scorecardresearch
 

3500 KM लंबी दरार... जमीन के नीचे ज्वालामुखी और भूकंप से दो हिस्सों में टूट रहा अफ्रीका

अफ्रीका धीरे-धीरे दो हिस्सों में बंट रहा है. अब वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि पृथ्वी की गहराई से निकलने वाला सुपरप्लम इसका कारण है. केन्या, मलावी और लाल सागर में मिली गैसों की रासायनिक निशानियां बताती हैं कि यह सुपरप्लम 2900 किमी की गहराई से आ रहा है. सुपरप्लम से ज्वालामुखी और भूकंप बढ़ रहे हैं. भविष्य में यह एक नया महासागर बना सकता है.

Advertisement
X
अफ्रीका दो हिस्सों में टूट रहा है, वैज्ञानिकों ने इसकी वजह खोज निकाली है. (फोटोः Reuters)
अफ्रीका दो हिस्सों में टूट रहा है, वैज्ञानिकों ने इसकी वजह खोज निकाली है. (फोटोः Reuters)

  • अफ्रीका का टूटना: पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम (EARS) के कारण अफ्रीका धीरे-धीरे दो हिस्सों में बंट रहा है.
  • सुपरप्लम की खोज: पृथ्वी की गहराई से निकलने वाला गर्म चट्टानों का विशाल सुपरप्लम इस प्रक्रिया का कारण है.
  • नई खोज: केन्या, मलावी और लाल सागर में गैसों में गहरे मेंटल की रासायनिक निशानी मिली, जो सुपरप्लम की पुष्टि करती है.
  • प्रभाव: यह रिफ्ट 3500 किमी लंबा है, जो 3.5 करोड़ साल से अफ्रीका को तोड़ रहा है, जिससे ज्वालामुखी गतिविधियां बढ़ रही हैं.
  • अध्ययन: 12 मई 2025 को Geophysical Research Letters में प्रकाशित, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के शोधकर्ताओं ने यह खोज की.

अफ्रीका महाद्वीप में एक ऐसी भूवैज्ञानिक घटना हो रही है, जो इसे धीरे-धीरे दो हिस्सों में बांट रही है. इस प्रक्रिया को पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम (EARS) कहा जाता है. ये 3500 किमी लंबा है. 3.5 करोड़ साल से चल रहा है. वैज्ञानिकों ने हाल ही में खोजा कि पृथ्वी की गहराई से निकलने वाला गर्म चट्टानों का एक विशाल सुपरप्लम इसके टूटने और ज्वालामुखी गतिविधियों का कारण है. केन्या, मलावी और लाल सागर में मिले गैसों के रासायनिक निशान इस सुपरप्लम की मौजूदगी की पुष्टि करते हैं. यह अध्ययन 12 मई 2025 को Geophysical Research Letters में प्रकाशित हुआ. 

Advertisement

पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम (EARS) क्या है?

EARS पृथ्वी का सबसे बड़ा सक्रिय महाद्वीपीय रिफ्ट सिस्टम है, जो अफ्रीका को दो हिस्सों में बांट रहा है. यह प्रक्रिया 3.5 करोड़ साल पहले शुरू हुई और अब भी जारी है. यह लाल सागर (उत्तर-पूर्वी अफ्रीका) से मोजाम्बिक (दक्षिणी अफ्रीका) तक फैला है. करीब 3500 किमी लंबे रिफ्ट में घाटियां और दरारें बनी हैं. 

यह भी पढ़ें: बर्फ पिघलेगी... बारिश बढ़ेगी...गंगा का पानी का फ्लो 50% बढे़गा... अधिक आपदाएं आएंगी, IIT रुड़की के वैज्ञानिकों की स्टडी

Why Africa is Breaking Apart

इसने इथियोपिया में एर्टा एले ज्वालामुखी जैसी गतिविधियों को बढ़ाया, जिससे लावा झीलें बनीं. रिफ्ट की वजह से अफ्रीका की लिथोस्फेयर (पृथ्वी की बाहरी चट्टानी परत) टूट रही है, जिससे महाद्वीप की सतह पर गहरी घाटियां बन रही हैं. वैज्ञानिकों को पहले नहीं पता था कि इस विशाल प्रक्रिया का सही कारण क्या है.

सुपरप्लम: पृथ्वी की गहराई का रहस्य

नए अध्ययन में पता चला कि EARS के नीचे पृथ्वी की गहराई में एक सुपरप्लम है. यह गर्म, तरल चट्टानों का एक विशाल उभार है, जो पृथ्वी के मेंटल (पृथ्वी की मध्य परत) और कोर (केंद्र) के बीच से शुरू होता है, यानी कर 2900 किमी की गहराई से. यह सुपरप्लम ऊपर उठकर अफ्रीका की ठोस लिथोस्फेयर पर दबाव डाल रहा है.

Advertisement

लिथोस्फेयर को तोड़ रहा है, जिससे दरारें और ज्वालामुखी गतिविधियां बढ़ रही हैं. हवाई द्वीप समूह की तरह नहीं, जो एक पतली धारा से बना, बल्कि यह एक विशाल गर्म द्रव्यमान है जो पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है.

