भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में आपातकाल (Emergency) 1975 एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विवादास्पद घटना मानी जाती है. यह वह समय था जब भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था और देश पर एक प्रकार की तानाशाही छा गई थी. यह कालखंड भारतीय लोकतंत्र की परीक्षा का समय था.
25 जून 1975 की रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की. इसके पीछे कारण बताया गया कि देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा है. इसका औपचारिक आधार अनुच्छेद 352 था, जिसमें 'आंतरिक अशांति' को आपातकाल घोषित करने का कारण बनाया गया.
हालांकि वास्तविक कारण कुछ और थे- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को अवैध करार दिया था और उनके पद पर बने रहने पर सवाल खड़े हो गए थे. इसके बाद विपक्षी दलों ने उनके इस्तीफे की मांग करते हुए व्यापक आंदोलन शुरू कर दिया, जिसकी अगुवाई जयप्रकाश नारायण कर रहे थे.
आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और न्याय पाने का अधिकार तक स्थगित कर दिए गए. अखबारों पर सेंसर लगाया गया. बिना सरकारी अनुमति के कुछ भी प्रकाशित नहीं किया जा सकता था. हजारों विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया, जिनमें अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडीस जैसे बड़े नाम शामिल थे.
इतना ही नहीं संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी जैसे कार्यक्रम चलाए गए, जिससे जनता में भारी आक्रोश फैला. तो वहीं सरकार ने कई संवैधानिक संशोधन किए जिससे प्रधानमंत्री की शक्तियां और बढ़ गईं.
आपातकाल 21 महीने तक चला और 21 मार्च 1977 को समाप्त हुआ. इंदिरा गांधी ने उसी वर्ष चुनाव की घोषणा की, लेकिन जनता ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया. जनता पार्टी की ऐतिहासिक जीत हुई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. यह पहली बार था जब कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा.
नरेंद्र मोदी साल 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने. लेकिन वह पहली बार प्रधानमंत्री आवास 7 रेसकोर्स रोड, दिल्ली में 18 अगस्त 2001 को आए थे. उस वक्त वह बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव थे और आरएसएस में अपने गुरु लक्ष्मणराव इनामदार पर लिखी किताब का विमोचन कराने आए हुए थे. तब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे और पीएम आवास को लोक कल्याण मार्ग नहीं, 7 रेसकोर्स रोड कहा जाता था.
आजादी के बाद बिहार में कांग्रेस के राज से लोग नाराज़ थे. 1970 के दशक में बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और पढ़ाई की समस्या पर छात्रों ने आंदोलन शुरू किया. मगध यूनिवर्सिटी की घटना के बाद यह आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया. छात्रों के कहने पर जयप्रकाश नारायण ने 1974 में संपूर्ण क्रांति का नारा दिया. इससे आपातकाल लगा और बाद में सत्ता बदली.
भारत में 25-26 जून 1975 को घोषित आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर लोकतंत्र की चुनौतियों और प्रतिक्रियाओं पर चर्चा हुई. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने लोकतंत्र की मजबूती पर जोर दिया. आपातकाल के दौरान नागरिक अधिकारों का हनन और प्रेस स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगे थे.
शशि थरूर ने लिखा कि पचास साल पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से लगाए गए आपातकाल ने दिखाया था कि कैसे आज़ादी को छीना जाता है, शुरू में तो धीरे-धीरे, भले-बुरे लगने वाले मकसद के नाम पर छोटी-छोटी लगने वाली आजादियों को छीन लिया जाता है. इसलिए यह एक ज़बरदस्त चेतावनी है और लोकतंत्र के समर्थकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए.
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आज भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे काले अध्याय के 50 साल पूरे हुए जब आपातकाल लगाया गया था. बीजेपी ने इसे संविधान हत्या दिवस बताया है. कांग्रेस का कहना है कि देश में 11 साल से अघोषित इमरजेंसी चल रही है और विपक्ष का आरोप है कि देश की संस्थाओं पर हमला हो रहा है.
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आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर देश में सियासी संग्राम छिड़ गया है. बीजेपी इसे 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मना रही है. प्रधानमंत्री ने कहा, "आज भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे काले अध्याय के 50 साल पूरे हुए जब आपातकाल लगाया गया था." वहीं, कांग्रेस का आरोप है कि देश में पिछले 11 साल से 'अघोषित इमरजेंसी' चल रही है.