scorecardresearch
 

अंटार्कटिका में बर्फ के नीचे नई 85 एक्टिव झीलें मिली हैं... इनकी खोज दुनिया के लिए खतरा!

वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका की बर्फ के नीचे 85 नई 'सक्रिय' झीलें खोजीं. 10 साल के सैटेलाइट डेटा से पता चला. ये झीलें भरती-खाली होती रहती हैं, ग्लेशियरों की गति बढ़ाती हैं. इससे समुद्र जलस्तर प्रभावित होता है. कुल सक्रिय झीलें अब 231 हो गई है.

Advertisement
X
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के क्रायोसैट सैटेलाइट ने इन झीलों की खोज की है. (Photo: ESA)
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के क्रायोसैट सैटेलाइट ने इन झीलों की खोज की है. (Photo: ESA)

वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका की मोटी बर्फ की चादर के नीचे 85 नई झीलों की खोज की है. ये झीलें पहले किसी को पता नहीं थीं. दस साल के सैटेलाइट डेटा से यह राज खुला. ये झीलें 'सक्रिय' हैं, यानी ये समय-समय पर खाली हो जाती हैं और फिर भर जाती हैं.

इससे उनका आकार और शेप महीनों-वर्षों में बदलते रहते है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे ग्लेशियरों की स्थिरता प्रभावित होती है. बर्फ का घिसाव रुक-रुक कर होता है, जो वैश्विक समुद्र स्तर पर असर डाल सकता है.

यह भी पढ़ें: स्पेस में तिरंगा फहराना सबसे बड़ा कमाल... शुभांशु शुक्ला ने शेयर किया अनोखा अनुभव

यह खोज यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के क्रायोसैट-2 सैटेलाइट के डेटा से हुई. स्टडी को 19 सितंबर को 'नेचर कम्युनिकेशंस' जर्नल में छापा गया. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स की प्रोफेसर अन्ना होग ने कहा कि सबग्लेशियल झील क्षेत्रों का भरना-खाली होना देखना रोमांचक था. इससे पता चला कि अंटार्कटिका की पानी की गतिविधियां पहले सोचे से कहीं ज्यादा डायनामिक हैं. हमें इन झीलों की लगातार निगरानी करनी होगी.

Antarctica 85 Active Lakes

झीलों की डिटेल: कितनी पुरानी थीं और अब क्या?

पहले अंटार्कटिका में 146 सक्रिय सबग्लेशियल झीलें जानी जाती थीं. अब इस खोज से कुल संख्या 231 हो गई. स्टडी लीड अथॉर सैली विल्सन ने बताया कि झीलों के भरने-खाली होने को देखना बहुत मुश्किल है. दुनिया भर में सिर्फ 36 बार ये नजारा देखा गया था. हमारी स्टडी में 12 और नजारे मिले, कुल 48 हो गए. 

Advertisement

ये झीलें बर्फ के नीचे छिपी हैं. गर्मी धरती के अंदर से ऊपर आती है या बर्फ का बेडरॉक पर घिसाव गर्मी पैदा करता है. इससे बर्फ पिघलकर पानी बनता है. झीलें बन जाती हैं. कभी-कभी ये झीलें अचानक खाली हो जाती हैं. पानी का बहाव बर्फ के नीचे चिकनाई देता है. इससे बर्फ तेजी से बेडरॉक पर फिसलती है. महासागर की ओर बढ़ जाती है.

यह भी पढ़ें: जिससे तबाह हो गया था स्विट्जरलैंड का ब्लैटेन गांव... अब वो ग्लेशियर ही नहीं बचा

कैसे हुई खोज? सैटेलाइट की जादुई नजर

स्टडी के लिए 2010 से 2020 तक का डेटा इस्तेमाल किया गया. क्रायोसैट-2 सैटेलाइट समुद्री बर्फ, ग्लेशियर और बर्फ चादरों की मोटाई मापता है. इसमें रडार अल्टीमीटर है, जो बर्फ की ऊंचाई में छोटे बदलाव पकड़ लेता है. 

झीलों के भरने-खाली होने से बर्फ ऊपर-नीचे होती है. डेटा से पता चला कि दर्जनों जगहों पर बर्फ हल्की डूब रही है या ऊपर आ रही है. वैज्ञानिकों ने 25 झीलों के क्लस्टर और 5 नई नेटवर्क पाए. इनमें झीलें आपस में जुड़ी हैं. एक का खाली होना दूसरे को प्रभावित करता है. इससे बर्फ की गति तेज होती है.

Antarctica 85 Active Lakes

क्यों महत्वपूर्ण है यह खोज? समुद्र स्तर पर खतरा

यह खोज बर्फ चादरों की गतिविधियों को समझने में मदद करेगी. इससे क्लाइमेट मॉडल बेहतर बनेंगे. विल्सन ने कहा कि अभी के मॉडल्स में सबग्लेशियल पानी की गतिविधियां शामिल नहीं हैं. ये नए डेटा झीलों की लोकेशन, साइज और बदलाव के समय बताएंगे. इससे अंटार्कटिका के नीचे पानी का बहाव समझ आएगा.

Advertisement

अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने से समुद्र स्तर बढ़ता है. अगर ग्लेशियर तेजी से महासागर में जाते हैं, तो तटीय इलाके डूब सकते हैं. दुनिया भर में करोड़ों लोग प्रभावित होंगे. यह खोज जलवायु परिवर्तन के असर को और साफ करती है.

यह भी पढ़ें: मुंबई से शंघाई, न्यूयॉर्क से लंदन तक... क्या समंदर में डूब जाएंगे दुनिया के बड़े शहर?

भविष्य में क्या? निगरानी जरूरी

वैज्ञानिक कहते हैं कि अंटार्कटिका का पानी का सिस्टम ज्यादा जटिल है. हमें सैटेलाइट से लगातार नजर रखनी होगी. इससे समुद्र स्तर की भविष्यवाणी सटीक होगी. भारत जैसे देशों के लिए भी यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि बंगाल की खाड़ी में बाढ़ का खतरा बढ़ेगा. यह खोज बताती है कि धरती के राज अभी भी छिपे हैं. वैज्ञानिकों का काम जारी है. जलवायु संकट से लड़ने के लिए ऐसी खोजें जरूरी हैं. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement