अलीगढ़ में पैदा हुए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर पीयूष चावला ने 20 दिन पहले क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से संन्यास ले लिया. वे सचिन तेंदुलकर के बाद सबसे कम उम्र में टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने वाले भारतीय हैं. लेकिन, 36 वर्षीय चावला के संन्यास और उनकी उपलब्धियों पर कोई खबर नहीं आई. यूपी के किसी सरकार महकमे उन्हें किसी नौकरी मिलने की भी कोई जानकारी नहीं है. और पीयूष चावला ही क्यों ऐसे कई बड़े नाम यूपी को गौरवान्वित करते रहे हैं, लेकिन उन्हे यूपी में किसी सरकारी नौकरी में मिलने की खबर हाल में नहीं आई. लेकिन, अलीगढ़ के ही रहने वाले क्रिकेटर रिंकू सिंह भाग्यशाली निकले हैं. उनको योगी आदित्यनाथ सरकार जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) के पद पर नियुक्त करने जा रही है.
वैसे यह कोई नई बात नहीं है. खेल कोटे से सरकारें तमाम खिलाड़ियों को अधिकारी बनाती रही है. इसी अधिकार के तहत यूपी सरकार रिंकू सिंह को भी बीएसए बनाने जा रही है. रिंकू की खेल उपलब्धियां और अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता सीधी भर्ती नियमावली-2022 के तहत एक नीतिगत निर्णय के रूप में प्रस्तुत करती है. पर जैसा कि सभी जानते हैं कि रिंकू की शादी मछली शहर सुरक्षित सीट से समाजवादी पार्टी की सांसद प्रिया सरोज से होने जा रही है. जाहिर है कि रिंकू अब केवल क्रिकेटर नहीं अब उनके हर कदम को राजनीति के चश्मे से भी देखा जाएगा. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले को कुछ राजनीतिक विश्लेषक और सोशल मीडिया चर्चाएं इसे राजनीतिक रणनीति का हिस्सा मानते हैं.
1-रिंकू सिंह ही क्यों, यूपी में तो कई स्टार क्रकेटर हैं
रिंकू सिंह के समकालीन क्रिकेटरों की बात न करें तो भी उत्तर प्रदेश ने हाल के वर्षों में कई उल्लेखनीय क्रिकेटर दिए हैं. ध्रुव जुरेल एक उभरते विकेटकीपर-बल्लेबाज, जिन्होंने 2024 में भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया.जुरेल ने रणजी ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन किया और भारत के लिए टेस्ट मैचों में भी प्रभावशाली प्रदर्शन किया.
उत्तर प्रदेश के ही रहने वाले शिवम मावी एक तेज गेंदबाज, जिन्होंने 2023 में भारत के लिए टी-20 अंतरराष्ट्रीय में डेब्यू किया.उन्होंने IPL में भी खेला है. एक अंतरराष्ट्रीय गेंदबाज के रूप मे उन्होंने अपने को स्थापित किया है. भारत के लिए टेस्ट, वनडे, और टी-20 में खेल चुके हैं.
भुवनेश्वर कुमार भी एक अनुभवी तेज गेंदबाज, जो उत्तर प्रदेश से हैं और भारत के लिए सभी प्रारूपों में खेल चुके हैं. इसके अलावा भी उत्तर प्रदेश में तमाम नए पुराने क्रिकटर रहते हैं पर ऐसा किसी को याद नहीं आ रहा है कि रिंकू सिंह जैसा किसी को अधिकारी का पद दिया गया हो. दूसरे तमाम खिलाड़ियों को सरकार डिप्टी एसपी बनाती रही है. रिंकू सिंह के साथ भी करीब 6 अन्य खिलाड़ियों को सम्मानित किए जाने की चर्चा है. पर रिंकू जैसे क्रिकेटर का नाम सामने आने पर सवाल उठने लगा है कि ऐसा अचानक सरकार को क्या समझ में आया कि रिंकू पर सरकार मेहरबान हो गई?
2. क्या रिंकू सिंह का सपा कनेक्शन काम कर रहा है
रिंकू सिंह की सगाई समाजवादी पार्टी (सपा) की सांसद प्रिया सरोज से हुई है, जो सपा के प्रभावशाली नेता और विधायक तूफानी सरोज की बेटी हैं. रिंकू सिंह से शादी करके प्रिया सरोज अब चर्चित नेत्री बन गईं हैं. युवाओं के बीच उनके चर्चे हैं. प्रिया सरोज का मछलीशहर से सांसद चुना जाना उनके परिवार के राजनीतिक प्रभाव को दर्शाता है.
रिंकू की इस परिवार से नजदीकी यूपी की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए एक रणनीतिक अवसर हो सकता है. रिंकू को एक प्रतिष्ठित सरकारी पद देकर भाजपा सरकार सपा के प्रभाव वाले क्षेत्रों में घुसपैठ कर सकती है. बीजेपी सरकार यह नियुक्ति करके सपा समर्थकों के बीच सकारात्मक संदेश भेजने की तैयारी में कि बीजेपी सरकार की नजर में सभी जातियों को एक समान महत्व मिलता है.
3. क्षेत्रीय और जातीय प्रभाव
रिंकू सिंह अलीगढ़ के रहने वाले हैं जबकि प्रिया सरोज जौनपुर की हैं. यानि कि एक तीर से पूर्वी यूपी और पश्चिमी यूपी दोनों ही जगहों बीजेपी युवाओं को एक साथ लुभाने का प्रयास कर रही है. रिंकू सिंह बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं. उनके पिता सिलिंडर पहुंचाने का काम करते रहे हैं. रिंकू खुद अपने पिता की मदद लोगों के घरों में सिलिंडर पहुंचाने के लिए करते रहे हैं. जाहिर है कि आर्थिक तंगी से निकलकर क्रिकेट में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की उनकी कहानी मध्यम वर्ग के लिए प्रेरणादायी है. अलीगढ़ में रिंकू को BSA जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त करना सरकार के पक्ष में जबरदस्त PR रणनीति का हिस्सा है. यह कदम न केवल स्थानीय स्तर पर सरकार की छवि को सकारात्मक बनाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकार स्थानीय प्रतिभाओं का सम्मान करती है.
अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी लगातार यह साबित करने में लगी हुई है कि बीजेपी पीडीए (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) के साथ दोयम दर्जे् का व्यवहार करती है. रिंकू सिंह अति पिछड़े या दलित परिवार से आते हैं. जाहिर है कि रिंकू की नियुक्ति से जाटव, अति पिछड़े और दलित समुदाय के बीच सरकार की स्वीकार्यता बढ़ सकती है.
4- क्या अखिलेश के पीडीए के जवाब दे रही है बीजेपी सरकार
अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव में PDA रणनीति को केंद्र में रखा. जाहिर है कि उन्हें इसका फायदा भी मिला. अखिलेश ने पिछले कुछ दिनों से लगातार बीजेपी पर पीडीए की अवहेलना करने का आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने पुलिस पोस्टिंग में PDA समुदायों की कम हिस्सेदारी का मुद्दा उठाया. यह दावा करते हुए कि योगी सरकार ठाकुर और ब्राह्मण समुदायों को प्राथमिकता दे रही है. इस रणनीति ने सपा को दलित और OBC वोटरों के बीच मजबूत आधार प्रदान किया है. विशेष रूप से अलीगढ़, जौनपुर, और कन्नौज जैसे क्षेत्रों में यह समुदाय समाजवादी पार्टी के प्रभाव में है. पिछले दिनों एक यादव कथावाचक की पिटाई के मुद्दे को भी अखिलेश ने खूब भुनाया है. समाजवादी पार्टी की रणनीति 2027 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में लाने के लिए इस फार्मूले पर जमकर काम कर रही है.
रिंकू सिंह की पत्नी बनने जा रही सांसद प्रिया सरोज पासी ( एससी )समुदाय से आती हैं. बीजेपी की पासियों के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता रही है. जाहिर है कि रिंकू सिंह को सम्मानित करने का सीधा असर पासी समुदाय पर भी होगा. रिंकू सिंह की जाति अभी तक कन्फर्म नहीं हो सकी है. कई तरह की दावें हैं उनके साथ. पत्रिका उनके गांव के लोगों के हवाले से लिखता है कि वो नाई समुदाय से आते हैं. जबकि कुछ अन्य जाटव समाज से बताते हैं. कुल मिलाकर इतना तो तय है कि वे अति पिछड़े या दलित समुदाय से बिलांग करते हैं. जाहिर है कि उनका सम्मान अति पिछड़े और दलित समुदाय का सम्मान है. रिंकू के सम्मान से बीजेपी अखिलेश यादव के पीडीए में सेंध लगाने में सक्षम हो सकेगी.