भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), जिसे पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नाम से जाना जाता था, एक राजनीतिक दल है जो मुख्य रूप से तेलंगाना राज्य में सक्रिय है. वर्तमान में राज्य का प्राथमिक विपक्षी दल है. इसकी स्थापना 27 अप्रैल 2001 को के.चंद्रशेखर राव ने की थी, जिसका एकमात्र एजेंडा हैदराबाद को राजधानी बनाकर एक अलग तेलंगाना राज्य बनाना था. इसने तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए निरंतर आंदोलन चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है (Bharat Rashtra Samithi).
2014 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में, पार्टी ने अधिकांश सीटें जीतीं और के.चंद्रशेखर राव के मुख्यमंत्री के साथ राज्य की पहली सरकार बनाई. 2014 के आम चुनाव में पार्टी ने 11 सीटें जीतीं, जिससे यह भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में आठवीं सबसे बड़ी पार्टी बन गई (BRS).
सुप्रीम कोर्ट ने बीआरएस छोड़कर कांग्रेस जॉइन करने वाले 10 विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला नहीं करने के लिए तेलंगाना विधानसभा के स्पीकर गद्दाम प्रसाद कुमार को फटकार लगाई.
कौशिक रेड्डी ने यह भी दावा किया कि तीन कांग्रेस सांसदों ने उनसे व्यक्तिगत रूप से स्वीकार किया कि उन्होंने रेवंत रेड्डी के कहने पर एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के उम्मीदवार को वोट दिया.
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए 9 सितंबर को सुबह 10 बजे से मतदान शुरू होकर शाम 5 बजे तक चलेगा. बीजू जनता दल और भारत राष्ट्र समिति ने मतदान से दूर रहने का फैसला लिया है.
तेलंगाना के पूर्व सीएम के चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता ने बीआरएस छोड़ने का ऐलान कर दिया है. के कविता का पार्टी छोड़ना बीआरएस के लिए कितना नुकसानदेह साबित हो सकता है?
बीआरएस प्रमुख केसीआर ने अपनी बेटी और एमएलसी के. कविता को पार्टी से निलंबित कर दिया है. कविता पर यह एक्शन उनके द्वारा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सार्वजनिक आलोचना करने के कारण हुआ है.
अपने भविष्य के राजनीतिक कदम के बारे में के. कविता ने माना कि बीआरएस के भीतर उन्हें दरकिनार करने की कोशिशें की जा रही हैं. उन्होंने कहा कि मुझे पार्टी से दूर करने की साजिश की जा रही है. मैं केवल केसीआर के नेतृत्व में काम करूंगी, किसी और के नेतृत्व में नहीं.'
लोकसभा चुनाव में मायावती की बसपा से लेकर केसीआर की बीआरएस और नवीन पटनायक की बीजेडी तक, कई ऐसी पार्टियां थी जो एनडीए और इंडिया ब्लॉक से अलग अकेले चुनाव मैदान में उतरीं. राजनीति में मजबूत दखल रखने वाले ये क्षत्रप इस बार खाली हाथ रह गए.