अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव 2024 में वोटों की गिनती के बाद रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने बहुमत का आंकड़ा पार करते हुए जीत हासिल की है. डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस की ओर से जोरों शोरों से हुआ प्रचार काम नहीं आया और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. अमेरिका चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को मिली जीत को लेकर मुस्लिम देशों की मीडिया में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. एक अखबार ने तो कमला हैरिस की हार को उनके कर्मों का फल बताया है. उसमें कहा गया है कि कमला हैरिस ने इजरायल-गाजा युद्ध में मुस्लिमों की अनदेखी की है.
'अरब न्यूज' वेबसाइट ने ट्रंप की जीत और कमला हैरिस की हार का कारण इजरायल-गाजा युद्ध को बताया. अखबार में छपे आर्टिकल में कहा गया कि कमला हैरिस ने फिलिस्तीन समर्थकों की मदद से किनारा कर लिया जिसका असर उन्हें अपने वोट बैंक पर देखने को भी मिला.
आर्टिकल में कहा गया कि कमला हैरिस की हार का कोई कुछ भी कारण बताए लेकिन गाजा इसके पीछे की बड़ी वजह है. पिछले एक साल में डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से इजरायल के लिए भरपूर समर्थन देखने को मिला. इसके बाद से ही लिबरल वोटर्स के झुकाव का कुछ पता नहीं चल रहा था. आर्टिकल में कहा गया कि कमला हैरिस हर एक मोड़ पर फिलिस्तीनियों के साथ सहानुभूति रखने में विफल रहीं.
जिन फिलिस्तीनी समर्थकों ने कमला हैरिस को वोट भी किया, उनके अलग-अलग कारण थे. कुछ वोटरों ने अपने हित के लिए ऐसा किया तो कुछ ने ट्रंप के इजरायल को लेकर रहे ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए हैरिस के पक्ष में मतदान किया. वहीं कुछ वोटरों ने यह माना कि हैरिस के राष्ट्रपति बनने के बाद युद्धविराम की दिशा में आगे बढ़ना आसान हो सकता है.
ट्रंप को वोट देकर कमला हैरिस को नहीं मिलेगा कोई सबक
द न्यूज अरब वेबसाइट के अन्य आर्टिकल में सीरियन अमेरिकन लेखक की ओर से कहा गया कि हमें यह याद करने की जरूरत नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप कौन हैं. यह वही आदमी है जिसने व्हाइट हाउस में एंटी मुस्लिम एजेंडा फैलाया. हमारे लोगों पर बैन लगाया और इजरायल के सारे अंतरराष्ट्रीय नियमों को ताक पर रखने के बावजूद भी उसका खुला समर्थन किया.
आर्टिकल में कहा गया कि उन्होंने इस बार चुनाव में कुछ लोगों को यह कहते सुना कि रिपब्लिकन पार्टी के कैंडिडेट का सपोर्ट करके डेमोक्रेटिक पार्टी को सबक सिखाओ. जबकि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से चीजें और ज्यादा बिगड़ सकती हैं.
आर्टिकल में आगे कहा गया कि अगर ट्रंप का इतिहास ऐसा नहीं होता तो लोगों की डेमोक्रेटिक पार्टी के खिलाफ जाने वाली भावनाएं समझी जा सकती थीं. लेकिन जानबूझकर ऐसे आदमी की मदद करना बिल्कुल बेकार है जिसने मुस्लिमों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने का वादा किया हो.
अरब न्यूज ने ट्रंप के एक इजरायली समर्थक के हवाले से लिखा, 'ट्रंप इजरायल पर ऐसे सीजफायर के लिए कभी दबाव नहीं बनाने वाले जिससे गाजा में हमास सत्ता में रहे और ना ही वह इजरायल पर लेबनान के साथ ऐसा कोई शांति समझौता करने का दबाव डालेंगे जिससे वहां हिजबुल्लाह मजबूत हो.'
डोनाल्ड ट्रंप हो या कमला हैरिस, कोई नहीं आएगा बदलाव
न्यूज वेबसाइट AA.COM पर छपे आर्टिकल में एक फिलिस्तीनी मूल के पत्रकार अब्दुल्लाह मिकदाद की ओर से कहा गया कि फिलिस्तीनियों का मानना है कि चाहे व्हाइट हाउस का नेतृत्व डोनाल्ड ट्रंप करें या कमला हैरिस, इजरायल के प्रति अमेरिकी रवैये में कोई बदलाव नहीं आएगा.
पत्रकार मिकदाद ने आगे कहा कि हमारे लिए जरूरी यह है कि अगला अमेरिकी राष्ट्रपति इजरायल और अरब-फिलिस्तीनी संघर्ष को समाप्त करने और वास्तव में 'टू स्टेट सॉल्यूशन' को लागू करने के लिए काम करने की नजरिए के साथ आएं. उन्होंने आगे कहा कि फिलिस्तीनी अमेरिका में ऐसी सरकार देखना चाहते हैं जो क्षेत्र में जंग को बढ़ाए नहीं बल्कि खत्म करने पर काम करे.
वहीं, गाजा के रहने वाले खालिद अबू ने कहा कि उन्हें आगे कोई सुधार नहीं दिखता, चाहे कोई भी जीते. उन्होंने कहा कि गाजा में लोग बंद सीमाओं, खाना और जरूरी आपूर्ति की गंभीर कमी से थक गए हैं. उन्होंने कहा कि "हम थके हुए हैं. हम बस हमलों के खत्म होने की उम्मीद करते हैं."
हाल ही में उत्तरी गाजा से भागकर आए इब्राहिम अबू मुरासा ने ट्रंप के जीतने पर अमेरिकी नीति में बदलाव की उम्मीद जताई जिससे क्षेत्र में संघर्ष कम हो जाएगा. उन्होंने बाइडन प्रशासन पर गाजा में नरसंहार में शामिल होने का आरोप लगाया और कहा कि ट्रंप की जीत शायद शांति स्थापित कर सकती है.
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अलग-थलग महसूस करेंगे मुसलमान
न्यूज चैनल अलजजीरा के आर्टिकल में कहा गया कि इजरायल का समर्थन करने की वजह से बड़ी संख्या में अरब अमेरिकी और अन्य मुस्लिम वोटर्स बाइडन प्रशासन के खिलाफ हैं. कुछ समय पहले इंस्टीट्यूट फॉर सोशल पॉलिसी एंड अंडरस्टैंडिंग की पूर्व शोध निदेशक दलिया मोगाहेद ने चेतावनी देते हुए कहा था कि कमला हैरिस के इजरायल समर्थक रुख से उन्हें चुनाव में नुकसान होने की संभावना है. हालांकि, उन्होंने आगे यह भी कहा था कि हैरिस की हार के लिए किसी एक खास समूह को दोष देना ठीक नहीं होगा.
दालिया ने आगे कहा कि जब ट्रंप पहली बार 2016 में राष्ट्रपति चुने गए थे तो उस समय मुस्लिम और अरब लोगों को ट्रंप की नीतियों के शिकार के रूप में देखा जाता था. साल 2017 में ट्रंप ने 7 मुस्लिम बहुल देशों पर यात्रा प्रतिबंध लगा दिया था. उन्होंने आगे कहा कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में मुसलमान बहुत अलग-थलग महसूस कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि जो कोई भी फ़िलिस्तीनियों की मानवता की वकालत कर रहा है, उसके लिए यह चार साल बहुत कठिन होने जा रहे हैं.
फ्लोरिडा से फिलिस्तीनी अमेरिकी समुदाय के आयोजक राशा मुबारक ने कहा कि हैरिस की हार डेमोक्रेटिक पार्टी की अपनी बुनियादी मूल्यों से जुड़ने में विफलता को उजागर करती है. उन्होंने कहा कि डेमोक्रेटिक पार्टी अपने वोटरों की बात सुनने में विफल रही है. राशा ने आगे कहा कि जब ट्रंप पहले से ही प्रो इजरायल थे तो ऐसे टाइम पर हैरिस को इजरायल युद्ध से जुड़ी मानवीय चिंताओं पर बात करनी चाहिए थी, जो उन्होंने नहीं की.
राशा ने आगे कहा कि बाइडन प्रशासन के पास हथियार प्रतिबंध लगाने की शक्ति थी, लेकिन इसके बजाय उन्होंने इज़रायल के नरसंहार का समर्थन जारी रखा जिसकी वजह से फिलिस्तीन के लोग लगातार प्रताड़ित हो रहे हैं.
आपको बता दें कि पिछली बार जब डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आए तो उन्होंने पहले महीने में ही मुस्लिम बहुल देश इराक, सीरिया, ईरान, लीबिया, सोमालिया, सूडान और यमन के लोगों के अमेरिका आने पर पाबंदी लगाने की घोषणा कर दी थी. साथ ही तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप ने सीरियाई शरणार्थियों के आने पर भी अनिश्चितकालीन पाबंदी लगा दी थी. वहीं अन्य सभी शरणार्थियों के आने पर चार महीने की पाबंदी लगा दी थी.
अब इस चुनाव में बेशक ट्रंप ने मुस्लिम वोटरों को लुभाने की कोशिश की हो लेकिन अपनी रैलियों में उन्होंने लगातार यह बात दोहराई कि अगर वह दोबारा राष्ट्रपति बने तो कुछ मुस्लिम देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर एक बार फिर पाबंदी लगा देंगे.
पिछले साल 28 अक्टूबर को भी रिपब्लिकन यहूदी समिट को संबोधित करते हुए कहा था कि दोबारा सत्ता में आते ही ट्रैवल बैन फिर से लागू करेंगे. उन्होंने कहा था कि हमारे पास ट्रैवल बैन इसलिए है क्योंकि हम उन देशों के नागरिकों को नहीं चाहते हैं जो हमारे देश को नष्ट करना चाहते हैं. ट्रंप ने कहा था कि उनके चार साल के शासन काल में एक भी घटना नहीं हुई क्योंकि वैसे लोगों को देश में आने ही नहीं दिया.