
2002 में भारतीय टीम नेटवेस्ट ट्रॉफ़ी जीत चुकी थी. सौरव गांगुली लॉर्ड्स की बालकनी में टीशर्ट लहरा चुके थे. टेस्ट मैचों की सीरीज़ शुरू हो चुकी थी और जॉन राइट और सौरव गांगुली की जोड़ी ने भारतीय क्रिकेट को तोहफ़ा दिया - सहवाग को टेस्ट मैच में ओपनिंग दी गयी. सहवाग ने लॉर्ड्स में 84 और नॉटिंघम में 106 रन बनाये. लेकिन इन दोनों मैचों में भारतीय टीम जीत का मुंह नहीं देख सकी. 2 मैचों के बाद 1-0 की स्थिति बनी हुई थी. लॉर्ड्स में खेले गए पहले मैच में इंग्लैण्ड ने इंडिया को 170 रनों से हराया. हालांकि अजीत अगरकर के लिये ये मैच स्पेशल रहा क्यूंकि इस मैच की वजह से ही उनका नाम लॉर्ड्स में बल्लेबाज़ी वाले ऑनर बोर्ड पर चढ़ा. उन्होंने दूसरी पारी में 190 गेंदों में 109 रन बनाये और नाबाद रहे. दूसरे मैच में भारतीय टीम ने सहवाग के शतक के चलते साढ़े तीन सौ से कुछ ज़्यादा रन बनाये. लेकिन फिर इंग्लैण्ड ने 617 रन बनाये और इसके जवाब में इंडिया ने अच्छी बल्लेबाज़ी करते हुए मैच ड्रॉ करवा लिया. द्रविड़ ने शतक लगाया और सचिन, गांगुली नाइनटीज़ में आउट हुए.
तीसरा मैच हेडिंग्ली में खेला जाना था. मैच से दो दिन पहले ज्योफ़्री बॉयकॉट ने भारतीय टीम को अपने घर खाने पर बुलाया था. बॉयकॉट ने भारतीय टीम से हेडिंग्ली में खेल की रणनीति के बारे में भी बात की. लेकिन जब उन्होंने देखा कि टॉस जीतकर सौरव गांगुली ने पहले बल्लेबाज़ी चुन ली, उन्होंने अपना सर पकड़ लिया. हेडिंग्ली में इतने बादल थे कि ऐसा लग रहा था कि मैच की शुरुआत ही कृत्रिम लाइट में होगी. ठण्डे मौसम में ऐसा माहौल इंग्लैण्ड के गेंदबाज़ों को हमेशा रास आता है. ऐसे में उन्हें गेंदबाज़ी करने का न्योता देना आत्मघाती फैसला मालूम देता है.
हर कोई इसे बहुत बड़ी ग़लती बता रहा था. लेकिन इस फ़ैसले के पीछे की वजह बहुत ही कम लोगों को मालूम थी. असल में ये एक जुआ था जो भारतीय थिंक टैंक ने खेला था. राहुल द्रविड़ इसके पीछे के सबसे बड़े ट्रिगर थे. द्रविड़ का ये मानना था कि भारतीय टीम अपने स्पिनरों का असली खेल नहीं होने दे रही थी. तेज़ गेंदबाज़ी के चलते भारत दूसरी पारी में बल्लेबाज़ी करना प्रेफ़र कर रहा था और स्पिनरों को 5वें दिन का विकेट नहीं मिल रहा था. द्रविड़ का कहना था कि अगर पांचवें दिन इंग्लैण्ड को 200 रन चेज़ करने हों तो भारतीय स्पिनर उनके लिये बहुत बड़ी मुश्किल पैदा कर सकते थे.
इसके चलते टीम ने फैसला किया कि वो पहले बल्लेबाज़ी करेंगे. इस स्ट्रेटेजी के लिये टीम के कॉम्बिनेशन को भी बदला गया. हरभजन और कुम्बले, दोनों स्पिनरों को जगह मिली. इसके चलते आशीष नेहरा को बाहर जाना पड़ा. साथ ही वसीम जाफ़र को भी बाहर किया गया और उनकी जगह ओपनिंग के लिये संजय बांगर आये. बांगर के साथ अच्छी बात ये भी थी कि एक पेसर की ग़ैर मौजूदगी में वो हाथ घुमा सकते थे.
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पहला झटका और फिर अनुशासन - शुरुआत, जो किले की नींव बनी
खैर, भारतीय बल्लेबाज़ी के पहले आधे घंटे में ही पहला विकेट गिरा. सहवाग 8 रनों पर आउट हुए. राहुल द्रविड़ अंदर आये और हर कोई जल्दी ही दूसरी चोट लगने का इंतज़ार कर रहा था. लेकिन इसके ठीक उलट घटनाएं घटीं. संजय बांगर और राहुल द्रविड़ ने मामला संभाले रखा. पहले दिन का लंच होने तक मात्र 50 रन ही बने थे. लेकिन इंडिया के लिये अच्छी बात ये थी कि इन परिस्थितियों में उसका बस एक ही विकेट गिरा था.

लंच के दौरान कोच जॉन राइट और राहुल द्रविड़ के बीच बातचीत हुई. जॉन राइट अपनी किताब इंडियन समर्स में लिखते हैं: 'लंच के दौरान द्रविड़ के दिमाग में सकारात्मक विचार डालने के लिए मैंने उनसे कहा कि अगर वो इन परिस्थितियों में शतक मारते हैं तो वो उनका सबसे बेहतरीन शतक होगा.' लंच के बाद गेंद लगातार स्विंग होती रही. बल्लेबाज़ी के लिये एकदम प्रतिकूल स्थितियां. लेकिन द्रविड़ और बांगर ने खूंटा गाड़े रखा. धैर्य से भरी बल्लेबाज़ी क्या होती है, ये लंच के बाद के घंटों में देखी जा सकती थी. सूरज चमकने लगा था लेकिन फिर भी दोनों बल्लेबाज़ों का सारा फ़ोकस रन बनाने की बजाय टिके रहने पर था. इस पूरे क्रम में संजय बांगर ने 236 गेंदें खेलीं और 68 रन बनाये. इन 68 रनों में भी 10 चौके थे. द्रविड़ और बांगर ने मिलकर 170 रनों की पार्टनरशिप बनायी. इससे ज़्यादा ज़रूरी बात ये थी कि इन्होंने मिलकर लगभग 68 ओवर निकाले.
दिन ख़तम होने में अभी कुछ 15 ओवर बचे थे. आख़िरी डेढ़ घंटे का ये समय बेहद नाज़ुक पीरियड होता है और इसमें फ़्लिंटॉफ़ ने कई कठिन सवाल पूछे. लेकिन सचिन ने कोई गड़बड़ नहीं होने दी और दूसरे छोर से लगे एश्ले जाइल्स को भी पूरे संयम के साथ खेलते रहे. नयी गेंद के साथ ही राहुल द्रविड़ ने अपना शतक पूरा किया. ये टेस्ट क्रिकेट में उनका 12वां शतक था.
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दिन का खेल ख़तम हुआ तो सचिन 15 और द्रविड़ 110 रनों पर खेल रहे थे. भारत का स्कोर था 236 पर 2 विकेट. 90 ओवर पहले किसी ने भी ऐसी तस्वीर के बारे में नहीं सोचा था. लेकिन पहला दिन पूरी तरह से भारत के नाम रहा. और किसी को भी नहीं मालूम था कि अगले दिन उन्हें और भी बड़े आश्चर्य का सामना करना था. अगले दिन एक बार फिर भारत मात्र 2 विकेट ही खोने वाला था और इसके बदले में वो 348 रन बोर्ड पर टांगने वाला था. अगर कोई भी ऐसी भविष्यवाणी करता तो उसे वही सुनने को मिलता जो शेक्सपियर के लिखे नाटक जूलियस सीज़र के पहले ऐक्ट के दूसरे सीन में सीज़र भविष्यवक्ता से कहता है - 'He is a dreamer. Let us leave him.'
दूसरा दिन शुरू हुआ और राहुल द्रविड़ ने अपने बल्ले का स्टिकर दिखाना शुरू किया. सचिन और द्रविड़ ने तेज़ी से रन बनाने शुरू किये. सचिन की दिन की शुरुआत बहुत सॉलिड नहीं दिख रही थी लेकिन फिर मैथ्यू हॉगार्ड की एक बाहर की ओर तैरती हुई लम्बी गेंद को उन्होंने दीप कवर बाउंड्री पर भेजा. इस कड़ाके के शॉट ने सचिन को उनकी लय दिलाई और उन्होंने अगली ही गेंद को डीप बैकवर्ड बाउंड्री पर पहुंचाकर इस बात का प्रमाण भी दे दिया. यहां से उनके हाथ सधे रहे. भारत ढाई सौ रन से आगे बढ़ चुका था. अब इन दोनों ने 4 रन प्रति ओवर के औसत से रन बनाने शुरू किये.

