
जब कोई एक शख्स सफलता हासिल करता है तो कइयों के उसी राह पर चलने के हौंसले बुलंद हो जाते हैं. टोक्यो ओलंपिक 2020 में भाला फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा के गांव में अब कई शख्स नीरज चोपड़ा बनने की तैयारी में हैं.
हरियाणा के पानीपत जिले में शहर से 15 किलोमीटर दूर खंडरा गांव में अब कई युवा खिलाड़ी जैवलिन थ्रो खेल में किस्मत आजमाने की तैयारी में हैं. 18 साल से कम उम्र के सभी युवा और युवतियां नीरज चोपड़ा से प्रभावित हैं और अब नीरज चोपड़ा ही बनना चाहते हैं.
कुछ बच्चे 2016 से जैवलिन थ्रो सीखने के लिए मैदान में उतर गए हैं. तो कुछ बच्चे 3 महीने से इस नए खेल के गुर सीखमा रहे हैं. नीरज के गांव में संस्कृति प्राइवेट स्कूल के छोटे से मैदान में रोज की तरह सुबह और शाम यह बच्चे जैकलिन थ्रो की प्रेक्टिस करते हैं. इन सब का सपना है नीरज चोपड़ा बनना और देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना.
पहले वार्मअप और फिर जैकलिन की स्टिक को सही दिशा में सही निशाने पर सही दूरी तक फेंकने की प्रक्रिया रोज सुबह और शाम चलती है. 16 साल के युवराज भी नीरज चोपड़ा बनना चाहते हैं. आजतक से बातचीत में उन्होंने कहा कि नीरज के खेल को देखकर वह प्रभावित हुए हैं और अब उनके जैसा ही बनना चाहते हैं. इसीलिए जैवलिन खेलना शुरू किया. युवराज कहते हैं कि नीरज चोपड़ा जब भी छुट्टियों में अपने गांव आते हैं तो वह उन बच्चों को भी सही तरीके से मार्गदर्शन देते हैं.

इसी गांव का रहने वाला 14 साल का कृष, नीरज चोपड़ा से इतना प्रभावित हुआ है कि अब वह भी जैकलिन में हाथ आजमा रहा है. युवा कहते हैं कि नीरज हमारे प्रेरणा स्रोत हैं और जब से उन्हें देश के लिए मेडल लाते देखा है तब से हमारे गांव में 18 लड़के-लड़कियां उनके जैसा ही बनना चाहते हैं और देश के लिए मेडल जीतना चाहते हैं.
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युवराज और कृष की तरह 16 साल की दीपिका भी नीरज बनना चाहती है. लेकिन अभी सिर्फ 3 महीने से ही वो जैवलिन खेल के मैदान में उतरी हैं. दीपिका कहती हैं कि मुझे सिर्फ 3 महीना हुआ है, लेकिन नीरज भैया से प्रभावित होकर मैंने इस खेल को सीखने का इरादा बनाया और अब माता-पिता भी मेरे साथ हैं. नीरज जब छुट्टियों में अपने घर अपने गांव आते हैं तब दीपिका को भी उनसे सीखने को बहुत कुछ मिलता है.

नीरज का गांव ही नहीं बल्कि पानीपत शहर में शिवाजी स्टेडियम अब ऐतिहासिक हो गया है. नीरज की सफलता के बाद शिवाजी स्टेडियम में हर दिन जैवलिन सीखने वाले बच्चों की संख्या बढ़ रही है. सोमवार की शाम 15 साल की लक्ष्मी, शिवाजी स्टेडियम पहुंची और जैवलिन थ्रो सिखाने वाले कोच की तलाश करने लगी. आजतक संवादाता आशुतोष मिश्रा की मुलाकात जब लक्ष्मी से हुई तब उन्होंने बताया कि अब वह नीरज चोपड़ा की तरह ही जैवलिन फेंकने सीखना चाहती हैं. इसलिए वह शिवाजी स्टेडियम आई हैं, ताकि कोच का मार्गदर्शन मिल सके. लक्ष्मी ने बताया कि टोक्यो ओलंपिक्स में नीरज का खेल और उनकी वजह से वो काफी प्रभावित हुए हैं और अब उनके जैसा ही बनना चाहती हैं.
शिवाजी स्टेडियम में अब एक नई ऊर्जा दिखाई पड़ती है. बड़ी संख्या में युवा खिलाड़ी मैदान में अलग-अलग खेलों का अभ्यास कर रहे हैं. लेकिन जैकलिन खेलने वाले खिलाड़ियों की संख्या में इजाफा हुआ है. कोच महिपाल बताते हैं कि नीरज 12 साल का था, जब इस मैदान में खेलने आया था. लेकिन उसका वजन बहुत ज्यादा था और अब उसने जो कर दिया है उससे न सिर्फ हरियाणा का बल्कि पूरे देश का नाम रोशन हुआ है.
कोच महिपाल कहते हैं कि जबसे नीरज ने टोक्यो में गोल्ड मेडल जीता है, जैवलिन थ्रो सीखने वाले खिलाड़ियों की संख्या में अचानक इजाफा हुआ है. वे सभी खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाएंगे और पूरी मेहनत से सिखाएंगे. ताकि देश को आगे भविष्य में और मेडल मिले.