उल्कापिंड
एक उल्कापिंड (Meteoroid) बाहरी अंतरिक्ष में एक छोटा चट्टानी या धातु से बना पिंड है (Small Rocky or Metallic Body in Outer Space). उल्कापिंड क्षुद्रग्रहों की तुलना में काफी छोटे होते हैं. इसका आकार छोटे अनाज से लेकर एक मीटर चौड़ी वस्तुओं तक होता है (Size of Meteoroid). इससे छोटी वस्तुओं को सूक्ष्म उल्कापिंड या अंतरिक्ष धूल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. अधिकांश उल्कापिंड धूमकेतु या क्षुद्रग्रहों के टुकड़े होते हैं, जबकि बाकी के टुकड़े टकराव के प्रभाव से बने मलबे हैं जो चंद्रमा या मंगल जैसे पिंडों से निकाले गए हैं (Formation of Meteoroid).
जब कोई उल्कापिंड, धूमकेतु या क्षुद्रग्रह पृथ्वी के वायुमंडल में आमतौर पर 20 किमी/सेकंड यानी 72,000 किमी/घंटा से अधिक की गति से प्रवेश करता है, तो उस वस्तु का वायु में गति की ताप से प्रकाश की एक लकीर पैदा करता है. इस घटना को उल्का या "शूटिंग स्टार" कहा जाता है (Formation of Meteor or Shooting Star). उल्काएं आमतौर पर तब दिखाई देती हैं जब वे समुद्र तल से लगभग 100 किमी ऊपर होती हैं (Meteors Visibility from Earth). कई उल्काओं की एक श्रृंखला जो सेकंड या मिनट के अंतराल पर दिखाई देती है और आकाश में एक ही निश्चित बिंदु से उत्पन्न होती है, उल्का बौछार कहलाती है (Formation of Meteor Shower).
अनुमान के मुताबिक, 25 लाख उल्कापिंड, माइक्रोमीटरोइड्स और अन्य अंतरिक्ष मलबा हर दिन पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 15,000 टन सामग्री हर साल वायुमंडल में प्रवेश करती है (Frequency of Meteors in Earth’s Atmosphere).
सहारा रेगिस्तान में मिला मंगल ग्रह का सबसे बड़ा उल्कापिंड NWA 16788 न्यूयॉर्क में 16 जुलाई को नीलाम होगा. 24.5 किलो वजनी यह दुर्लभ पत्थर 15-34 करोड़ में बिक सकता . नीलामी में क्रिप्टोकरेंसी से खरीदारी की सुविधा भी होगी.
एक स्टेडियम के आकार का एस्टेरॉयड धरती के बगल से गुजर गया. वैज्ञानिक बारीकी से इस पर नजर रख रहे थे. क्योंकि अगर इसने रास्ता बदला होता तो ये धरती पर भयानक तबाही मचा सकता था. ये आज दिन में करीब 11 बजे धरती के नजदीक से गुजर गया. आइए जानते हैं इस खतरनाक एस्टेरॉयड के बारे में...
93 साल पहले पर्ड्यू यूनिवर्सिटी की दराज में पत्थर मिला. वो वैसे कहां पहुंचा किसी को नहीं पता. लेकिन जब इस पत्थर की जांच हुई तो पता चला कि ये मंगल ग्रह से आया है. जो यह बताता है कि लाल ग्रह पर 74.2 करोड़ साल पहले पानी मौजूद था. इस पत्थर का नाम है लफायते उल्कापिंड (Lafayette Meteorite).
डायनासोरों को मारने वाले एस्टेरॉयड को लेकर नया खुलासा हुआ है. वैज्ञानिकों ने बताया कि ये पत्थर सौर मंडल के बाहर से आया था. यह हमारी दुनिया का पत्थर था ही नहीं. इसने सौर मंडल के बाहर से छलांग मारी और 6.60 करोड़ साल पहले सीधे हमारी धरती पर आकर गिरा. पूरी दुनिया में तबाही ला दी.
शिव का डमरू, ब्रह्मांड का रोटेशन और विनाश की वैज्ञानिक भविष्यवाणी. विज्ञान और वैज्ञानिक भी मानते हैं भगवान शिव को विनाश और निर्माण का देवता. इसलिए दिया गया था शिवा हाइपोथिसिस, जिसमें पृथ्वी पर जीवन के विनाश और ब्रह्मांड में होने वाले बदलावों का जिक्र किया गया है.
इतिहास में 8वीं बार ऐसा हुआ है कि जब कोई उल्कापिंड को धरती के वायुमंडल में घुसने से थोड़ा पहले ही देखा गया हो. कुछ ही घंटों में यह जर्मनी की राजधानी बर्लिन के पास लीपजिग नाम के इलाके के ऊपर आसमान चीरते हुए आया.
सिर्फ कुछ ही घंटे हुए हैं... धरती एक बड़े आसमानी आफत की चपेट में आने वाली थी. 21 जनवरी 2024 को बर्लिन के पास एक एस्टेरॉयड जब धरती के वायुमंडल में आकर फटा, तब वैज्ञानिकों को उसका पता चला. अगर यह सही सलामत जमीन पर गिरता तो बर्लिन शहर के आसपास काफी तबाही मचा सकता था.
12 दिसंबर 2023 को आसमान में सबसे तेज चमकने वाला तारा 12 सेकेंड के लिए गायब हो जाएगा. यह सबसे प्रसिद्ध रेड सुपरजायंट तारा बेटेलगूस (Betelgeuse) है. आप इस नजारे को देख सकते हैं. लेकिन कैसे और कहां ये हम आपको बताते हैं. इसके गायब होने की वजह भी आपको बताएंगे... और फिर वापस दिखने की भी.