पहले सेशन में भारत का एक भी विकेट नहीं गिरा. लेकिन फिर द्रविड़ डेढ़ शतकों से मात्र 2 रन दूर रह गए और लंच के बाद एश्ले जाइल्स की गेंद पर विकेट्स के पीछे एलेक स्टीवर्ट के हाथों कैच आउट हुए. यहां एंट्री हुई कलकत्ता के महाराज की. अब क्रीज़ पर दो ऐसे बल्लेबाज़ थे जो पिछले मैच की दूसरी पारी में नाइनटीज़ में आउट हुए थे. नॉटिंघम में सचिन ने 92 और गांगुली ने 99 रन बनाये थे. इन दोनों ने खेल वहीं से शुरू किया जहां छोड़ के गए थे. गांगुली के आने तक सचिन अपने पचास रन पूरे कर चुके थे.
द्रविड़ ने जाइल्स की लेफ़्ट आर्म स्पिन को ऑफ़ साइड में जहां-तहां खेलना शुरू किया. उन्हें जाइल्स को खेलने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी. बल्कि वो इस गेंदबाज़ी का मज़ा उठा रहे थे. उधर सचिन ने जाइल्स की एक लुप्पेदार गेंद को वाइड लॉन्ग ऑन बाउंड्री पर भेजा और अपना शतक पूरा किया. इस सेंचुरी के साथ सचिन डॉन ब्रैडमैन से आगे निकल गए और तिहरे अंकों के स्कोर के मामले में उनसे आगे बस एक ही खिलाड़ी था जो उस वक़्त कमेंट्री बॉक्स में माइक थामे उन्हें देख रहा था - सुनील गावस्कर.
एक छोटी सी कहानी
जैसा कि बताया गया था, मैच से दो दिन पहले भारतीय टीम ज्योफ़्री बॉयकॉट के घर खाने पर बुलाई गयी थी. दूसरे दिन का खेल ख़तम होने तक राहुल द्रविड़ 148 रन बनाकर आउट हो चुके थे और भारतीय टीम बेहद मज़बूत स्थिति में दिख रही थी. दिन ख़तम होने के बाद भारतीय टीम होटल जाने को थी. सभी खिलाड़ी एक-एक करके बस में चढ़ रहे थे. तभी टीम की बस के पास ज्योफ़्री बॉयकॉट की पत्नी (जो उस वक़्त उनकी लम्बे समय से पार्टनर थीं. दोनों ने 2003 में शादी की थी) मारग्रेट रेशेल आयीं और उन्होंने द्रविड़ से कहा, 'वेल प्लेड, राहुल.' राहुल ने जवाब दिया, 'इट वॉज़ योर लंच दैट डिड इट, मिसेज़ बॉयकॉट.'
आख़िरी सेशन, जहां कम रोशनी में सचिन-गांगुली ने अटैक किया
भारत का स्कोर 500 के पार हो चुका था. आख़िरी सेशन शुरू हो चुका था. सचिन 150 के पार खेल रहे थे और सौरव गांगुली अपने शतक से बस कुछ ही दूर थे. अम्पायर अशोक डिसिल्वा और डेविड ऑर्चर्ड ने अपने लाइट-मीटर निकाले और पाया कि मैदान में रोशनी कुछ कम थी. उन्होंने बल्लेबाज़ों को ऑफ़र दिया कि वो पवेलियन जा सकते थे और खेल को रोक दिया जाता. लेकिन सचिन और गांगुली ने कहा कि वो खेलेंगे. मैच रेफ़री क्लाइव लॉयड से अम्पायरों की बात हुई और खेल जारी रहा. इस 40 मिनट के दौरान सचिन और गांगुली ने इंग्लैण्ड पर कहर बरपाया.
सचिन ने एंड्रू कैडिक को पहले तो हुक मारकर स्क्वायर लेग बाउंड्री पर छक्का मारा, फिर 2 ओवर के बाद कैडिक को मिड-विकेट के ऊपर ऐसा छक्का मारा कि आज के समय के आतिशी टी-20 बल्लेबाज़ भी दीदे फाड़ के देखें. कैडिक के गेंद फेंकने तक सचिन एक इंच भी नहीं हिले. और फिर वो स्थिर सर के साथ पिच पर रूम बनाते हुए दो कदम आगे आये और गेंद से आधे रास्ते पर ही बल्ले को जा मिलाया. गेंद स्टैंड्स में 15 सीट पीछे जाकर गिरी. कमेंट्री कर रहे डेविड लॉयड बोले, 'आप बैद लाइट के बारे में बात कर रहे हैं? बल्लेबाज़ देख नहीं सकते? ज़रा ये शॉट देखिये.' इसके कुछ देर बाद सचिन ने एलेक्स ट्यूडर को हुक मारा.

