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मेरे देखे हुए दो अलग-अलग कश्मीर और 'पहलगाम' के बाद महमूदा का कॉल, 'यहां मत आना, माहौल खराब है!'

कश्मीर एक बार फिर आतंकी हमले से दहल गया है. पहलगाम के बैसारन में देशभर से घूमने आए टूरिस्टों को आतंकियों ने धर्म पूछ-पूछकर निशाना बनाया. बेगुनाह लोगों की मौत से देशभर में मातम का माहौल है. एक झटके में आतंकियों ने 28 निर्दोष लोगों की लाशें बिछा दीं.

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आतंकी हमले से दहला पहलगाम
आतंकी हमले से दहला पहलगाम

दहशत में डूबी महिलाएं.. चीखते हुए पर्यटक और दिल दहलाने वाली तस्वीरें.. जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने एक बार फिर आतंक का खूनी खेल खेला है. धर्म पूछ-पूछकर 26 लाशें बिछा दी गईं. जो बच गए उनकी तस्वीरें दर्द की गहरी कहानी लिख गईं. हमले के बाद के हालात तस्वीरों के जरिए सामने आए. कहीं बुजुर्ग महिलाएं बिलखती दिखाई दीं, कहीं पति की लाश के पास बैठी रोती महिला नजर आईं. 

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22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने हर किसी का दिल दहला दिया. पहलगाम में यात्रा करने के लिए टूरिस्टों को पल भर की खुशियां न मिल सकीं और जिंदगी भर का गम मिल गया. इस हमले में कई परिवार बिखर गए. पहलगाम की खूबसूरत वादी को 'मिनी स्विट्जरलैंड' कहा जाता है, इसी वादी को आतंकियों ने खून से लाल कर दिया. यह वही इलाका है, जहां मैं कई साल पहले घूमने गई थी. अनजान शहर, अनजान लोग, और मन में एक डर, लेकिन तब वहां की खूबसूरती और शांति ने मेरा दिल जीत लिया था. आज उसी जन्नत पर एक दाग लगाकर आतंकियों ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है. 

'मैं आतंकवादी नहीं....'

पहलगाम के जिस बैसरन घाटी में ये हमला हुआ वो बेहद खूबसूरत इलाका है. 2010 अप्रैल का महीना था और तारीख भी 21- 22 रही होगी. पहली बार 15 साल पहले जब कश्मीर गई तो दिल में अजीब सा डर था, हमेशा कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं के बारे में सुनती, पढ़ती आई थी, इसलिए थोड़ा परेशान थी. 

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अपनी कश्मीर यात्रा के दूसरे दिन ही मैं पहलगाम गई थी, श्रीनगर से करीब ढाई घंटे का सफर मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत सफर था, चारों तरफ हरियाली ऊंचे-ऊंचे पहाड़... मैं बिंदास अपनी कार रास्ते में रोक रोककर बिना किसी डर के घूम रही थी, उन खूबसूरत नजारों की तस्वीरें आज भी मेरे मोबाइल में कैद में हैं. पहलगाम पहुंचने के बाद बैसरन घाटी के लिए घोड़े से जाना होता है. मुझे देखते ही कई घोड़े वाले ऊपर ले जाने के लिए खड़े हो गए, उन लोगों को देखकर मुझे थोड़ा डर लगा, क्योंकि वहां कोई सिक्योरिटी फोर्स नहीं थी और लोग मुझे अजीब से लग रहे थे. मैं बार-बार मना कर रही थी कि मैं पैदल ही चली जाऊंगी.

तभी एक घोड़े वाला मेरे सामने आकर बोला, मैडम डरिए मत... मैं ले चलूंगा, आपको कुछ नहीं होगा, मैं न चाहते हुए भी उसके घोड़े पर बैठ गई. वो धीरे से बोला- मैडम मेरा नाम इमरान है, मैं घोड़े वाला हूं, आतंकवादी नहीं. मैंने कब कहा- तुम आतंकवादी हो? वो खड़े होकर बोला- मैडम कुछ लोगों ने माहौल खराब कर दिया, उनकी गलती की सजा हम लोग भुगत रहे हैं, लेकिन हम लोग तो टूरिस्ट को घुमाकर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं. ऊबड़-खाबड़ रास्ते से होता हुआ घोड़ा मेरी मंजिल की तरफ ले जा रहा था, मेरी डर के मारे जान जा रही थी. 

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शांत इलाका था पहलगाम

टूरिस्ट गाइड की तरह इमरान मुझे उस इलाके की पूरी जानकारी दे रहा था. पहलगाम की खूबसूरती और शांति के बारे में बताते हुए वो बोलने लगा- पहलगाम में तो कभी कोई हमला नहीं हो सकता है, इस इलाके में कभी आतंकवादी आ ही नहीं सकते हैं. धीरे-धीरे मेरा डर थोड़ा कम होने लगा, ऊपर पहुंचने पर जब वहां का नजारा देखा तो यकीन ही नहीं हुआ कि इतनी खूबसूरत जगह भी हो सकती है. मेट्रो सिटी में मुझे ऊंची-ऊंची इमारतों की भीड़ में कभी खुला आसमान नहीं दिखता, लेकिन वहां ऊपर नीला आसमान और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी. 

घूमते-घूमते मैं एक ढोक ( झोपड़ी) के पास जा पहुंची, मैं अंदर जा रही थी, तभी मेरे दोस्त ने रोका, अंदर मत जाओ आतंकवादी हो सकते हैं, मैं उसको अनसुना करते हुए अंदर जाने लगी जैसे सारे आतंकवादी मुझे ही मारने को बैठे हैं. अंदर गई तो देखा एक छोटे से कमरे में एक करीब 70  साल की औरत अकेली बैठी थी, मुझे देखते ही वो मुस्कुराने लगी. उसने मुझे कमरे में बैठाया और कहने लगी चावल खा लो, पहली बार मेरे घर आई हो. मैं उसकी मेहमानबाजी से हैरान थी, दिल्ली में तो बिना पहचान के किसी को कई पानी भी नहीं पूछता. 

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उस पहलगाम में आज आतंकवादी हमले के बारे में सुनकर यकीन नहीं हो रहा है, उस इलाके के मैगी वाले, चाय वाले सब बार-बार यही कह रहे थे, पहलगाम तो कश्मीर का सबसे शांत इलाका है, लेकिन उस इलाके में जिस तरह लोगों का धर्म पूछकर गोलियां मारी गईं, यकीन नहीं हो रहा है- ये वही पहलगाम है.
   
2018 में जब टूरिस्ट की हुई थी मौत

मैं दूसरी बार 2018 में कश्मीर गई. इस बार अपने सीआरपीएफ में तैनात दोस्त के बुलावे पर. 2018 में मई का महीना था, मैं करगिल से कार से 5 घंटे का सफर कर श्रीनगर पहुंची थी, मैं पूरे परिवार के साथ सड़क पर खड़ी होकर अपनी गाड़ी का इंतजार कर रही थी. आसपास से कई टैक्सी वाले मुझसे बार-बार चलने को कह रहे थे, मैं इनकार में सिर हिला रही थी. तभी मेरे सामने एक गाड़ी आई जो मेरे दोस्त ने भेजी थी, मैं अपना सामान रखकर गाड़ी में जैसे ही बैठी कि चारों तरफ से पत्थरों की बारिश होने लगी. मुझे समझ नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है, गाड़ी में बैठे जवानों ने हमें शांति से बैठने को कहा, वो जल्दी से मुझे वहां से लेकर गेस्ट हाउस निकलने लगे, मुझे समझ नहीं आ रहा था, मैंने क्या किया... आखिर मेरे ऊपर क्यों पत्थर फेंके जा रहे हैं. तभी एक जवान ने मुझे बताया, मैडम ये पत्थर आप पर नहीं, हम पर फेंके जा रहे हैं. 

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उस वक्त बुरहान वानी के गैंग के एक सदस्य के एनकाउंटर के बाद पूरा शहर उबल रहा था, दुकानें बंद थी, शहर का माहौल बेहद खराब था. मेरी यात्रा के दूसरे दिन ही ऐसा हमला हुआ कि पूरा कश्मीर हिल गया और मैं भी दहशत से भर उठी थी. चेन्नई से कश्मीर घूमने गए एक युवक पर पत्थरबाजों ने हमला किया और उसकी मौत हो गई. हम लोग अपने गेस्ट हाउस में कैद हो गए. आमतौर पर कश्मीर में टूरिस्टों पर हमले नहीं होते थे, लेकिन 2018 में उस हमले ने कश्मीर घूमने वालों को भी डराकर रख दिया. इस बार पूरा शहर बदला-बदला सा था, पूरे शहर में मायूसी थी, जिस कश्मीर ने टूरिस्टों को सिर आखों पर बैठाकर रखा, वहां पर किसी की हत्या बड़ी बात थी.

इस बार भी मेरा पहलगाम जाने का प्रोग्राम था, लेकिन शहर के हालात की वजह से मुझे लोगों ने वहां न जाने की सलाह दी. मैंने सोचा जब  इतनी दूर आए हैं तो कुछ तो देख लें. मैं हिम्मत करके हजरतबल गई, वहां मेरी मुलाकात एक महिला से हुई. वो मुस्कुराते हुए मेरे सामने आई और पूछने लगी आप कहां से आए हो. मैंने कहा दिल्ली से... और आप वो बोली शोपियां से. बस इसके बाद थोड़ी सी ही बातचीत हुई. मैंने चलते-चलते उसको अपना कार्ड दे दिया. कश्मीर में तनाव था, इसलिए अपनी यात्रा मैं बीच में छोड़कर दिल्ली लौट आई. 

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वो अनजान कॉल...

एक महीने के बाद एक अनजान नंबर से मेरे पास कॉल आया. मैंने फोन उठाया तो किसी महमूदा का कॉल था, मैंने उसे पहचाना नहीं, फिर उसने हजरतबल में मुलाकात की कहानी बताई तो मुझे याद आया. उससे बात हुई तो पता चला कि 2014 में एक आतंकी हमले में उसके पति को आतंकवादियों ने उसकी आंखों से सामने गोलियों से भून डाला था, वो अपने तीन बच्चों को अकेले पाल रही थी. उसने मेरा पता मांगा, मुझे समझ नहीं आ रहा था, ऐसे किसी अनजान औरत को घर का एड्रेस कैसे दूं. मेरे घरवालों ने भी डराया... कश्मीरी है, पता नहीं क्यों पता मांग रही है, मत देना. मैंने भी टाल दिया.

महमूदा अक्सर मुझे फोन करती. मेरा हाल चाल पूछती, मैं भले ही उसे फोन करूं या ना करूं और हर बार मेरा एड्रेस मांगती, एक बार मैंने उसे अपना एड्रेस भेज ही दिया. कुछ दिनों के बाद मेरे घर पर एक बड़ा सा पार्सल आया. शोपियां का पता देखकर घरवालों ने पार्सल खोलने से मना कर दिया, मैं भी डर गई और महमूदा को फोन लगाकर पूछा- तु्मने क्या भेजा है. वो बोलने लगी मैडम मेरी तरफ से गिफ्ट है, उसे रख लेना. मैं अपने गांव से 50 किलोमीटर बस से गई थी, उसे भेजने के लिए उसमें मेरे घर का अखरोट है. मुझे यकीन नहीं हुआ एक अनजान औरत मेरे लिए क्यों ऐसा कर रही है. आज करीब 7 साल हो गए हैं और वो हर साल मेरे लिए अखरोट और बादाम भेजती है, बिना मेरा धर्म जाने. मैं भी अक्सर उसे गिफ्ट भेजा करती हूं, जिसको पाते ही वो मुझे वीडियो कॉल कर खुश होकर दिखाती है. अपनी बिजी लाइफ की वजह से मैं भले ही उसे कॉल न कर पाऊं, लेकिन वो कभी फोन करना बंद नहीं करती. हर बार फोन कर यही कहती कश्मीर कब आओगे और मैं यही कहती जब छुट्टी मिलेगी तब आऊंगी.

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आज जब मैं ये स्टोरी लिख रही थी, तभी एक बार फिर महमूदा का फोन आया. फोन उठाते ही वो यही पूछने लगी आप पहलगाम में तो नहीं आए हो, आप ठीक हो ना, मैंने कहा मैं नोएडा में हूं. वो कांपती हुई आवाज में बोली यहां मत आना कश्मीर का माहौल बेहद खराब है.

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