अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी पर बवाल मचा हुआ है. लखनऊ के एक जाने माने रजवाड़ा परिवार से रिश्ता रखने वाले प्रोफेसर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रह चुके हैं. दरअसल इनकी गिरफ्तारी कई कारणों से लोगों को गैर वाजिब लगती है. क्योंकि उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से अपनी पोस्ट में कोई भी शब्द ऐसा नहीं लिखा है जो गैरकानूनी हो. यहां तक कि बीजेपी के भी कुछ नेताओं को महमूदाबाद की गिरफ्तारी नहीं पच रही है. पर महमूदााद ने अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे तीर चलाएं हैं जो बहुत मारक हैं. इस तरह देखा जाए तो वो सड़क पर पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले अनपढ़ लोगों से अधिक खतरनाक बन जाते हैं. क्योंकि वो उस विचारधारा के पोषक बन जाते हैं जो युद्धकाल में भी भारतीय सेना और भारत की चुनी हुई सरकार की कट्टर विरोधी है.
फेसबुक पर ऑर्टिकल लिखते हुए वही नीति अपनाई है जो भारत की आजादी के पहले कोई लेखक कलम चलाते हुए अंग्रेजी राज के खिलाफ न बोलते हुए भी सारी दुर्दशा का जिम्मेदार उन्हें ठहरा देता था. यह इस तरीके से किया जाता था कि अंग्रेजों के खिलाफ नफरत भी पैदा हो जाए और वो कानून से साफ साफ बच भी निकलें. यही कारण है कि महमूदाबाद से बहुसंख्यक हिंदू समुदाय में बहुत नाराजगी है. आइये पहले देखते हैं कि वो कौन से कारण हैं जिसके चलते लगता है कि प्रोफेसर अली खान निर्दोष हैं उन्हे जानबूझकर फंसाया गया है. उसके बाद चर्चा करते हैं कि वो कौन से कारण हैं जिनके चलते उनकी गिरफ्तारी सही लगती है.
1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन
अली खान की पोस्ट में कर्नल सोफिया कुरैशी की प्रेस ब्रीफिंग को भारत की विविधता का प्रतीक बताया गया और सामाजिक न्याय के लिए सवाल उठाए गए हैं. उन्होंने लिखा कि हिंदुत्ववादियों की प्रशंसा तभी सार्थक है, जब यह मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भीड़ हिंसा और अवैध बुलडोजिंग जैसे मुद्दों को संबोधित करे. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि यह पोस्ट एक सामान्य सामाजिक टिप्पणी थी, जिसमें कुछ भी आपराधिक या सांप्रदायिक नहीं था.
यही कारण है कि अशोका विश्वविद्यालय की फैकल्टी और 1,100 से अधिक शिक्षाविदों, लेखकों, और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उनकी रिहाई की मांग करते हुए कहा कि यह गिरफ्तारी निराधार और असहनीय है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करती है.
2. कमजोर कानूनी आधार
FIR में जो आरोप हरियाणा पुलिस ने लगाए हैं वो इतने खास नहीं हैं कि किसी को पुलिस तुरंत उठा ले. हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने एक शिकायत पर उनकी टिप्पणी को सैन्य महिला अधिकारियों के लिए अपमानजनक और सांप्रदायिक अशांति को बढ़ावा देने वाला बताया. इसके साथ ही भाजपा युवा मोर्चा के महासचिव योगेश जठेरी ने भी शिकायत की है जिसमें उन पर भारत की संप्रभुता और एकता को खतरे में डालने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, और विदेशी ताकतों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया है.
कानूनी विशेषज्ञों और विश्लेषकों का मानना है कि ये आरोप अस्पष्ट और अतिशयोक्तिपूर्ण हैं. उनकी पोस्ट में सैन्य अधिकारियों का अपमान नहीं किया गया है, बल्कि उनकी प्रशंसा की गई है. महमूदाबाद की पोस्ट में न तो कोई प्रत्यक्ष सांप्रदायिक या राष्ट्र-विरोधी बयान नहीं है.
3. सैन्य सम्मान का गलत इस्तेमाल
अली खान की पोस्ट में कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की प्रेस ब्रीफिंग को भारत की ताकत और विविधता का प्रतीक बताया गया था. आलोचकों का कहना है कि उनकी टिप्पणी को सैन्य अधिकारियों के अपमान के रूप में गलत ढंग से पेश किया गया. उनकी गिरफ्तारी को सेना के सम्मान को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश माना जा रहा है, जो सेना की गरिमा को भी कमजोर करता है.