दूसरी तरफ़ सौरव गांगुली ऑफ़ साइड पर बेहतरीन शॉट्स की प्रदर्शनी लगाये हुए थे. एश्ले जाइल्स को आगे बढ़कर लॉन्ग ऑफ़ पर छक्का मारकर दर्शक दीर्घा में बैठे एक बुज़ुर्ग शख्स का सिर फोड़ चुके थे. गांगुली ने फ़्लिंटॉफ़ को डीप मिड-विकेट बाउंड्री पर और हॉगार्ड को आगे बढ़कर पुल मारा. सचिन की ही तरह गांगुली ने भी जाइल्स की गेंद को मिड विकेट की ओर धकेलकर चौके के साथ अपना नौवां शतक पूरा किया. जाइल्स को मिड विकेट पर एक लम्बा छक्का मारकर उन्होंने भारत के 550 रन पूरे किये.
जाइल्स की अगली ही गेंद पर उन्होंने उससे भी लम्बा छक्का जड़ा. गेंद स्टेडियम के बाहर पहुंच चुकी थी. इसी ओवर में उन्होंने गेंद को एक बार फिर बाउंड्री का रास्ता दिखाया. सचिन के साथ ताबड़तोड़ गति में रन बनाने के दौरान ही ट्यूडर की गेंद पर वो बोल्ड हुए. रूम बनाकर स्लॉग करने के चक्कर में उनका लेग स्टम्प ज़मीन से उखड़ गया. 14 चौकों और 3 छक्कों के साथ जब गांगुली 128 रनों पर जब वापस जा रहे थे, भारत का स्कोर 600 रनों से कुछ ही दूर था.
गांगुली के आउट होते ही दिन का खेल ख़तम हुआ. सचिन 185 रनों पर अविजित खेल रहे थे. अगले दिन 8 रन और बनाने के बाद, दोहरे शतक से 7 रन पहले ही वो कैडिक की गेंद पर एलबीडब्लू आउट हुए. अच्छी और सही बाउंस पा रही पिच पर ये गेंद कुछ नीची रह गयी और सचिन के आउट होने का सबब बनी.
इसके बाद वीवीएस लक्ष्मण ने 6, अजीत अगरकर ने 2 और हरभजन ने 11 गेंदों में 18 रन बनाये. भज्जी का विकते गिरते ही कप्तान गांगुली ने 628 रनों पर पारी घोषित कर दी. इस सीरीज़ में दूसरी दफ़ा भारत अपनी पारी घोषित कर रहा था. ओवर-ऑल, इंग्लैण्ड में ऐसा तीसरी बार हो रहा था. इससे पहले 1990 के टूर पर अज़हरुद्दीन की कप्तानी में ओवल टेस्ट मैच में भारत ने 606 रनों पर पारी घोषित की थी. लेकिन ओवल और नॉटिंघम में मैच ड्रॉ रहे थे. लीड्स में भारत ने जीत दर्ज की.

सिर्फ़ औपचारिकताएं शेष
इंग्लैण्ड बल्लेबाज़ी पर आयी और 273 रनों पर ऑल आउट हो गयी. छिटपुट साझेदारियों ने इंग्लैण्ड को यहां-वहां आस ज़रूर दिलानी शुरू की लेकिन भारतीय गेंदबाज़ नियमित विकेट गिराते रहे. फ़ॉलो ऑन खेलते हुए इंग्लैण्ड 309 रनों पर ऑल आउट हो गयी. कुम्बले ने दूसरी पारी में 4 और पूरे मैच में 7 विकेट लिये. इंग्लैण्ड की तरफ़ से नासिर हुसैन ने शतक तो मारा लेकिन उनके अलावा कोई भी 50 रन पार नहीं कर सका. सिर्फ़ मार्क बाउचर और एलेक स्टीवर्ट के उल्लेखनीय योगदान रहे.
भारत ने ये मैच एक पारी और 46 रनों से जीता. अपनी पहले दिन की सॉलिड बल्लेबाज़ी के चलते (कुल 148 रन) राहुल द्रविड़ को प्लेयर ऑफ़ द मैच घोषित किया गया.