शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ वैसी ही लड़ाई लड़ रहे हैं, जैसी लड़ाई में एक जमाने में मुकुल रॉय मात खा चुके हैं.
मुकुल रॉय को भी बीजेपी ने बड़े अरमानों के साथ ममता बनर्जी की टीम से झटक कर बंगाल के मोर्चे पर लगाया था. लेकिन वो चल नहीं पाये. बीजेपी ने उनके लिए बहुत कुछ किया भी था, लेकिन एक दिन आया जब वो लौट गये. ममता बनर्जी ने ठुकराया नहीं, अपना लिया और फिलहाल वो विधायक भी हैं.
मुकुल रॉय ने तृणमूल कांग्रेस छोड़ी जरूर थी, लेकिन ममता बनर्जी के मन में अपने प्रति वैसी नफरत नहीं पैदा की थी, जैसी शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम के चुनावी मैदान में शिकस्त देकर कर चुके हैं.
शुभेंदु अधिकारी दो बार फेल हो चुके हैं. पहली बार तो 2021 के विधानसभा चुनाव में ही, जब प्रशांत किशोर को गलत भी नहीं साबित कर पाये. और, दूसरी बार 2024 के लोकसभा चुनाव में - 2026 का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव उनका तीसरा इम्तिहान है, और मुमकिन है वही आखिरी भी हो.
दरअसल, शुभेंदु अधिकारी अपने तीसरे इम्तिहान की तैयारी में ही जुटे हैं, और उसमें एक साल से भी कम वक्त रह गया है - लेकिन, हड़बड़ी में जो तरीका अपना रहे हैं, कहीं लेने के देने न पड़ जाये.
शुभेंदु अधिकारी लकीर क्यों पीट रहे हैं
बहुत असरदार भले न हो, लेकिन यूपी सहित कई जगह ‘जय श्रीराम’ का नारा चल जाता है. यूपी में भी बिजली मंत्री एके शर्मा को यही नारा लगाते सुना गया, लेकिन वो भीड़ से निकलने के लिए नारा लगा रहे थे, शुभेंदु अधिकारी को उससे आगे भी सोचना होगा.
पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी की 'कन्या सुरक्षा यात्रा' जब हुगली जिले के पुरशुरा विधानसभा क्षेत्र से गुजर रहे थे, तब एक ऐसी घटना हुई जिससे वो तिलमिला उठे, और जय श्रीराम का नारा लगाने लगे - मुश्किल ये है एके शर्मा की तरह नारेबाजी करके शुभेंदु अधिकारी विरोध कर रही भीड़ से पीछा नहीं छुड़ा सकते, उनको तो वहां बीजेपी को जमीन पर मजबूत करना है.
शुभेंदु अधिकारी के साथ भी बिल्कुल वैसा ही हुआ है, जैसा 2020 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी के साथ होता रहा - और शुभेंदु अधिकारी ने भी करीब करीब वैसे ही रिएक्ट किया, जैसे तृणमूल कांग्रेस नेता किया करती थीं.
फर्क सिर्फ नारे का था. ममता बनर्जी को देखकर तब बीजेपी समर्थक जय श्रीराम के नारे लगाने लगते थे, शुभेंदु अधिकारी को देखकर जय बांग्ला के साथ उसी अंदाज में नारेबाजी करने लगे.
ये घटना राधानगर इलाके की है, शुभेंदु अधिकारी अपनी रैली में शामिल होने के लिए पहुंचे थे - और तभी तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ता शेख मोईदुल ने 'जय बांग्ला' के नारे लगाने शुरू कर दिये .
शुभेंदु अधिकारी को बहुत बुरा लगा. वो आपे से बाहर हो गये. हद से ज्यादा नाराजगी जाहिर होने लगी. पलटवार में वो भी गाड़ी से उतरे और 'जय श्रीराम' के नारे लगाने लगे. शेख मोईदुल और शुभेंदु अधिकारी आमने सामने हुए तो कहासुनी भी हुई. बवाल तब बढ़ा जब शुभेंदु अधिकारी ने कथित तौर पर मोईदुल को रोहिंग्या बोल दिया, और उनके सुरक्षाकर्मियों ने शेख मोईदुल को धक्का दे दिया. शेख मोईदुल का कहनाी था कि वो टीवी पर शुभेंदु अधिकारी के भाषण सुनकर नाराज थे.
शुभेंदु को जय बांग्ला नारे से परहेज क्यों?
सवाल ये है कि शुभेंदु अधिकारी जय बांग्ला नारे से परहेज क्यों है? क्या बंगाली अस्मिता शुभेंदु अधिकारी के लिए मायने नहीं रखती - वो भी तब जब ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में भाषा आंदोलन चला रही हैं.
2020 के चुनावों तक पश्चिम बंगाल में जय श्रीराम का नारा खूब सुना जाता था, यहां तक कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कार्यक्रम में भी सुनने को मिला था. तब संघ भी नाराज हो गया था.
2020 के बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले कई ऐसे भी मौके देखे गये जब ममता बनर्जी को देखते ही बीजेपी समर्थक जय श्रीराम के नारे लगाने शुरू कर देते थे. और, गुस्से में लाल ममता बनर्जी रास्ते में गाड़ी रोककर उनको धमकाते हुए बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर लेती थीं - लेकिन अब वो दौर नहीं रहा. बात काफी आगे बढ़ चकी है, और बीजेपी को भी जय श्रीराम के नारे का बंगाल में निष्प्रभावी होना महसूस करने लगी है.
बीजेपी ने देखा कि ममता बनर्जी के विरोध के आगे 'जय श्रीराम' के नारे का कोई खास फायदा नहीं हो रहा है, तो धीरे धीरे मर्यादा पुरुषोत्तम राम से बंगाल में शक्तिपूजा पर फोकस होने लगी है.
अब बीजेपी जय श्रीराम की जगह पश्चिम बंगाल में रचे बसे ‘जय मां काली’ और ‘जय मां दुर्गा’ जैसे नारों के साथ आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी है. हाल के पश्चिम बंगाल दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत देवी स्मरण के साथ की थी - और शुभेंदु अधिकारी को जय बांग्ला से परहेज होने लगी है.