महमूदाबाद क्या इन सवालों का जवाब देंगे?
1- क्या महिला सैनिकों की उपलब्धियों को पाखंड कहा जा सकता है
महमूदाबाद अपनी पोस्ट में लिखते हैं कि ...अंत में, मुझे बहुत खुशी है कि कई दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफिया कुरैशी की तारीफ कर रहे हैं, लेकिन शायद वे उतनी ही जोर-शोर से यह भी मांग करें कि भीड़ द्वारा लिंचिंग, मनमाने ढंग से बुलडोजिंग, और बीजेपी की नफरत फैलाने वाली नीतियों के शिकार लोगों को भारतीय नागरिकों के रूप में संरक्षण दिया जाए. दो महिला सैनिकों का अपनी उपलब्धियां प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह दिखावा जमीनी हकीकत में बदलना चाहिए, वरना यह सिर्फ पाखंड है.
महमूदाबाद अगर सामान्य दिनों में यही बात लिखते तो इसे सामान्य तौर पर ही लिया जाता. पर युद्ध काल में एक विद्वान प्रोफेसर से यह उम्मीद की जाती है कि भारतीय सेना के विषय में इस तरह की टिप्पणी तो कम से कम न ही करे. यह संभव हो सकता है कि भारतीय सेना में महिलाओं की उपलब्धियां अभी पुरुषों के मुकाबले कम है. पर प्रतीकात्मक तौर पर यह बहुत कुछ है. पाकिस्तान तो अभी यह सोच भी नहीं सकता है. भारत में महिलाएं फाइटर प्लेन भी उड़ा रही हैं. महिलाओं को वॉर फ्रंट पर दुनिया के अभी बहुत कम देशों में जगह दी गई है. भारत उन गिने चुने देशों में शामिल है जहां उन्हें यह सम्मान मिल रहा है. कर्नल सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह केवल दिखावा नहीं है. प्रोफेसर को यह भी पता होगा कि पाकिस्तान उनके जैसे लोगों के विचारों को प्रमुखता से अपने देश में फैलाकर भारत को बदनाम करता है.
2. पहलगाम आतंकी हमले पर मेहमूदाबाद की पोस्ट में जिहादियों की करतूत का कोई जिक्र क्यों नहीं?
प्रोफेसर महमूदाबाद ने एक पोस्ट उस रात भी लिखी थी, जिस दिन पहलगाम में 26 हिंदुओं को उनकी धार्मिक पहचान पूछ-पूछकर मारा गया था. ये अलग बात है कि उस पोस्ट में मेहमूदाबाद आतंकी घटना की भर्त्सना करते हैं, लेकिन आतंकी जिहादी करतूत और उसकी मानसिकता का उतना विश्लेषण नहीं करते हैं, जितना वे भारत के जवाबी हमले के बाद करते हैं. 6 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू होता है. 6 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू होता है. जिसकी जानकारी देने कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह मीडिया के सामने आती हैं. इसे मोदी सरकार की रणनीति मानकर महमूदाबाद वक्त नहीं गंवाते. सेना भले पाकिस्तान से निपट रही है, वे भारत में मुसलमानों की कथित बुरी हालत का ब्योरा फेसबुक पर पटक देते हैं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे पहलगाम में आतंकी हिंदू पर्यटकों की हत्या करते हुए, कहते हैं कि मोदी को बता देना कि उसकी वजह से हमारा मजहब खतरे में हैं.
अब आतंकी तो यह बात नहीं समझेंगे कि धार्मिक उन्माद में सिर्फ मुसलमान नहीं पिसता है. हिंदू भी पिसता है. जैसे पहलगाम में पिसा. जैसे मुर्शिदाबाद में मारा गया. सिर्फ हिंदू ही क्यों, कहीं मुसलमान भी मारा जाता है. कहीं ईसाई या कहीं किसी दूसरे धर्म का भी शिकार होता है. लेकिन, यह सब बातें प्रोफेसर महमूदाबाद भी नहीं समझते होंगे, यह नहीं माना जा सकता. वे यदि सिर्फ मुसलमानों को ही पीडि़त मानकर चल रहे हैं, तो समझ लीजिये कि यह वही एजेंडे है जैसा मुस्लिम ब्रदरहुड में देखा जाता है.
प्रोफेसर कहते हैं कि कर्नल सोफिया को आगे रखना एक दिखावा है, जबकि देश में अल्पसंख्यकों के साथ मॉब लिंचिंग हो रही है और वो बुलडोजर के शिकार हो रहे हैं. प्रोफेसर को पता है कि दुनिया में मुसलमान जितना भारत में खुश हैं उतना न तो इस्लामी राष्ट्र में है और न ही अमेरिका जैसे समाज में. .इस तरह की बात अगर प्रोफेसर महमूदाबाद युद्ध काल में करते हैं तो मतलब साफ है कि उन्हे आतंकवादियों के प्रति जरूर हमदर्दी है. जो सीधे मुंह से नहीं निकल नहीं सकती इसलिए इस तरह से निकल रही है.
2-क्या वाकई आम मुसलमानों के सामने जमीनी हकीकत अलग है?
अपनी पोस्ट में महमूदाबाद लिखते हैं कि आम मुसलमानों की जमीनी हकीकत अलग है जो सरकार ने दिखाने की कोशिश की है. क्या प्रोफेसर की बात से सहमत हुआ जा सकता है? शायद नहीं. सरकारी योजनाओं में क्या मुसलमानों के साथ भेदभाव है? नौकरियों , शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं में क्या कहीं भेदभाव हो रहा है? क्या सेना, क्रिकेट आदि में कहीं से भी मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है? इन सभी का उत्तर नहीं में ही है. हां, ऐसा पाकिस्तान जरूर प्रचारित करता है. जबकि भारतीय मुसलमानों के बारे में ऐसी सोच रखने वालों को भी यह मानना पड़ेगा कि चेहरा दिखाने के लिए ही सही, भारत के पास कर्नल सोफिया कुरैशी जैसे अफसर तो हैं. पाकिस्तान में हिंदू कहां गए? महमूदाबाद अपनी सुविधा से कर्नल सोफिया और ओवैसी को मुसलमानों का नुमाइंदा मानकर अपनी पोस्ट लिखते हैं. क्योंकि, यदि वे उन्हें सिर्फ भारतीय मान लेंगे तो उनका एजेंडा आगे नहीं बढ़ पाएगा.
प्रोफेसर, आपकी पोस्ट देश के करोड़ों मुसलमानों में भारत राष्ट्र के प्रति नफरत को बढ़ावा देने के लिए काफी है. युद्ध के नाजुक समय में. इस तरह की बात का असर होता है और एक भी भटका हुआ मुसलमान पाकिस्तानी हैंडलर्स के हाथ का खिलौन बन सकता है. और मुसलमान ही क्यों, भटक तो हिंदू भी सकता है. कुलमिलाकर फायदे में दुश्मन ही होगा. ऐसे में आप सबसे पहले अपनी हिंदुस्तानी कौम के गुनहगार हैं. हरियाणा सरकार ने आपको गिरफ्तार करके सही किया, या गलत, ये अलग बहस का विषय है.
3-युद्ध क्रूर होता है, पर आतंकवाद क्या होता है?
महमूदाबाद लिखते हैं कि ...कुछ लोग बिना सोचे-समझे युद्ध की वकालत कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी युद्ध नहीं देखा, न ही किसी युद्ध क्षेत्र में रहे या वहां गए हैं. नकली सिविल डिफेंस ड्रिल का हिस्सा बनने से आप सैनिक नहीं बन जाते, न ही आप उस दर्द को कभी समझ सकते हैं जो संघर्ष के कारण नुकसान झेलने वालों को होता है. युद्ध क्रूर होता है. गरीब लोग इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतते हैं, और फायदा केवल राजनेताओं और रक्षा कंपनियों को होता है. हालांकि युद्ध अपरिहार्य है, क्योंकि राजनीति मुख्य रूप से हिंसा में निहित है. कम से कम मानव इतिहास हमें यही सिखाता है. हमें यह समझना होगा कि राजनीतिक संघर्षों का समाधान सैन्य रूप से कभी नहीं हुआ.
प्रोफेसर जितनी शिद्दत से युद्ध की मुखालफत करते हैं, काश उतनी ही शिद्दत से आतंकवाद और जिहाद का भी विरोध करते. यह सही है कि युद्ध हमेशा बुरा होता है, पर जब आतंकवाद को खत्म करने के लिए युद्ध हो तो वह हमेशा सही ही होता है. प्रोफेसर ने महाभारत के श्लोक लिखकर युद्ध की अप्रांसिगता बताई है. पर बहुत चतुराई से उस हिस्से को छुपा दिया है जब कृष्ण कहते हैं अर्जुन से कि अपने अधिकारों के लिए युद्ध जरूरी है. भारत किसी देश पर आक्रमण विस्तारवादी सोच के साथ नहीं करता है. इस बार का युद्ध भी पहलगाम में मारे गए लोगों को न्याय दिलाने के लिए शुरू हुआ था.
4-किसी देश को मिटा देने की बात करते हैं, तो आप वास्तव में क्या मांग रहे हैं? एक पूरे समुदाय का नरसंहार?
प्रोफेसर लिखते हैं कि किसी देश को मिटा देने की बात करने के बहाने किसी पूरे समुदाय के नरसंहार की मांग हो रही है. यह लिखकर महमूदाबाद अपनी विकृति मानसिकता का ही परिचय दे रहे हैं. भारत में न पाकिस्तान को मिटाने की बात होती है, न कि किसी समुदाय के नरसंहार की बात होती है. हां, यदि पाकिस्तान में झांककर देखेंगे तो पाएंगे कि वहां हिंदुओं की आबादी मुट्ठीभर रह गई और सिख तो विलुप्त होने की ही कगार पर हैं. वैसे ही जैसे कि अफगानिस्तान में हो गए. अघोषित रूप से ही सही, भारत इतना जरूर चाहता है कि बलूचिस्तान आजाद हो जाए. क्या बलूचिस्तान के लोग गैर-मुस्लिम हैं. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे 1971 में भी पाकिस्तान को मिटाने की बात हुई थी, तब करोड़ों बंगाली मुसलमानों को आजादी मिली थी.
5-युद्ध के व्यापार को आंकने वाले ने कभी आतंकवाद का भी मूल्यांकन किया?
प्रोफेसर बहुत चतुराई से युद्ध को व्यापार बताना चाहते हैं. वो लिखते हैं कि ... आखिर युद्ध से शांति कैसे आएगी? क्या अधिक हिंसा से आघात कम होता है? विश्व का सैन्य-औद्योगिक परिसर सबसे लाभकारी व्यवसाय है - 2.46 ट्रिलियन डॉलर - जबकि फार्मा उद्योग 1.6 ट्रिलियन और तेल 750 बिलियन डॉलर का है.
प्रोफेसर ने कभी आतंकवाद के बारे में हिसाब नहीं लगाया. आखिर पाकिस्तान हो या अमेरिका, कतर हो या अफगानिस्तान. दुनिया में आतंकवाद का व्यापार भी कम नहीं है. दुनिया भर के राष्ट्र अरबों-खरबों रुपये खर्च कर आतंकवादी गुटों को तैयार करते हैं. जिस काम को ये सरकारें वैध रूप से नहीं कर पाती हैं उन्हें इन आतंकवादी गुटों के जरिए करने की कोशिश की जाती है. महमूदाबाद अपनी फेसबुक पोस्ट लिखते हुए आतंकवाद के कारोबार पर रोशनी डालने के बजाय उसे पॉलिटिकल कहकर पर्दा डाल देते हैं. शर्मनाक है ये.
जो भी हो, महमूदाबाद ने फेसबुक पर अपनी राय दी है. हां, उनकी राय एक देश के रूप में भारत के सामने उसके विपरीत समय पर आई है. इसे अलग चुनौती के रूप में देखा जा सकता है. कुत्सित एजेंडा माना जा सकता है. जिसकी व्यापक भर्त्सना की जा सकती है. उस पर सवाल उठाते हुए लेख लिखे जा सकते हैं. लेकिन प्रोफेसर महमूदाबाद को गिरफ्तार करके उन्हें ज्यादा भाव देने की जरूरत नहीं थी. क्योंकि, उन्होंने जो किया, वो भारत जैसे महान देश में ही किया जा सकता है. इसलिए उनके साथ जो कुछ भी हरियाणा पुलिस ने किया वो सरासर गलत किया.