हरियाणा और महाराष्ट्र में अपनी हार के असल कारणों का हल ढूंढ़ने के बजाय कांग्रेस ने ईवीएम को दोषी ठहराकर अपनी लाज तो बचा लेती है पर आगामी चुनावों के लिए तैयार नहीं हो पाती है. अगर पार्टी हार के असल कारणों पर गंभीर होती तो अगले चुनावों में फिर वही गलतियां नहीं दुहराती जो पिछले चुनावों में पार्टी ने की थी. महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में नामांकन के अंतिम दिन तक कई सीटों पर कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) आपस में कैंडिडेट तय नहीं कर सके थे. दिल्ली विधानसभा चुनावों की तैयारी को देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि एक दिन राहुल गांधी हरियाणा चुनावों की तरह कहेंगे कि आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन होना चाहिए.आनन फानन में कांग्रेस सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय करने में लग जाएगी. नामांकन भरने के अंतिम दिन तक पार्टी के प्रत्याशी तय होंगे. पार्टी समय पर मेहनत करेगी नहीं और घर बैठे चुनाव जीत लेना चाहती है. भारतीय जनता पार्टी को छोड़िए इंडिया गठबंधन के दलों को भी मेहनत करते देखते हुए कांग्रेस नेताओं को कभी जीत के लिए कुछ करने की प्रेरणा शायद नहीं मिलती है. आइये देखते हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनावों को किस तरह हाईकमान लीस्ट प्रॉयरिटी में अभी रखा हुआ है.
1-दिल्ली न्याय यात्रा के लिए केवल हिमाचल सीएम को मिली फुरसत!
दरअसल दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC) द्वारा दिल्ली में अपनी खोई हुई पकड़ को दोबारा पाने के उद्देश्य से शुरू की गई महत्वाकांक्षी मुहिम ‘दिल्ली न्याय यात्रा’, जिसे एक महीने पहले लॉन्च किया गया था, कठिनाइयों का सामना कर रही है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में एक भी सीट जीतने में विफल रही कांग्रेस के लिए यह यात्रा एक बड़ा प्रयास था। हालाँकि, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की यात्रा के शुभारंभ में उपस्थिति ने इसे शुरुआती गति दी थी, लेकिन इसके बाद से वरिष्ठ नेतृत्व की अनुपस्थिति ने इस अभियान की गति धीमी कर दी है.
इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि DPCC के नेताओं ने बताया कि उन्होंने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के कई प्रमुख नेताओं को आमंत्रित किया था. इसमें कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, और पूर्वांचली, जाट, मुस्लिम और दलित समुदाय के प्रभावशाली नेताओं को शामिल होने के बुलावा भेजा गया था. लेकिन किसी को भी इस यात्रा में आने की दिलचस्पी नहीं है. दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में आयोजित हो रही यात्रा अब अपने चौथे और अंतिम चरण में है. कह जा रहा है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी कुछ दिनों में इसमें शामिल होने वाले हैं.अपने सूत्र के हवाले एक्सप्रेस लिखता है कि इस यात्रा में शामिल होने के लिए कांग्रेस का स्थानीय इकाई ने कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, राज्यसभा और लोकसभा सांसद, और दिल्ली-एनसीआर के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को दिल्ली कांग्रेस प्रमुख देवेंद्र यादव के साथ यात्रा में शामिल होने का निमंत्रण दिया था, लेकिन उनकी भागीदारी बहुत कम रही.
दिल्ली कांग्रेस ने राहुल गांधी जी की भारत न्याय यात्रा के विस्तार के रूप में अकेले यह यात्रा आयोजित की है. उन्हें उम्मीद है कि 9 दिसंबर को धन्यवाद कार्यक्रम प्रियंका गांधी शामिल हो सकती हैं. लेकिन अन्य वरिष्ठ नेताओं ने अभी तक अपनी भागीदारी की पुष्टि नहीं की है.
2-केजरीवाल दिल्ली पर फोकस्ड हैं और गांधी फैमिली यूपी में समय जाया कर रही
दिल्ली में आम आदमी पार्टी घर-घर घूम रही है.चूंकि अरविंद केजरीवाल खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अब राष्ट्रीय नेता बन चुके हैं . पर वो किसी भी दूसरे प्रदेश में अपने को जाया न करके दिल्ली की गलियों की खाक छान रहे हैं. और दिल्ली में प्रदेश कांग्रेस ने अपने की राज्य में पुनर्जीवित करने के लिए एक यात्रा शुरू की तो उसे पार्टी के बड़े नेताओं का सपोर्ट मिलना चाहिए था पर गांधी फैमिली अभी नहीं आई इसलिए दूसरे और तीसरी श्रेणी के नेताओं को भी इस यात्रा के समय नहीं है. आप सोच सकते हैं कि ऐसी स्थिति में कांग्रेस का कल्याण कैसे हो सकता है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को दिल्ली में इस यात्रा को समय देना चाहिए था तो वो यूपी में जहां पार्टी उपचुनाव लड़ने तक का ताकत नहीं रखती वहां समय जाया कर रहे हैं.बाद में जब दिल्ली विधानसभा चुनाव हार जाएंगे तो कांग्रेसी ईवीएम पर ठीकरा फोड़ेंगे.
3-हारने पर डाल देते हैं क्षेत्रीय नेताओं की जिम्मेदारी
हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की बुरी तरह हुई हार पर कांग्रेस कार्यसमिति में गंभीर चर्चा हुई है.हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इन प्रदेशों में हार का ठीकरा राज्य की इकाइयों पर फोड़ दिया. राज्य की इकाइयों को मौके पर सहयोग मिलेगा नहीं और शीर्ष नेतृत्व हार का ठीकरा स्थानीय नेतृत्व पर थोपा जाएगा. एक -एक टिकट फाइनल करने की अथॉरिटी कांग्रेस में हाईकमान करती है, सारी प्लानिंग , कैंपनिंग आदि केंद्रीय नेतृत्व का दखल होता है और हारने पर जिम्मेदारी ली नहीं जाती है.
मीटिंग में मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, आखिर कब तक राज्यों के नेता राष्ट्रीय नेताओं के साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ते रहेंगे? मल्लिकार्जुन खड़गे को ये सलाह देने से पहले कोशिश ये करनी होगी कि कांग्रेस एजेडा सेट करे और बीजेपी को भी स्थानीय मुद्दों पर रिएक्ट करने के लिए घसीट लाये. जहां तक स्थानीय और क्षेत्रीय नेतृत्व खड़ा करने बात है, मल्लिकार्जुन खड़गे के विचार उत्तम हैं. पर जब उन्हें सहयोग नहीं मिलेगा तो स्थानीय नेतृत्व पैदा होने से पहले मर जाएगा. दिल्ली में स्थानीय इकाई ने आगे बढ़कर कुछ किया तो उसे कहीं से समर्थन मिलता नजर नहीं आ रहा है. नामांकन दाखिल होने के दिन तक टिकट बांटे जाएंगे , सीट शेयरिंग पर बात होती रहेगी तो स्थानीय नेतृत्व क्या कर लेगी.