर्भर होने की धारणा से बचना पसंद करेंगे.'
इन सब बातों से स्पष्ट होता है कि भारत की मदद करने के लिए अमेरिकी नीति निर्माता मुश्किल स्थिति में हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, 'अमेरिका के पास बहुत कुछ करने के लिए नहीं है. फिर भी इसमें कोई शक नहीं है कि इस मुद्दे पर अमेरिकी नीति मायने रखती है, और यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए तो भविष्य में चीन की जमीन हथियाने से रोकने में मदद मिल सकती है.
अमेरिका को अब भारत-पाक के बजाए भारत-चीन पर ध्यान देने की जरूरत
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल तक, दक्षिण एशिया पर नजर रखने वाले अमेरिकी अधिकारियों ने भारत-पाकिस्तान के बीच संभावित संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया था, लेकिन यह देखते हुए कि दोनों देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं, अब उन्हें भारत-प्रशांत क्षेत्र में संभावित भारत-चीन सैन्य संकट पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है.
कर्टिस और ग्रॉसमैन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत-चीन सीमा शत्रुता की बढ़ती संभावना का अमेरिका की इंडो पेसिफिक रणनीति पर असर पड़ा है.
रिपोर्ट बताती है कि चीनी के अतिक्रमण के खिलाफ भारत को अमेरिका का समर्थन अन्य एशियाई देशों को एक संकेत भेजने में भी मदद करेगा कि चीन को खुश करने के बजाय अमेरिका के साथ सुरक्षा संबंधों को मजबूत करना संप्रभुता को सुरक्षित करने का एक अधिक प्रभावी तरीका है.
भविष्य को लेकर सकारात्मक नहीं है अमेरिकी रिपोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा हालात को देखते हुए भविष्य में भारत-चीन के बेहतर संबंधों के कयास नहीं लगाए जा सकते. विवादित सीमाओं के राजनीतिक समाधान के लिए बातचीत की संभावना भी बेहद कम है.
रिपोर्ट में सीमा विवाद के समाधान के लिए भारत के धैर्य, शांति और कूटनीतिक समाधान खोजने के प्रयासों की सराहना की गई है, जबकि बुनियादी ढांचे के विकास, सैन्य तैनाती और क्षेत्र में अतिक्रमण के लिए चीन पर निशाना साधा गया है.
लोगों से लोगों के जुड़ाव पर अमेरिका कर रहा काम
कैंपबेल ने कहा कि भारत मदद करने के लिए हर क्षेत्र में उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना जरूरी है. उन्होंने कहा कि इसके लिए अमेरिका अपने लोगों को भारतीय लोगों के साथ जोड़ने पर जोर दे रहा है.
उन्होंने कहा, 'हम रक्षा से संबंधित मुद्दों पर अधिक काम कर रहे हैं और इसके लिए हमारे दोनों देशों के लोग जुड़ रहे हैं. हम चाहते हैं कि हमारे विश्वविद्यालयों में अधिक भारतीय छात्र आकर पढ़ें और हम यह भी चाहते हैं कि भारतीय विश्वविद्यालयों में अधिक अमेरिकी छात्र पढ़ें.'
वो आगे कहते हैं, 'हम शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य हर क्षेत्र में दोनों देशों के लोगों को जोड़ना चाहते हैं. हमने अंतरिक्ष में एक साथ काम करने के प्रयासों की घोषणा की है. इसलिए हमारा एजेंडा असाधारण रूप से समृद्ध है. हमारी महत्वाकांक्षाएं बहुत अधिक हैं.'