वैज्ञानिकों ने पाया है कि मछलियों में मस्तिष्क प्रणाली न होने या तंत्रिका कोशिकाओं में पर्याप्त उद्दीपन ग्राहियों के अभाव के कारण उन्हें दर्द का अहसास नहीं होता.
वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल के अनुसंधान के निष्कर्ष में कहा गया है कि जब मछली कांटे में फंसती है और अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष करती है तब भी उसे कोई पीड़ा नहीं होती.
डेली मेल की खबर में कहा गया है ‘मछली आजाद होने के लिए संघर्ष करती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसे दर्द होता है. उसे तो चोट या विष का भी मामूली असर होता है जबकि मनुष्य के लिए यह गहरी पीड़ा वाला होता है.
प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों ने मछली के जबड़े में सुइयां घुसाई थीं. परियोजना के प्रमुख जिम रोज ने कहा ‘अम्ल के बड़े इंजेक्शन या विष देने पर मनुष्य को गहरी पीड़ा होती है लेकिन मछलियों में इसका मामूली असर देखा गया.’
जिम रोज विस्कोन्सिन विश्वविद्यालय में प्राणिशास्त्र और शारीरिक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं.
मछलियों को पकड़ कर फिर से पानी में छोड़ा जाए या उनकी सर्जरी की जाए तो कुछ ही मिनट में वह अपनी सामान्य गतिविधियां बहाल कर लेती हैं.
बहरहाल, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मछलियां भले ही आवाज न करें लेकिन पीड़ादायी उद्दीपनों पर वह प्रतिक्रिया देती हैं.
पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स के प्रवक्ता बेन विलियम्सन ने कहा ‘मछलियां भले ही दर्द के दौरान आवाज न करें लेकिन वह पीड़ा उत्पन्न करने वाले उद्दीपनों पर प्रतिक्रिया देती हैं.’ अध्ययन के नतीजे जर्नल ‘फिश एंड फिशयरीज’ में प्रकाशित हुए हैं.