भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर (Manipur) में निवास करने वाला मैतेई (Meitei) समुदाय एक समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भाषाई विरासत का प्रतीक है. यह समुदाय राज्य की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा है और इसकी सांस्कृतिक परंपराएं, भाषा, धार्मिक विश्वास, और सामाजिक ढांचा मणिपुर की पहचान को परिभाषित करते हैं.
मैतेई लोगों की उत्पत्ति का इतिहास सदियों पुराना है. मणिपुर के प्राचीन ग्रंथों, जैसे "चैतन्य भागवत" और "पुयास", में इस समुदाय की वंशावली और सामाजिक संरचना का उल्लेख मिलता है. मैतेई राजा पखंगबा को इस समुदाय का प्रथम ऐतिहासिक शासक माना जाता है, जिनका शासन काल लगभग 33 ईस्वी में बताया जाता है.
मैतेई भाषा, जिसे मणिपुरी भी कहा जाता है, एक सिनो-तिब्बती भाषा है. इसे 1992 में भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया, जिससे इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ. इसकी पारंपरिक लिपि “मैतेइ मयेक” हाल ही में फिर से लोकप्रिय हो रही है, जो सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है.
मैतेई समुदाय में परंपरागत रूप से सनामाही धर्म (Sanamahi) और मीताई धर्म प्रचलित थे. 18वीं शताब्दी में जब वैष्णव धर्म का प्रभाव बढ़ा, तब से अधिकांश मैतेई हिंदू धर्म के अनुयायी बन गए. हालांकि आज भी बहुत से लोग पारंपरिक सनामाही विश्वासों को मानते हैं, जो प्रकृति पूजा और पूर्वजों की आराधना पर आधारित है.
मैतेई समुदाय की सांस्कृतिक परंपराएं अत्यंत समृद्ध और विविध हैं. रास लीला नृत्य, थांग-ता (मार्शल आर्ट), और मणिपुरी शास्त्रीय संगीत इस समुदाय की कलात्मक अभिव्यक्ति का अद्वितीय रूप हैं. इसके अलावा, लोककथाएं, हथकरघा, और पारंपरिक पहनावे (जैसे इनफी और फानेक) भी इस समुदाय की सांस्कृतिक पहचान में अहम भूमिका निभाते हैं.
मैतेई समाज में सात प्रमुख गोत्र (सलाइ) होते हैं, जिनके आधार पर सामाजिक और पारिवारिक संबंध तय किए जाते हैं. यह प्रणाली एक जटिल लेकिन सुसंगठित सामाजिक ढांचे को दर्शाती है.
आधुनिक युग में मैतेई समुदाय ने शिक्षा, खेल, राजनीति, और प्रशासन के क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है. हालांकि, अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रखने की आवश्यकता को लेकर समुदाय में गहन जागरूकता भी देखी जाती है. वर्तमान में, मैतेई समुदाय अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग कर रहा है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक विमर्श में यह समुदाय सुर्खियों में है.
मणिपुर के पहाड़ी जिलों में सुरक्षा बलों ने खुफिया जानकारी के आधार पर एक साथ कार्रवाई कर 87 हथियार, 57 राउंड गोला-बारूद, 22 ग्रेनेड, 5 लठोडे बम और 28 स्थानीय पोम्पी बंदूकें बरामद की हैं. 23 रेडियो सेट और बुलेटप्रूफ प्लेट्स भी जब्त हुईं. ये कार्रवाई इलाके में शांति बनाए रखने और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए अहम कदम है.
मणिपुर में भले ही हिंसा का दौर थम गया है, गोलीबारी शांति हो गई है. लोग अपने सामान्य जीवन में लौट गए हैं, लेकिन कुकी और मैतेई समुदाय के बीच की खाई अभी तक नहीं पटी है. दोनों समुदायों के लिए एक दूसरे के क्षेत्र में एंट्री नहीं कर पा रहे हैं. हिंसा के दौरान बने बफर जोन में सुरक्षाबलों की ओर से सिक्योरिटी प्रदान की जा रही है, चुराचांदपुर के लोग दिल्ली आने के लिए इंफॉल जाने की बजाय मिजोरम से फ्लाइट पकड़ते हैं, जो कि उनके लिए काफी महंगा साबित होता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को मणिपुर को 8500 करोड़ रुपये के विकास की आधारशिला रखेंगे. पीएम यह दौरा न सिर्फ विकास योजनाओं की शुरुआत का प्रतीक होगा, बल्कि शांति और भरोसे की बहाली का भी संकेत माना जा रहा है.
मैतेई संगठन अरंबाई टेंगोल ने गिरफ़्तारियों का विरोध करने और हिरासत में लिए गए अपने सदस्यों की बिना शर्त रिहाई की मांग करने के लिए पूरे राज्य में 10 दिन का बंद बुलाया है. नतीजतन, शैक्षणिक संस्थान बंद हैं, बाज़ार बंद हैं और सरकारी दफ़्तरों में बहुत कम कर्मचारी काम कर रहे हैं, क्योंकि संगठन ने कर्मचारियों को काम पर न आने की चेतावनी दी है.
मणिपुर में शनिवार रात को मैतेई संगठन अरंबाई टेंगोल के नेता कानन सिंह समेत 5 लोगों को गिरफ्तार किया था. इसके बाद कुछ इलाकों में हिंसा भड़क गई. प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर आगजनी की, बसों को फूंक दिया और जमकर तोड़फोड़ की.
सुप्रीम कोर्ट के जजों के 6 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर में मौजूदा हालातों का जायजा लेने पहुंचे. इस प्रतिनिधिमंडल में जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह भी शामिल हैं. जस्टिस कोटिस्वर कुकी-नियंत्रित इलाकों में जाने में असमर्थ रहने को लेकर कहा है कि शांति बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है. उन्हें चुराचांदपुर ना जाने का कोई पछतावा नहीं है.
मणिपुर पुलिस और राज्य का प्रशासन संभालने वाले अधिकारी भी कुकी और मैतेई में बंट चुके हैं. कुकी इलाकों में राज्य पुलिस और प्रशासन के वही अधिकारी तैनात किए गए हैं, जो इस समुदाय से आते हैं. यही हाल मैतेई इलाकों का भी है.
मैतेई समुदाय की ओर से ऑल मणिपुर यूनाइटेड क्लब्स ऑर्गेनाइजेशन (AMUCO) और फेडरेशन ऑफ सिविल सोसाइटी ऑर्गेनाइजेशंस (FOCS) के तीन-तीन सदस्य बैठक में शामिल होंगे. AMUCO के अध्यक्ष नंदा लुवांग, वरिष्ठ सलाहकार इतो टोंगबाम और डॉ. धनबीर लैशराम इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं.
प्रदर्शन का मुख्य केंद्र न्यू ज़ालेनफाई रहा, जहां महिलाएं हाथों में तख्तियां लेकर और नारे लगाते हुए सड़कों पर बैठ गईं. उन्होंने बफर ज़ोन की सुरक्षा और कुकी-जो समुदाय के राजनीतिक अधिकारों की मान्यता की मांग की. इसी प्रकार के प्रदर्शन गोथोल और खौसाबुंग में भी देखे गए. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि मैतेई श्रद्धालुओं को कुकी-जो भूमि माने जाने वाले क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी.