सीमित संसाधन होने के बावजूद मुगलों को नाकों चने चबवाने वाले महान योद्धा महाराणा प्रताप का आज है जन्मदिन. महाराणा प्रताप का नाम भारत के इतिहास में उनकी बहादुरी के कारण अमर है.
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था. जानिये मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप के बारे में...
हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था. अकबर और महाराणा प्रताप के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था. वह अकेले राजपूत राजा थे जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की. ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे. मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी. हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले सिर्फ एक मुस्लिम सरदार था -हकीम खां सूरी.
महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था. उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था. खुद वे 7 फुट 5 इंच के थे और उनका वजन 101 किलो था.
आपको बता दें हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर के पास 85000 सैनिक. इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे. कहते हैं कि अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 6 शान्ति दूतों को भेजा था, जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके, लेकिन महाराणा प्रताप ने यह कहते हुए हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया कि राजपूत योद्धा यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता.
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की थीं. कहा जाता है कि उन्होंने ये सभी शादियां राजनैतिक कारणों से की थीं. महाराणा प्रताप के 17 बेटे और 5 बेटियां थीं. महारानी अजाब्दे से पैदा हुए अमर सिंह उनके उत्तराधिकारी बने.
महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था. राजस्थान के कुंभलगढ़ किले में जन्मे महाराणा प्रताप बचपन से ही काफी बहादुर थे. महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदय सिंह था और माता महारानी जयवंता बाई थीं.
महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा चेतक था. महाराणा प्रताप की तरह ही
उनका घोड़ा चेतक भी काफी बहादुर था. हल्दीघाटी की लड़ाई में उनका वफादार
घोड़ा चेतक गंभीर रूप से जख्मी होने की वजह से मारा गया. लेकिन इस शहादत ने
उसे खासी शोहरत दिलाई. बताया जाता है जब युद्ध के दौरान मुगल सेना उनके
पीछे पड़ी थी तो चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट लंबे
नाले को पार किया था.आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी
हुई है.
मेवाड़ को बचाने के लिए आखिरी सांस तक लड़ने वाले महाराणा प्रताप 6 बार अकबर को बादशाह मानकर मेवाड़ में राज चलाने की पेशकश ठुकराई. उन्हें किसी 'विदेशी' का राज स्वीकार नहीं था. उनके अपने ही बेटे ने दगा दिया और महाराणा प्रतापकी मौत के बाद मेवाड़ अकबर को सौंप दिया.
इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप सबसे प्यार अपनी रानी अजबदे पंवार से करते थे. अजबदे पंवार महाराणा प्रताप की पहली पत्नी और अमरसिंह राठौड़ की मां थी. इन्होंने महाराणा प्रताप के बुरे वक्त में भी उनका साथ नहीं छोड़ा.