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आखिर क्यों श्रीकृष्ण ने तोड़ा था अपनी पत्नी सत्यभामा का घमंड, जानें इसके पीछे की कथा

Janmashtami 2024: भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को होने के कारण इसको कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं. जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण के लिए छप्पन भोग बनाना चाहिए. वहीं, जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण से जुड़ीं कथाएं भी सुननी चाहिए. जन्माष्टमी के मौके पर आइए जानते हैं श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा से जुड़ी ये कहानी.

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आखिर क्यों श्रीकृष्ण ने तोड़ा था अपनी ही सत्यभामा का घमंड
आखिर क्यों श्रीकृष्ण ने तोड़ा था अपनी ही सत्यभामा का घमंड

Janmashtami 2024: पूरे भारत में श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसी शुभ दिन पर भगवान कृष्ण का अवतरण हुआ था. जन्माष्टमी का पावन पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. श्रीकृष्ण से जुड़ीं कई कथाएं प्रचलित हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण की 16108 पत्नियां थीं. जिनमें से श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी का नाम सत्यभामा था. सत्यभामा बेहद घमंडी थी लेकिन श्रीकृष्ण ने एक बार अपनी पत्नी का घमंड चूर कर दिया था. आइए जानते हैं पूरी कहानी-

श्रीकृष्ण ने तोड़ा था सत्यभामा का घमंड

श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा का मानना था कि वो सबसे सुंदर और अमीर है क्योंकि उनके पिता बहुत ही धनी थे. सत्यभामा के पास हर तरह के आभूषण और रत्न थे. इसलिए, सत्यभामा में घमंड था जो उनकी सबसे बड़ी समस्या थी. 

एक बार श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर सत्यभामा ने सोचा कि वो सबको दिखाएगी कि वो श्रीकृष्ण से कितना प्रेम करती है. तो उसने तय किया कि वो श्रीकृष्ण के वजन जितना सोना शहर के लोगों में बांटेगी, जिसे तुलाभार प्रथा के नाम से जाना जाता है. दरअसल, यह प्रथा उस समय मंदिरों में होती थी. लोग एक बड़े तराजू में अपने वजन के बराबर का मक्खन, घी या चावल या कुछ चीजें रखकर लोगों में बांटते थे. 

सत्यभामा ने तुलाभार की व्यवस्था की. लोग बहुत प्रभावित हुए लेकिन, श्रीकृष्ण पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ और वे जाकर तराजू की एक तरफ बैठ गए. सत्यभामा जानती थी कि उनका वजन लगभग कितना है और उसने उतना सोना तैयार ही रखा था. पर जब उसने सोना दूसरे पलड़े पर रखा तो श्रीकृष्ण का कांटा थोड़ा भी नहीं हिला. 

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ऐसा ही कुछ तब भी हुआ था जब श्रीकृष्ण एक बच्चे थे. एक राक्षस आकर उन्हें ले जाने लगा. तब श्रीकृष्ण ने अपना वजन इतना बढ़ा लिया था कि राक्षस वहीं गिर पड़ा और भगवान ने उसके ऊपर बैठ कर उसे कुचल दिया था. 

सत्यभामा हुई शहर वालों के सामने शर्मसार

तो इस बार भी श्रीकृष्ण अपना वजन बढ़ा कर तराजू में बैठ गए. सत्यभामा ने उतना सोना दूसरे पलड़े पर रख दिया जितना श्रीकृष्ण के वजन के हिसाब से बराबर था, परंतु कांटा जरा भी नहीं हिला. तब तक शहर के सभी लोग ये घटना देखने के लिए आ गए थे. उसके बाद सत्यभामा ने अपने नौकरों से वो सभी गहने मंगवाए जो उसके पास थे. एक के बाद एक वो गहने डालती जा रही थी ओर सोच रही थी कि काम हो जाएगा पर कुछ नहीं हुआ. तब उसने वो सब कुछ भी रख दिया जो उसके पास था पर पलड़ा जरा भी नहीं हिला. इस घटना के बाद सत्यभामा रोने लगी और सबके सामने शर्मसार भी हो गई थी. सारा शहर देख रहा था और उसके पास पर्याप्त सोना नहीं था. जिस संपत्ति को लेकर सत्यभामा घमंड करती थी आज वो भी कम पड़ गया था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे?

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तब उसने रुक्मिणी की ओर देखा, जिससे वो बहुत ही घृणा करती थी. उसने रुक्मिणी से पूछा, "अब मैं क्या करूं क्योंकि ये बात सिर्फ मेरे लिए ही नहीं पर तुम्हारे और हम सब के लिए भी बहुत शर्मनाक है"  तब रुक्मिणी बाहर गई और तुलसी के पौधे के तीन पत्ते उठा लाई. जैसे ही तुलसी के वे पत्ते उसने तराजू के दूसरे पलड़े पर रखे, कृष्ण का पलड़ा तुरंत ही ऊपर आ गया. इस तरह सत्यभामा को अपनी गलती का एहसास हुआ.

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