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राजस्‍थान में कांग्रेस सरकार बनी तो सचिन पायलट को क्‍या क्‍या देना होगा?

राजस्थान में आज तक-एक्सिस माई इंडिया के Exit Poll में कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना जताई गई है. सही तस्वीर तो 3 दिसंबर को चुनाव नतीजे के बाद आएगी, लेकिन बीजेपी की पोजीशन भी इस बार बेहतर हो सकती है. सवाल है, सचिन पायलट किस हैसियत में होंगे - क्या वो अच्छे से मोलभाव करने की स्थिति में होंगे?

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एग्जिट पोल की मानें तो सचिन पायलट इस बार अशोक गहलोत के साथ बेहतर मोलभाव कर सकेंगे
एग्जिट पोल की मानें तो सचिन पायलट इस बार अशोक गहलोत के साथ बेहतर मोलभाव कर सकेंगे

तमाम एग्जिट पोल के नतीजों पर नजर डालें तो राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उतनी ही संभावना लग रही है, जितनी कि परंपरा के अनुसार बीजेपी के सरकार बना पाने की. आज तक-एक्सिस माई इंडिया के Exit Poll के अनुसार, राजस्थान में कांग्रेस के बहुमत हासिल करने की काफी संभावना है. 

इस एग्जिट पोल के अनुसार राजस्थान में कांग्रेस को 42 फीसदी वोट मिलने का अंदाजा है, जबकि बीजेपी का वोट शेयर एक फीसदी कम यानी 41 फीसदी हो सकता है. कांग्रेस को 86 से 106 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है - और वही पोल बता रहा है कि बीजेपी के खाते में इस बार 80 से 100 सीटें आ सकती हैं. 

2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 100 सीटें मिली थीं और बीजेपी के हिस्से में 73 सीटें आयी थीं. बीएसपी के 6 विधायक चुन कर आये थे, जो बाद में अशोक गहलोत के साथ कांग्रेस के हो गये थे. 

एक बात तो पहले से ही साफ है कि राजस्थान अगर कांग्रेस चुनाव जीत लेती है तो ये जीत सिर्फ अशोक गहलोत की ही समझी जाएगी. कांग्रेस या पार्टी आलाकमान या गांधी परिवार की कोई भी भूमिका नहीं मानी जाएगी. 

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अभी से जो समीकरण समझ में आ रहे हैं, सचिन पायलट की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं लगती. 2018 के मुकाबले तो बिलकुल भी नहीं - लेकिन सचिन पायलट अगर दौसा और टोंक जैसे अपने इलाकों में पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें जीत लेते हैं तो खेल बदल भी सकता है.  

सचिन पायलट को क्या क्‍या मिल सकता है

2018 का चुनाव जितवाने वाले पायलट के लिए पिछला कार्यकाल दिल पर पत्‍थर रखकर बीता. उनके समर्थक उन्‍हें मुख्‍यमंत्री बनाए जाने की लॉबिंग करते रहे, लेकिन कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्‍व उन्‍हें इंतजार करने के लिए कहता रहा. दूसरी ओर गहलोत बड़ी कुशलता से संगठन और सरकार में उनके पर करते गए. अब पायलट के पास हिसाब बराबर करने का मौका है. जब बहुमत के लिए एक एक विधायक की गरज होगी तो पायलट वो सब मांगेंगे, जो उन्‍हें पिछले कार्यकाल में नहीं मिला-

- सचिन पायलट को वैसे तो गहलोत कुछ नहीं देंगे, लेकिन यदि सरकार बनाने में दिक्‍कत आई तो वो राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए किसी न किसी तरीके से अशोक गहलोत को मजबूर करेंगे.

- एक सूरत ये है कि अगर सचिन पायलट के समर्थक ज्यादा उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं, और अशोक गहलोत को कोई खतरा नजर आता है, तो डिप्टी सीएम की पोस्ट वापस मिल सकती है. लेकिन क्‍या इतने भर से पायलट मानेंगे?

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- एक संभावना ऐसी भी हो सकती है कि अगर सचिन पायलट ठीक से मोलभाव नहीं कर पाये, तो अशोक गहलोत उनके खेमे के विधायकों को कैबिनेट के महत्‍वपूर्ण विभाग देकर हालात को मैनेज कर लें. लेकिन, पायलट ऐसा प्रलोभन तो स्‍वयं भी दे ही सकते हैं.

सचिन पायलट के मोलभाव का आधार क्या होगा

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी तो सचिन पायलट की दावेदारी में दम तभी होगा जब उनके समर्थक विधायकों का नंबर ठीक ठाक हो. मतलब, इतना नंबर हो कि अगर वो सपोर्ट न करें या कांग्रेस नेतृत्व को पार्टी के टूट जाने का खतरा लगे, तभी वो मोलभाव कर सकेंगे. 

एग्जिट पोल से ऐसा लग रहा है कि 2018 के मुकाबले बीजेपी इस बार थोड़ी बेहतर स्थिति में हो सकती है. मतलब, अगर सरकार बनाने की कोई सूरत नजर आये और सचिन पायलट अपने समर्थकों के साथ मददगार बन जायें तो बात बन जाये - यही वो स्थिति होगी जब सचिन पायलट बेहतर मोलभाव कर सकेंगे. 

राजस्थान में कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 100 सीटें जीती थीं. तब बीजेपी को 73 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था, लेकिन इस बार बीजेपी के खाते में 80 से 100 सीटें आने की संभावना जतायी जा रही है. कांग्रेस की झोली में भी इस बार अधिकतम 106 और कम से कम 86 सीटें मिलने का अनुमान है. 

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जहां तक सचिन पायलट के इलाके की बात है, कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की संभावना जतायी गयी है. राजस्थान के ढूंढाड़-जयपुर क्षेत्र में एग्जिट पोल के मुताबिक, कांग्रेस को 45 तो बीजेपी को 42 फीसदी वोट मिल सकते हैं. 

ये वो इलाका है जहां सचिन पायलट का सबसे ज्यादा प्रभाव माना जाता है. कांग्रेस को यहां 26 और बीजेपी को 17 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है. पिछली बार के मुकाबले कांग्रेस को एक सीट और बीजेपी को पांच सीटों का फायदा माना जा रहा है. 

जो सूरत-ए-हाल है, सचिन पायलट, कांग्रेस के भीतर या बाहर यानी फिर से बगावत करके बीजेपी के साथ मोलभाव तभी कर सकते हैं, जब -  

1. सचिन पायलट राजस्थान में कांग्रेस को तोड़ देने का संकेत देने लगें. लेकिन इससे अशोक गहलोत के मुकाबले ज्यादा चिंता राहुल गांधी को ही हो सकती है. 

2. सचिन पायलट को अशोक गहलोत नाराज न करने की जहमत तभी उठाने को मजबूर होंगे, जब सरकार बनाने के बाद उसे पांच साल तक चलाना भी चाहें. 

3. राजस्थान में बहुत सारे निर्दलीय विधायक भी चुनाव लड़ रहे हैं, और वे सारे ही किसी न किसी खेमे से जुड़े रहे हैं, जो टिकट न मिलने पर बागी बने हैं - सचिन पायलट अगर ज्यादा नुकसानदेह साबित न हों तो वो निर्दलीयों की मदद भी ले सकते हैं.

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4. अशोक गहलोत और बीजेपी नेता वसुंधरा राजे के अच्छे रिश्ते बताये जाते हैं. अगर सरकार चलाने के लिए अशोक गहलोत को विधायक कम पड़े तो वो वसुंधरा राजे खेमे के विधायकों की भी मदद से सरकार चला सकते हैं. 

5. सचिन पायलट बगावत के बावजूद पिछली बार आगे कदम इसलिए भी नहीं बढ़ा सके क्योंकि नंबर उनके कम पड़ रहे थे. सचिन पायलट के पास इतने विधायक नहीं थे जिनकी बदौलत वो ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह कांग्रेस की सरकार गिरा कर राजस्थान में बीजेपी की सरकार बनवा सकें. 

एग्जिट पोल की मानें तो नंबर गेम इस बार बदला हुआ हो सकता है. पिछली बार बीजेपी के पास भी इतने नंबर नहीं थे कि सचिन पायलट के समर्थकों के साथ सरकार बनाने का दावा पेश कर सके - इस बार स्थिति काफी अलग लग रही है. 

अगर कांग्रेस की सीटें कम आती हैं, लेकिन सचिन पायलट के समर्थकों की संख्या जरूरत भर होती है, और बीजेपी बेहतर स्थिति में हो जाती है, तो सचिन पायलट के दोनों हाथों में लड्डू हो सकता है - मतलब, सचिन पायलट की ऐसी स्थिति बन सकती है कि बेहतर डील के लिए वो कांग्रेस और बीजेपी दोनों के साथ मोलभाव कर सकते हैं. 

2018 में सचिन पायलट थे, तो इस बार जीत का श्रेय सिर्फ अशोक गहलोत को मिलेगा

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो एक बयान देकर अपने हिसाब से अशोक गहलोत की हार पहले ही तय कर दी थी. राहुल गांधी का कहना था कि चार राज्यों में तो कांग्रेस चुनाव जीतने जा रही है, सिर्फ राजस्थान में कांटे की लड़ाई है. बची खुची कसर राहुल गांधी ने आखिरी दौर में चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'पनौती' और 'जेबकतरा' बोल कर पूरी कर दी. अगर राहुल गांधी के बयान का कोई असर होता है तो नुकसान तो अशोक गहलोत का ही होगा.

जबकि सचिन पायलट की इस बार बड़ी ही सीमित भूमिका रही. पिछली बार सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे. उम्मीदवारों के नाम पर फाइनल दस्तखत और मुहर पीसीसी अध्यक्ष की ही होती है. लेकिन अब अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा हैं और अशोक गहलोत की पिछली बार के मुकाबले चली भी ज्यादा है. चली क्या, सब कुछ तो वही तय कर रहे थे. अशोक गहलोत की तो टिकट बंटवारे में इतनी चली कि केंद्रीय चुनाव समिति भी परेशान थी. क्योंकि कई सीटों के लिए अशोक गहलोत ने एक ही नाम भेजे थे. 

चुनाव कैंपेन के आखिर में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट से पैच-अप करने की कोशिश जरूर की थी. बयानों में तो इसकी झलक मिली ही, कहीं कहीं दोनों के साथ में पोस्टर भी लगाये गये थे. ऐसे में सचिन पायलट की तभी कोई हैसियत होगी जब उनके खास उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं.

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