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आरजेडी-कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में उड़ाई अपने ही नारे की धज्जियां

जाति जनगणना के आधार जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात करने वाली कांग्रेस और आरजेडी ने अपनी ही सरकार में कराए गए कास्ट सर्वे की धज्जियां उड़ा दी हैं. टिकट बंटवारा करते समय दोनों ही दलों ने अति पिछड़ी और कमजोर जातियों को हाशिये पर रखा है.

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Congress's Rahul Gandhi and RJD leader Tejashwi Yadav
Congress's Rahul Gandhi and RJD leader Tejashwi Yadav

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए टिकट वितरण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पर एक बड़ा आरोप लग रहा है. दोनों ही पार्टियां लंबे समय से पूरे देश में जाति आधारित जनगणना की मांग करते हुए 'जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी' की बात करती रही हैं. बिहार में जाति जनगणना कराने वाली इन दोनों ही पार्टियों ने अपने टिकट बंटवारे में अपनी ही सरकार द्वारा करवाए गए जाति जनगणना का मजाक उड़ाया है. साफ लगता है कि टिकट बंटवारे का आधार गरीब और अति पिछड़ों को हिस्सेदारी देना नहीं बल्कि चुनाव जीतने के नाम पर कुछ खास जातियों को मौका दिया गया है. जाहिर है कि इस तरह सामाजिक न्याय की बात इन दोनों ही दलों के लिए केवल सत्ता पाने का हथियार बन गया. आलोचकों का कहना है कि आरजेडी ने अपने परंपरागत वोट बैंक (मुस्लिम-यादव या MY) को प्राथमिकता देकर अन्य जातियों-खासकर अति पिछड़ों, दलितों और EBC (अत्यंत पिछड़ी जातियों) को दरकिनार कर दिया है. इसी तरह कांग्रेस ने भी कुछ खास जातियों को मौका दिया है. इस तरह जाति जनगणना के आधार पर हिस्सेदारी के दावे खोखले साबित हो रहे हैं. 

RJD में टिकट वितरण का जातीय ब्रेकअप

आरजेडी ने कुल 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. अति पिछड़ों की बात करने वाली पार्टी को सबसे अधिक भरोसा यादवों पर ही नजर आता है. कुल टिकटों में 51 टिकट यादव जाति को दिए गए हैं. इस तरह प्रदेश की कुल जनसंख्या में 14 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाली यादव जाति को करीब 36 प्रतिशत हिस्सेदारी मिल गई है. इसी तरह कुल 19 मुसलमानों को टिकट दिया गया है. जाहिर है मुस्लिम समुदाय को अपनी संख्या के हिसाब से कम ही मात्रा में टिकट मिला है.  

वरिष्ठ पत्रकार प्रिय रंजन झा अपने फेसबुक पेज पर लिखते हैं, 'बिहार में जाति जनगणना के लिए सबसे ज़्यादा हाय-तौबा मचाने वालों की सच्चाई: 

बिहार में यादव जनसंख्या: 14%    
RJD ने टिकट दिया: 36%

बिहार में मुस्लिम जनसंख्या: 18%.      
RJD ने टिकट दिया: 13%

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बस इतना ही नहीं. अकेले दो समुदायों ने 50% टिकट कब्जा लिया. बाकी जिनको गिना गया था, उनका क्या हुआ? मतलब आरक्षण खाली नौकरी में दिया जाएगा, नेता सब एक ही जाति का बनेगा?'

कांग्रेस में टिकट वितरण का ब्रेकअप

महागठबंधन में कांग्रेस 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन पार्टी के उम्मीदवार चयन में जातिगत गणना (2023) के आंकड़ों का जिक्र तो दूर, पिछड़े वर्गों (OBC 27% + EBC 36%) और दलितों (19%) की बड़ी आबादी को नजरअंदाज किया गया लगता है. कांग्रेस ने सवर्णों (कुल आबादी 15%) को प्राथमिकता देकर अपना परंपरागत वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश की है, लेकिन इससे EBC और अन्य पिछड़ों में नाराजगी स्वाभाविक है. आलोचक इसे 'सवर्ण-केंद्रित राजनीति' बता रहे हैं, जो जाति जनगणना के सामाजिक न्याय के दावों के विपरीत है.

आंकड़ों में साफ है कि कांग्रेस ने कुल 61 सीटों में 19 सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट दिये हैं. इनमें भी भूमिहारों को सबसे ज्यादा (8) टिकट मिले, जो पार्टी की रणनीति का संकेत है. हालांकि जनगणना के मुताबिक सवर्णों की आबादी सिर्फ 15% है, जबकि EBC+OBC 63% हैं.
EBC (36% आबादी) को महज 10 टिकट, दलितों को 12 टिकट मिले, लेकिन उपजातियों (जैसे पासवान, मुसहर) में असंतुलन साफ दिख रहा है.  कांग्रेस नेता राहुल गांधी देश के हर मंच से जाति जनगणना को 'सामाजिक न्याय का हथियार' बताते हैं पर जब टिकट बंटवारे की बात होती है तो जिताऊ कैंडिडेट पर फोकस किया जाता हैं.यही कारण है कि EBC/OBC की 63% आबादी को 24% से कम हिस्सा दिया जाता है.

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राजनीतिक निहितार्थ

यह टिकट वितरण महागठबंधन के लिए दोहरी तलवार है. एक ओर आरजेडी  MY वोट पक्के पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की है जिससे दूसरी EBC और दलित वोटर का भरोसा खोने का अंदेशा बना है. 2020 में भी महागठबंधन की हार का बड़ा कारण ईबीसी ही बने थे. तेजस्वी का 'A to Z' को गारंटी (सभी जातियों के लिए न्याय) अब सवालों के घेरे में है. विपक्षी नेता इसे 'यादव-केंद्रित राजनीति' बता रहे हैं, जबकि पार्टी दावा कर रही है कि यह रणनीतिक संतुलन है.

इसी तरह टिकट वितरण कांग्रेस के लिए जोखिम भरा है. सवर्णों को अधिक टिकट देकर कांग्रेस भले ही बीजेपी के कुछ वोट काट ले पर जिस तरह का माहौल बिहार में है उससे यह नहीं लगता कि बड़े पैमाने पर सवर्ण वोट कांग्रेस की ओर शिफ्ट हो सकते हैं. लेकिन EBC (नीतीश का कोर बेस) और दलित नाराज होकर NDA की ओर मुड़ सकते हैं. जैसा 2020 में हुआ था. तेजस्वी यादव की 'EBC गारंटी' के बावजूद, कांग्रेस की गलती से महागठबंधन की सीटें कम हो सकती हैं. पार्टी अध्यक्ष राजेश कुमार (रविदास जाति से) ने दलित फोकस की कोशिश की, लेकिन कुल मिलाकर 'सवर्ण एजेंडा' हावी रहा. अगर EBC स्विंग वोट महागठबंधन से दूर हुआ, तो जाति जनगणना का पूरा नैरेटिव ध्वस्त हो जाएगा. NDA की 'सोशल इंजीनियरिंग' (JDU का EBC फोकस) और मजबूत हो सकता है.

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