यह भी पढ़ें: क्या लंदन-न्यूयॉर्क में भी बारिश मचाती है हर बार कहर? क्या है वहां दिल्ली-मुंबई-चेन्नई से अलग

बियिंग चेन, अध्ययन की पहली लेखिका और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की शोधकर्ता ने बताया कि EARS के अलग-अलग हिस्सों में गैसों की रासायनिक निशानियां एक जैसी हैं, जो बताता है कि ये सभी एक ही गहरे स्रोत से आ रही हैं.

Why Africa is Breaking Apart

नई खोज कैसे हुई?

वैज्ञानिकों ने केन्या के मेंगाई भूतापीय क्षेत्र में गैसों का अध्ययन किया. नियॉन (Ne) आइसोटोप्स की जांच की. ये नोबल गैसें (जैसे हीलियम, नियॉन) रासायनिक रूप से स्थिर होती हैं. लंबे समय तक रहती हैं, इसलिए इनका उपयोग भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को ट्रेस करने में होता है. 

मेंगाई की गैसों में गहरे मेंटल की रासायनिक निशानी मिली, जो पृथ्वी के कोर-मेंटल सीमा से आ रही थी. यह निशानी लाल सागर (उत्तर) और मलावी (दक्षिण) की ज्वालामुखीय चट्टानों से मिलती थी, जो EARS के साथ जुड़ी थी. यह निशानी हवाई के प्राचीन ज्वालामुखीय चट्टानों जैसी थी, जहां भी एक मेंटल प्लम मौजूद है.

Advertisement

चेन ने कहा कि जब हमें नियॉन आइसोटोप्स में गहरे मेंटल की निशानी मिली, तो हम उत्साहित थे. लेकिन यह निशानी बहुत छोटी थी, इसलिए हमें डेटा को बार-बार जांचना पड़ा. कई घंटों की मेहनत के बाद, वैज्ञानिकों ने पुष्टि की कि यह निशानी सही है. EARS के अन्य हिस्सों से मेल खाती है.

यह भी पढ़ें: 20 साल बाद जागा विशालकाय ब्लैक होल... सूरज से 10 लाख गुना ज्यादा बड़ा

सुपरप्लम ने अफ्रीका में कई बदलाव किए... 

  • रिफ्ट का निर्माण: सुपरप्लम की गर्मी और दबाव ने लिथोस्फेयर को पतला और कमजोर किया, जिससे दरारें बनीं.
  • ज्वालामुखी गतिविधियां: इथियोपिया, केन्या और तंजानिया में ज्वालामुखी सक्रिय हुए. एर्टा एले जैसे ज्वालामुखी इसका उदाहरण हैं.
  • भूकंपीय गतिविधियां: रिफ्ट क्षेत्र में भूकंप आम हैं, क्योंकि सुपरप्लम लगातार दबाव डाल रहा है.
  • भविष्य का महासागर: वैज्ञानिकों का मानना है कि लाखों साल बाद EARS एक नया महासागर बना सकता है, जैसे लाल सागर आज बन रहा है.

चेन ने बताया कि सुपरप्लम एक विशाल गर्म द्रव्यमान है, जो ऊपर उठकर लिथोस्फेयर को तोड़ रहा है. यह इतना बल पैदा करता है कि ज्वालामुखी गतिविधियां बढ़ रही हैं.

Why Africa is Breaking Apart

हवाई से तुलना

हवाई द्वीप समूह भी एक मेंटल प्लम के ऊपर बने हैं, लेकिन वहां का प्लम एक पतली, लावा लैंप जैसी धारा है.  EARS का सुपरप्लम इससे अलग है. यह एक बड़ा, फैला हुआ द्रव्यमान है जो पूरे रिफ्ट क्षेत्र को प्रभावित करता है. यह पृथ्वी की गहराई से अधिक गर्म सामग्री ला रहा है, जिससे रिफ्ट की प्रक्रिया तेज हो रही है. हवाई में प्लम ने द्वीप बनाए, लेकिन EARS में यह महाद्वीप को तोड़ रहा है.

Advertisement

चुनौतियां और भविष्य

  • चुनौतियां: EARS के नीचे गहरे मेंटल की निशानियां ढूंढना मुश्किल था, क्योंकि ये गैसें बहुत कम मात्रा में थीं. पहले के अध्ययनों में डेटा विवादास्पद था.
  • भविष्य: वैज्ञानिक अब और डेटा इकट्ठा करेंगे, ताकि सुपरप्लम की गहराई, आकार और प्रभाव को और समझ सकें. यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की टीम अन्य रिफ्ट क्षेत्रों में भी अध्ययन करेगी.

चेन ने कहा कि हमें इस निशानी को अलग करना मुश्किल था. हमने हर डेटा को बार-बार जांचा, लेकिन अब हमें यकीन है कि यह सुपरप्लम की मौजूदगी की पुष्टि करता है. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement