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करपात्री जी महाराज से योगी आदित्यनाथ और आचार्य प्रमोद तक... यूपी की सियासत में दम दिखाने वाले 10 संत

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ खुद नाथ संप्रदाय के संत हैं. वहीं अब चर्चा आचार्य प्रमोद कृष्णम को लेकर भी तेज है. यूपी संत सियासत में केवल यही दो नाम नहीं हैं. आजादी के बाद से ही कई संतों ने यूपी की सियासत में दमखम दिखाया है.

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योगी आदित्यनाथ और आचार्य प्रमोद कृष्णम
योगी आदित्यनाथ और आचार्य प्रमोद कृष्णम

यूपी की सियासत और संत समाज से आने वाले नेताओं का नाता पुराना है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद भी नाथ संप्रदाय से आते हैं और गोरखपुर के गोरक्ष पीठ के महंत हैं. 1998 से 2017 तक गोरखपुर से सांसद रहे योगी आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे में सरकार की कमान संभाल रहे हैं. वहीं, अब कल्कि धाम के महंत आचार्य प्रमोद कृष्णम भी चर्चा में हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कल्कि धाम मंदिर का शिलान्यास किया. 2019 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे आचार्य प्रमोद कृष्णम को देश की सबसे पुरानी पार्टी पहले ही छह साल के लिए निष्कासित कर चुकी है. आचार्य प्रमोद की अब एनडीए के साथ बढ़ती नजदीकी को उनकी नई पारी की ओर संकेत माना जा रहा है. लेकिन यूपी की 'संत सियासत' में केवल यही दो नाम नहीं हैं. आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव से लेकर अब तक, कई संतों ने सियासत में दमखम दिखाया है. आइए, नजर डालते हैं ऐसे ही कुछ संतों पर...

1- स्वामी करपात्री जी महाराज

यूपी में संतों की सियासत का आधार तैयार किया था काशी यानी वाराणसी से संबंध रखने वाले दशनामी संत स्वामी करपात्री जी महाराज ने. करपात्री जी महाराज ने साल 1947 में देश को आजादी मिलने के ठीक एक साल बाद ही 1948 में अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई जिसे नाम दिया था- अखिल भारतीय रामराज्य परिषद. करपात्री जी महाराज की पार्टी को 1952 के पहले आम चुनाव में तीन सीटों पर जीत मिली और 1962 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी दो सीटें जीतने में सफल रही.

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करपात्री जी महाराज (फाइल फोटोः सोशल मीडिया)
करपात्री जी महाराज (फाइल फोटोः सोशल मीडिया)

साल 1952 में ही उत्तर प्रदेश और बिहार के विधानसभा चुनाव में परिषद को एक-एक सीट पर जीत हासिल हुई लेकिन इसे सियासी नक्शे पर स्थापित किया 1957 के राजस्थान चुनाव ने. राजस्थान में करपात्री जी की पार्टी को 1957 के चुनाव में 17 सीटों पर जीत मिली थी. करपात्री जी महाराज ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के हिंदू कोड और गोरक्षा को लेकर बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया.

गोरक्षा कानून की मांग को लेकर करपात्री जी महाराज ने इंदिरा सरकार के समय बड़ा आंदोलन खड़ा किया था. वह अपनी पार्टी के स्टार प्रचारक थे लेकिन खुद चुनाव मैदान में उतरने से परहेज किया. उनका भाषण सुनने के लिए रामराज्य परिषद की रैलियों में भारी भीड़ भी जुटती थी. साल 1971 में इस पार्टी का भारतीय जनसंघ में विलय हो गया था.

2- स्वामी रामानंद शास्त्री

संतों की चुनावी राजनीति में एंट्री भी आजादी के बाद शुरुआती दौर में ही हो गई थी. स्वामी रामानंद शास्त्री साल 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. स्वामी रामानंद 1957 और 1962 में भी संसद पहुंचे थे.

3- स्वामी ब्रह्मानंद

कांग्रेस ने 1971 के लोकसभा चुनाव में ही स्वामी ब्रह्मानंद को हमीरपुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था. स्वामी ब्रह्मानंद भी 1971 का चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे लेकिन आपातकाल विरोधी लहर में 1977 का चुनाव हार गए.

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4- महंत दिग्विजयनाथ

गोरक्ष पीठ के महंत दिग्विजयनाथ भी आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव से ही चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे. महंत दिग्विजयनाथ 1967 में उत्तर प्रदेश की गोरखपुर लोकसभा सीट से निर्दल उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल कर संसद पहुंचने में सफल रहे.

5- महंत अवैद्यनाथ

महंत अवैद्यनाथ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के गुरु भी हैं. गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ साल 1962 में पहली बार गोरखपुर की मानीराम विधानसभा सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे और 1977 तक लगातार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. 1980 में महंत अवैद्यनाथ ने मीनाक्षीपुरम में हुए धर्म परिवर्तन से विचलित होकर राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया. महंत अवैद्यनाथ ने राजनीति से संन्यास तोड़कर साल 1989 के आम चुनाव से चुनावी राजनीति में वापसी की और गोरखपुर लोकसभा सीट से लगातार तीन बार सांसद निर्वाचित हुए. महंत अवैद्यनाथ के बाद गोरखपुर सीट से उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ 2014 तक सांसद रहे.

6- स्वामी चिन्मयानंद

यूपी के ही गोंडा में जन्मे स्वामी चिन्मयानंद 1991 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर पहली बार संसद पहुंचे थे. स्वामी चिन्मयानंद 1991 में बदायूं सीट से निर्वाचित हुए थे. इसके बाद वह मछलीशहर और जौनपुर लोकसभा सीट से भी सांसद रहे. स्वामी चिन्मयानंद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में मंत्री भी रहे.

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स्वामी चिन्मयानंद (फाइल फोटो)
स्वामी चिन्मयानंद (फाइल फोटो)

7- साक्षी महाराज

यूपी के ही कासगंज में जन्मे साक्षी महाराज उन्नाव लोकसभा सीट से सांसद हैं. साक्षी महाराज बीजेपी के टिकट पर 1991 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. 1991 में मथुरा से संसद पहुंचे साक्षी महाराज 1996 और 1998 में यूपी के ही फर्रुखाबाद से लोकसभा चुनाव जीते. साल 2000 से 2006 तक वह राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं.

यह भी पढ़ें: प्रमोद कृष्णम: कितने संत और कितने नेता... कैसा रहा सियासी और आध्यात्मिक सफर?

8- साध्वी निरंजन ज्योति

यूपी के हमीरपुर जिले में जन्मीं साध्वी निरंजन ज्योति फतेहपुर सीट से सांसद हैं. मोदी सरकार में मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने दुर्गा वाहिनी और विश्व हिंदू परिषद के लिए काम करते हुए बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय किया है. वह साल 2014 में फतेहपुर सीट से पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई थीं. साध्वी निरंजन ज्योति मंत्री पद पर रहते हुए किसी अखाड़े की महामंडलेश्वर बनने वाली पहली संत भी हैं. वह प्रयागराज में कुंभ के दौरान निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर बनी थीं.

साध्वी निरंजन ज्योति (फाइल फोटो)
साध्वी निरंजन ज्योति (फाइल फोटो)

9- सावित्री बाई फुले

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में जन्मीं सावित्री बाई फुले साल 2012 में बीजेपी के टिकट पर पहली बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुई थीं. सावित्री बाई फुले बहराइच जिले की बल्हा सीट से विधायक निर्वाचित हुई थीं और बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बहराइच लोकसभा सीट से टिकट दिया था. बीजेपी के टिकट पर संसद पहुंचीं सावित्री बाई फुले ने 2018 में पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. फिलहाल, सावित्री बाई फुले 'कांशीराम बहुजन समाज पार्टी' के नाम से अपना सियासी दल बनाकर राजनीति में एक्टिव हैं.

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10- रामविलास वेदांती

मध्य प्रदेश के रीवां में जन्मे डॉक्टर रामविलास वेदांती फिलहाल राम जन्मभूमि ट्रस्ट के सदस्य हैं. रामविलास वेदांती साल 1996 में पूर्वी उत्तर प्रदेश की मछलीशहर लोकसभा सीट से संसद पहुंचे थे. वह 1998 में प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए थे. फिलहाला, डॉक्टर वेदांती चुनावी राजनीति से दूर हैं.

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