
दिल्ली की शाम हमेशा की तरह चहल-पहल भरी थी. लाल किले के आसपास पर्यटकों की भीड़ थी, दुकानों के बाहर लोगों की आवाजाही जारी थी. लेकिन 10 नवंबर की शाम 6 बजकर 52 मिनट पर आई एक तेज धमाके की आवाज ने सब कुछ बदल दिया. कुछ ही पल में बाजार की रौनक चीख-पुकार में बदल गई, हवा में बारूद की गंध घुल गई और सड़कें खून से लाल हो गईं. इस एक पल ने कई घरों के चिराग बुझा दिए, मांओं की गोद उजाड़ दी, और कुछ परिवारों को हमेशा के लिए अधूरा कर दिया.
अमर कटारिया तो दवा की थैली के साथ लौट रहे थे
श्री निवासपुरी, दिल्ली के रहने वाले अमर कटारिया के घर आज मातम पसरा हुआ है. 34 वर्षीय अमर की हर सुबह उम्मीदों से भरी होती थी. भागीरथ पैलेस में वह एक होलसेल दवा की दुकान पर काम करते थे. जहां से रोजमर्रा का कारोबार चलता था. शनिवार को भी वो हमेशा की तरह दुकान से घर लौट रहे थे, हाथ में दवाइयों की थैली थी और मन में भविष्य की योजनाएं चल रही थी. लेकिन उन्हें क्या पता था कि घर पहुंचने से पहले ही किस्मत की डोर टूट जाएगी. लाल किले के पास जैसे ही कार में धमाका हुआ उसी पल में सब खत्म हो गया.
अमर के परिवार के लोग अभी तक यकीन नहीं कर पा रहे कि वह अब नहीं रहे. घर वाले बार-बार बेहोश हो जा रही हैं. मां की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे. पड़ोसी बताते हैं कि अमर न सिर्फ अपने घर के बल्कि पूरे मोहल्ले के लिए मददगार थे. किसी की दवा खत्म हो जाए, किसी का बच्चा बीमार हो, सबसे पहले अमर पहुंचते थे. वह इकलौते कमाने वाले थे.

अशोक कुमार: दो परिवारों का सहारा, अब मां की दुनिया सूनी
अमरोहा जिले के हसनपुर क्षेत्र के मंगरौला गांव के 34 वर्षीय अशोक कुमार, जो दिल्ली में बस कंडक्टर का काम करते थे, इस हादसे में अपनी जान गंवा बैठे. अशोक दिल्ली में किराए के मकान में पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते थे. पिता का देहांत कई साल पहले हो चुका था, और मां गांव में अकेली थीं. अशोक हर महीने मां के लिए पैसे भेजते थे. अब वही मां, जिन्हें अभी तक बेटे की मौत की खबर नहीं दी गई है, हर किसी से पूछ रही हैं मेरा बेटा कब आएगा ? अशोक न सिर्फ अपने घर बल्कि अपनी बहन और उनके परिवार की मदद भी करते थे. परिवार के लोगों का कहना है, वो दो परिवारों का सहारा थे. अब मां के आंसू थम नहीं रहे. गांव में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी पहुंच चुके हैं, लेकिन किसी के पास उस मां के लिए जवाब नहीं है, जिसने अपने इकलौते बेटे को खो दिया है.

शिवा जायसवाल: कैंसर से जूझती मां के बेटे पर टूटा कहर
यूपी के देवरिया जिले के भलुअनी बाजार में आज हर कोई एक ही नाम ले रहा है शिवा जायसवाल. 30 साल के करीब उम्र का शिवा दिल्ली में व्यापार के सिलसिले में गया था. रेडीमेड कपड़ों की दुकान चलाने वाला शिवा हर दो-तीन महीने में दिल्ली जाकर माल खरीदता था. 9 नवंबर की रात वो बस से दिल्ली के लिए रवाना हुआ था. 10 नवंबर की रात जब टीवी चैनलों पर दिल्ली ब्लास्ट की खबर चली, तभी परिवार के होश उड़ गए. कुछ घंटों बाद दिल्ली पुलिस ने पुष्टि की कि घायल सूची में देवरिया के शिवा जायसवाल का नाम भी है. घर में मातम का माहौल है. पिता का साया पहले ही उठ चुका है और मां माया जायसवाल कैंसर से जूझ रही हैं. वो भाजपा के स्थानीय नेता भी हैं. बेटे के घायल होने की खबर सुनते ही वो बेहोश हो गईं. परिवार के लोग अब दिल्ली के अस्पताल में पहुंच चुके हैं. शिवा की हालत स्थिर बताई जा रही है, लेकिन परिवार को हर बीतते पल का डर सता रहा है. बहन रंजना कहती हैं, भैया ने फोन पर कहा था कि माल लेकर दो दिन में लौट आऊंगा. अब वो अस्पताल में है, मां पहले से बीमार हैं, हम क्या करेंगे? देवरिया के इस घर में आज सन्नाटा है, बस हर दीवार जैसे शिवा को पुकार रही हो.
वो नाम जो घायल सूची में हैं, लेकिन जिनकी कहानी अब तक अधूरी है
दिल्ली के अस्पतालों में भर्ती घायलों की सूची लंबी है. शायना परवीन, मोहम्मद फारुख, विनय पाठक, मोहम्मद सफवान, जोगिंदर, गीता देवी, तिलक राज, मोहम्मद सहनवाज़, किशोरी लाल... हर नाम के पीछे एक परिवार है, जो अस्पताल के बाहर बेचैन खड़ा है, किसी डॉक्टर की जुबान से 'अब खतरे से बाहर हैं' सुनने की उम्मीद में. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल और दिल्ली. हर राज्य से लोग इस ब्लास्ट में प्रभावित हुए हैं. दिल्ली के बड़े अस्पतालों में घायलों का इलाज चल रहा है. कई गंभीर रूप से झुलसे हुए हैं, जिनकी पहचान तक मुश्किल हो रही है.
दिल्ली पुलिस की रडार पर 13 संदिग्ध
सूत्रों का कहना है कि जांच एजेंसियों ने 13 लोगों को शक के दायरे में लिया है. इनसे पूछताछ चल रही है. साथ ही, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने आमिर नाम के एक व्यक्ति को हिरासत में लिया है, जिससे लंबी पूछताछ हो रही है. एजेंसियों को शक है कि यह व्यक्ति ब्लास्ट से पहले दिल्ली में मौजूद था और कार के संपर्क में आया था.