उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) का पहला चरण समाप्ति की ओर है. इस बीच मीडिया में ऐसी खबरें आईं हैं कि एसआईआर के चलते भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के माथे पर गंभीर चिंता की लकीरें दिख रही हैं. दरअसल देखा जा रहा है कि बड़ी संख्या में शहरी मतदाता अपने वोट शहर से हटाकर गांव के पते पर स्थानांतरित कर रहे हैं. बीजेपी को डर है कि इससे शहरी क्षेत्र जो बीजेपी के आधार रहे हैं वहां पार्टी कमजोर हो सकती है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर की मानें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश की इकाई इस संकट से निपटने के लिए कमर कस ली है. कई बड़े नेताओं को उत्तर प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं को इस संबंध में सजग करने के लिए भेजा गया है.
सवाल यह है कि एसआईआर के चलते मतदाता सूचियों में होने वाला यह बदलाव 2027 के विधानसभा चुनावों पर क्या सीधा प्रभाव डाल सकता है? या भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व यूं ही कुछ ज्यादा सजग हो गया है?
यूपी में अचानक सक्रिय हो गए हैं बीजेपी के नेता
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर की मानें तो शहरी मतदाताओं के ग्रामीण क्षेत्रों की ओर बढ़ते रुझान की खबरों पर संज्ञान लेते हुए राज्य भाजपा नेतृत्व सक्रिय हो गया है. पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक ऑनलाइन बैठक में सभी सांसदों और विधायकों को SIR पर विशेष ध्यान देने का निर्देश दिया. इसके बाद दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह लगातार विभिन्न शहरी सीटों का दौरा कर रहे हैं. वे SIR की समीक्षा कर रहे हैं और कार्यकर्ताओं को यह सुनिश्चित करने को कह रहे हैं कि शहरी मतदाता अपने मौजूदा निर्वाचन क्षेत्र में ही वोट बनाए रखें. पर सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी शहरी वोटर्स को लेकर इतनी चिंता क्यों कर रही है.
बीजेपी यूपी के ग्रामीण क्षेत्रों में भी मजबूत है
अगर पिछले कुछ चुनावों की बात करें तो समझ में आएगा कि बीजेपी शहरी क्षेत्रों से अधिक ग्रामीण इलाकों में मजबूत हो चुकी है. 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने कुल 312 सीटें जीतीं, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में भारी सफलता मिली. लगभग 90% ग्रामीण सीटें जीतकर (करीब 280/310), जबकि शहरी सीटों (कुल 33 के मुकाबले) पर 80-85% जीत (करीब 27-28 सीटें). ग्रामीण वोट शेयर लगभग 43% रहा, जो शहरी (42%) से थोड़ा अधिक था. यह ट्रेंड बीजेपी की ग्रामीण पुनर्गठन रणनीति (जैसे 2014 से किसान-ओबीसी गठबंधन) से आया, जो जाति गणित से आगे निकला .
2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने यूपी की 62/80 सीटें जीतीं. ग्रामीण-प्रधान लोकसभा क्षेत्रों में मजबूत रही, लेकिन शहरी/मेट्रो क्षेत्रों (जैसे लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद) में भी 80-90% सफलता. राष्ट्रीय स्तर पर शहरी वोट शेयर 3.5% अधिक था, लेकिन यूपी में ग्रामीण समर्थन (43% वोट) शहरी (42%) से बेहतर रहा. ग्रामीण असंतोष (कृषि संकट) के बावजूद, मोदी की अपील ने ग्रामीण आधार मजबूत रखा.
वास्तव में, 2017 विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने यूपी की 312 सीटें जीतीं, जिनमें ग्रामीण सीटों (कुल 370 में से लगभग 280) पर 90% से अधिक की जीत हासिल की. 2019 लोकसभा में भी 62 सीटों में ग्रामीण-प्रधान क्षेत्रों में 75-80% सफलता मिली, जहां वोट शेयर 43% रहा जो शहरी के 42% से बेहतर था.
2022 विधानसभा में भले ही ग्रामीण जीत दर 60% घटी, लेकिन 2024 लोकसभा में ग्रामीण वोट शेयर 36% रहा, जो शहरी (38%) से मुश्किल से कम था. चूंकि 2024 और 2022 में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण डेटा 2017 और 2019 का ही होना चाहिए. क्योंकि चुनाव हारने के दौरान तो अपने परिवार के भी वोट नहीं मिलते हैं.
SIR से अगर शहरी मतदाता (जो अक्सर प्रवासी मजदूर या मिडिल क्लास होते हैं) गांव लौटते हैं, तो ये बीजेपी के लिए ग्रामीण मजबूती को और सुदृढ़ करेंगे. उदाहरणस्वरूप, पूर्वांचल और बुंदेलखंड जैसे ग्रामीण इलाकों में बीजेपी का OBC-SC गठबंधन पहले से मजबूत है, जहां मोदी की 'सबका साथ, सबका विकास' अपील ने किसानों को जोड़ा. ये शिफ्ट बीजेपी को नुकसान नहीं, बल्कि ग्रामीण वोट बैंक को विस्तार देगा. SIR से डिलीट होने वाले वोटर्स में बीजेपी समर्थक भी शामिल हो सकते हैं, लेकिन कुल मिलाकर ग्रामीण आधार की मजबूती इसे बैलेंस कर देगी.
वोट शिफ्ट का पैमाना नगण्य ,कुल मतदाता सूची पर न्यूनतम प्रभाव
मीडिया की हाइप के बावजूद, SIR में शहरी से ग्रामीण शिफ्ट का स्केल इतना बड़ा नहीं है कि बीजेपी का शहरी किला कमजोर पड़ जाए. यूपी में कुल मतदाता संख्या 15 करोड़ से अधिक है, और SIR का पहला चरण (नवंबर-दिसंबर 2025) मुख्य रूप से वेरिफिकेशन पर केंद्रित है, जहां डुप्लिकेट या मृत वोटर्स हटाए जा रहे हैं.
चुनाव आयोग के अनुसार, शहरी क्षेत्रों (जैसे लखनऊ, कानपुर) में चैलेंजेस हैं, लेकिन शिफ्ट होने वाले वोटर्स की संख्या 1-2 लाख से ज्यादा अनुमानित नहीं है. लोकल मीडिया की खबरों को आधार मानें तो पता चलता है कि ये शिफ्टिंग मुख्यतः प्रवासी मजदूरों के कारण हो रही है, जो COVID के बाद गांव लौटे और अब स्थायी पते पर अपडेट करवा रहे हैं.
एक्सप्रेस ने बीजेपी नेताओं को हवाले से बताया है कि कम से 10 से 12 प्रतिशत लोग अपने पते अपने गांवों में ले जा रहे हैं. पहली बात तो यह बढ़ चढ़कर बताया जा रहा है. दूसरी बात यह भी है कि अगर 10 से 12 प्रतिशत वोटर्स गांव के पते पर शिफ्ट हो रहे हैं तो उनमें सभी बीजेपी के नहीं हो सकते हैं. मान लीजिए कि बीजेपी के वोटर्स अगर 60 प्रतिशत भी शिफ्ट हो रहे हैं तो यह संख्या बहुत मामूली ही होगी.
वोट शिफ्ट होने का फायदा भी मिल सकता है
बीजेपी का शहरी बेस जो मिडिल क्लास हिंदू राष्ट्रवाद पर टिका है अभी भी मजबूत है. जैसा कि 2022 में 31/33 शहरी सीटों पर जीत से साफ. अगर ये वोटर गांव जाते हैं, तो ग्रामीण सीटों (जो यूपी की 80% हैं) पर बीजेपी का वोट शेयर बढ़ेगा, न कि घटेगा. बीजेपी नेताओं का यह तर्क की शहर में रहने वाले अपने गांव वोट देने नहीं जाएंगे, पर उन्हें यह बात समझनी होगी कि जब बिहार के एनआरआई वोटर्स दूर-दूर से वोट देने आ सकते हैं तो यहां क्यों नहीं आ सकते.
बीजेपी सरकार ने ग्रामीण-केंद्रित योजनाएं से पार्टी को मजबूत किया है
बीजेपी अब 'शहरी पार्टी' की परिभाषा से बाहर निकल चुकी है; उसकी रणनीति ग्रामीण भारत को लक्षित करने वाली है, जो SIR शिफ्ट से फायदा ही देगी. 2014 से ही 'पीएम किसान सम्मान निधि', 'उज्ज्वला योजना' और 'कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड' जैसी स्कीम्स ने ग्रामीण यूपी में बीजेपी को मजबूत किया. 2019 में ग्रामीण वोट शेयर 43% पहुंचा, क्योंकि OBC (जैसे कुर्मी, लोधी) और SC (जैसे पासी) समुदायों ने बीजेपी को चुना. SIR से अगर शहरी मतदाता (जो अक्सर BJP समर्थक होते हैं) गांव शिफ्ट होते हैं, तो ये ग्रामीण बूथों पर पार्टी की पकड़ बढ़ाएंगे. 2022 के विधानसभा चुनावों में 2019 के मुकाबले गांवों में बीजेपी को कम सफलता मिली थी. उसके हिसाब से ये और भी जरूरी है कि पार्टी की रणनीति ग्रामीण केंद्रित होनी चाहिए. एसआईआर अगर डिफॉल्ड में ये कर रहा है तो यह फायदेंमंद ही है.ये शिफ्ट बीजेपी को 2027 विधानसभा के लिए ग्रामीण कैंपेन का बूस्टर देगा.
शहरी बेस की स्थिरता बीजेपी को चिंतामुक्त बनाती है
मिडिल क्लास सपोर्ट और डेमोग्राफिक एडवांटेज शहरी क्षेत्र बीजेपी का ट्रेडिशनल स्ट्रॉन्गहोल्ड हैं, और SIR शिफ्ट से ये कमजोर नहीं होंगे. क्योंकि बाकी शहरी मतदाता (नॉन-माइग्रेंट मिडिल क्लास) अभी भी मजबूती से बंधे हैं. 2024 लोकसभा में शहरी वोट शेयर 38% रहा, जो ग्रामीण से ऊपर था, क्योंकि 'राम मंदिर', 'आर्टिकल 370' जैसे मुद्दों ने शहरी हिंदू मिडिल क्लास को एकजुट किया. SIR में शिफ्ट होने वाले मुख्यतः लोअर-इनकम माइग्रेंट्स हैं, जो ग्रामीण जड़ों से जुड़े हैं. ये BJP के कोर वोटर (अपर मिडिल क्लास) नहीं हैं. लखनऊ, नोएडा जैसे मेट्रो में BJP की 94% जीत (2022) बरकरार रहेगी, क्योंकि ये वोटर स्थानीय रहेंगे.
चुनाव आयोग की रिपोर्ट्स दिखाती हैं कि शहरी चुनौतियां (जैसे BLO प्रेशर) हैं, लेकिन वोट शिफ्ट का प्रभाव 5-10% सीट्स तक सीमित है. बीजेपी को डर इसलिए सतही है, क्योंकि शहरी डेमोग्राफिक्स (युवा, एजुकेटेड) पार्टी के पक्ष में हैं. अगर ग्रामीण शिफ्ट से कुछ वोट कम भी होते हैं, तो शहरी कैंपेन (डिजिटल, इवेंट्स) इसे कवर कर लेंगे.
अंततः, SIR शिफ्ट बीजेपी के लिए लॉन्ग-टर्म बेनिफिट है, न कि नुकसान. ये पार्टी को ग्रामीण भारत का पूर्ण मास्टर बनाएगा. यूपी जैसे राज्य में, जहां 70% आबादी ग्रामीण है, शहरी फोकस सीमित रखना जोखिम भरा होता है. 2017 की लैंडस्लाइड जीत ग्रामीण स्वीप से आई, और SIR से ये ट्रेंड मजबूत होगा. अगर शहरी वोटर गांव जाते हैं, तो ग्रामीण सीटों पर BJP का वोट शेयर 2-3% बढ़ सकता है, जो 2027 चुनावों में 10-15 अतिरिक्त सीटें दिला सकता है.