ऑस्ट्रेलिया के डेविड होल साल 2015 से सोना समझकर एक पत्थर संभाले हुए थे. जब उन्हें वैज्ञानिकों ने बताया कि ये कई किलो सोने से ज्यादा कीमती पत्थर है. तब उनकी लॉटरी लग गई. डेविड को यह पत्थर ऑस्ट्रेलिया के उस इलाके से मिला था, जहां पर सोने की खदानें हैं. लेकिन यह पत्थर इस दुनिया का था ही नहीं.
Asteroid Sample Return: 24 सितंबर 2023 को बेन्नू उल्कापिंड से लौटे नासा के ओसाइरिस-रेक्स यान के सैंपल से पता चला है कि उस एस्टेरॉयड पर बहुत सारा कार्बन और पानी है. पहली बार किसी उल्कापिंड पर कार्बन और पानी की मात्रा इतनी ज्यादा मिली है कि वैज्ञानिक भी हैरान-परेशान हैं.
Asteroid Sample Return: जो उल्कापिंड धरती से टकराने वाला है, उससे मिट्टी का सैंपल लेकर नासा का कैप्सूल लौट आया है. इसका नाम है OSIRIS-ReX. यह मिनी फ्रिज के आकार का है. जिस उल्कापिंड से यह सैंपल लेकर आ रहा है. उसका नाम है Bennu. जानिए इस सैंपल को लाने से क्या फायदा होगा?
उस तारीख का पता चल गया है, जब धरती से उल्कापिंड की टक्कर होगी. NASA इस एस्टेरॉयड की दिशा बदलने के प्रयास में लग गया है. लेकिन अगर यह उल्कापिंड पृथ्वी से टकराया तो 22 परमाणु बमों जितना बड़ा धमाका और तबाही होगी. आइए जानते हैं कि कब होगी पृथ्वी से इस एस्टेरॉयड की टक्कर...
एक उल्कापिंड की मिट्टी और पत्थरों का सैंपल लेकर धरती पर लौट रहा है NASA का कैप्सूल. इसकी लैंडिंग इसी महीने होगी. यह कैप्सूल एक मिनी फ्रिज के आकार का है. यह जिस एस्टेरॉयड से सैंपल लेकर आ रहा है, वह पृथ्वी और मंगल ग्रह के बीच मौजूद है. आइए जानते हैं कि कब और कैसे धरती पर लौटेगा यह खास मेहमान...
एलियंस और यूएफओ को लेकर दुनिया भर में तमाम तरह के दावे किए जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में एक ऐसा शहर भी है, जहां आसमान रहस्यमयी चीज़ें उड़ती दिखाई देती हैं. स्थानीय लोग इस बारे में बात करने से भी काफी डरते हैं, ये छोटा सा शहर ब्रिटेन के स्कॉटलैंड का बोनीब्रिज है.
एक महिला के साथ हाल में अजीब घटना घटी. जब वह अपने घर की छत पर बैठी कॉफी पी रही थी तभी अचानक उसके शरीर से कोई चीज टकराई. उसने ध्यान से देखा तो ये एक पत्थर सा टुकड़ा था लेकिन जांच करने पर उसे जो पता लगा उससे वह हैरान रह गई.
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी का दूसरा चंद्रमा खोजा है. यह धरती के साथ-साथ सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाता है. इसे क्वासी मून या क्वासी सैटेलाइट कहा जाता है. यानी ऐसा पत्थर जो किसी ग्रह के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए जुड़ा रहता है. जैसे हमारा असली चांद धरती के साथ जुड़ा हुआ है.
राजस्थान में स्थित रामगढ़ क्रेटर को पर्यटन क्षेत्र के रूप में डेवलप किया जाएगा. इसके लिए तीन विभागों को जिम्मेदारी दी गई है. करोड़ों का बजट इस काम के लिए सरकार ने दिया है. बता दें कि रामगढ़ क्रेटर की खोज साल 1869 में की गई थी. यह 60 करोड़ साल पहले उल्कापिंड गिरने से बना था.
मकान की मालकिन ने कहा- यह (उल्कापिंड) घर की छत तोड़ते हुए सीधे बेडरूम में पहुंच गया. पहले लगा कि किसी ने पत्थर फेंका होगा. लेकिन जब ऊपर देखा तो पता चला कि यह छत तोड़कर नीचे आया था. गनीमत रही कि उस वक्त वहां कोई नहीं था.
आपके खाने का मेन्यू एक उल्कापिंड की वजह से बदला था. वह भी करोड़ों साल पहले. इसी उल्कापिंड ने डायनासोरों को मारा था. आप यह जानकर हैरान होंगे लेकिन यह बात साइंटिफिकली सही है. सिर्फ बड़ी प्राकृतिक आपदा ने हम इंसानों के खाने के मेन्यू को बदल दिया था. आइए जानते हैं कैसे?
सौर मंडल से भी पुराने उल्कापिंड पर वैज्ञानिकों को जीवन के तत्व मिले हैं. वो तत्व जो जीवन की शुरुआत करते हैं. यह अपने आप में बड़ी खोज है. यानी सौर मंडल में जीवन की शुरुआत की वजह उल्कापिंड भी हो सकते हैं. आइए जानते हैं कि वैज्ञानिकों को असल में क्या मिला है?
14 दिसंबर 2022 यानी कल आसमान में हर घंटे 120 उल्कापिंडों की बारिश होगी. यह जेमिनिड मेटियोर शॉवर है. हम आपको बताते हैं कि आप यह आसमानी आतिशबाजी कैसे और कहां से देख सकते हैं? ये भी कि ये उल्कापिंड आ कहां से रहे हैं?