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नीतीश इफेक्ट से हिल गए अखिलेश यादव? जानिये क्या है यूपी में कुर्मी वोटों का गणित

अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनावों के उम्मीदवारों की जो पहली लिस्ट जारी की है उसमें आश्चर्यजनक तरीके से सबसे अधिक सीट कुर्मियों को मिली है. अखिलेश यादव जिस पीडीए फार्मूले के जरिए इस बार विजय का ख्वाब देख रहे थे, क्या नीतीश कुमार ने उस पर ग्रहण लगा दिया है?

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नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में बिगाड़ेंगे का अखिलेश का खेल
नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में बिगाड़ेंगे का अखिलेश का खेल

समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपनी पहली लिस्ट का ऐलान कर दिया है. पार्टी ने 16 उम्मीदवारों की घोषणा की है जिसमें 11 उम्मीदवार पिछड़ी जाति के हैं.पार्टी की पहली लिस्ट में 11 OBC, 1 मुस्लिम, 1 दलित, 1 ठाकुर, 2 खत्री शामिल हैं. 11 OBC टिकटों में 4 कुर्मी, 3 यादव, 2 शाक्य, 1 निषाद और 1 पाल हैं. अखिलेश यादव पिछले साल से ही लोकसभा चुनावों में विजय हासिल करने के लिए पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक फार्मूले पर काम कर रहे थे. यूपी में 40-45% ओबीसी, 20% दलित और 19% मुस्लिम मतदाता हैं, जो राज्य के सभी मतदाताओं का लगभग 78% है. अखिलेश का लक्ष्य इस समूह के एक बड़े हिस्से को पटाना था. पर नीतीश कुमार के एनडीए में जाने के बाद समाजवादी पार्टी का गणित गड़बड़ाया हुआ लगता है. अखिलेश की कुर्मी वोटर्स पर पकड़ कमजोर पड़ रही है. यही कारण है कि अखिलेश यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी पार्टी केवल यादवों की पार्टी नहीं है बल्कि सभी पिछड़ों को यहां तवज्जो मिलती है.

पहला सीट बंटवारा कहता है कि अखिलेश सजग हो गए हैं

अखिलेश यादव का पहला सीट बंटवारा ये संदेश दे रहा है कि यूपी में भी नीतीश कुमार इफेक्ट काम कर रहा है. यह बात पहले ही कही जा रही थी कि नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने से यूपी में भी कुर्मी और अति पिछड़े वोटों का रुख इंडिया ब्लॉक की बजाय एनडीए की ओर हो जाएगा. जो सही होता दिख रहा है. कम से कम अखिलेश यादव से बेहतर कौन इसे कौन समझ सकता है. शायद यही कारण रहा है पहली बार एटा और फर्रूखाबाद की सीट से यादव प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिया गया है. मतलब साफ है कि नीतीश कुमार के एनडीए में शिफ्ट होने के बाद अखिलेश यादव अति पिछड़े और कुर्मी उम्मीदवारों को लिफ्ट करा रहे हैं. दरअसल यूपी में कुर्मी वोटों का गणित ही ऐसा है कि अखिलेश के लिए ये सब करना पड़ रहा है. नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं जाहिर है कि इस समय उत्तर भारत में वो कुर्मी स्वाभिमान के प्रतीक हैं.उनके एनडीए में शामिल होने से अखिलेश क्यों चिंता में पड़ गए हैं?

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नीतीश कुमार से अखिलेश को थी बड़ी उम्मीद

बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के मुखिया नीतीश कुमार जब तक इंडिया ब्लॉक के साथ थे अखिलेश यादव को उनसे बहुत उम्मीद थी. अखिलेश चाहते थे कि वो उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ें और पीएम पद के दावेदार बने. अखिलेश ने नीतीश के एनडीए में शामिल होने के बाद ट्वीट करके कहा भी था कि अगर वो इंडिया ब्लॉक में रहते तो पीएम बनते. अखिलेश ये बाते यूं ही नहीं कह रहे थे बल्कि इसके लिए उनके पास प्‍लान भी था. अखिलेश चाहते थे कि नीतीश यूपी की किसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ें. अखिलेश इसके लिए कुर्मी बहुल वाली मिर्जापुर, फूलपुर, अंबेडकर नगर की सीट देने को तैयार थे. लखनऊ में समाजवादी पार्टी के दफ्तर पर एक बार अखिलेश और नीतीश की फोटो वाले बैनर लगे थे जिस पर नारा लिखा था कि यूपी प्लस बिहार बराबर गई मोदी सरकार. पर नीतीश कुमार एनडीए में जाकर अखिलेश यादव के प्लान पर पानी फेर दिया.

समाजवादी पार्टी और कुर्मी वोट

मुलायम सिंह यादव के समय में समाजवादी पार्टी को एकतरफा कुर्मी वोट पड़ते रहे हैं. कद्दावर कुर्मी नेता बेनी प्रसाद वर्मा कभी समाजवादी पार्टी में नंबर दो की भूमिका में होते थे. बाद में अंदरूनी कलह के चलते उन्होंने कांग्रेस जॉइन कर लिया था. फिर धीरे-धीरे कुछ कुर्मी वोट बीजेपी की ओर शिफ्ट हो गए. इस बीच अखिलेश यादव ने 2017 के चुनावों के पहले गैरयादव ओबीसी को पटाना शुरू किया. इसके चलते ही उन्होंने समाजवादी पार्टी का राज्य अध्यक्ष किसी यादव को बनाने के बजाय कुर्मी नेता नरेश उत्तम पटेल को बनाया. यह पहली बार था कि समाजवादी पार्टी की राज्य इकाई की कमान किसी गैर यादव को मिली थी. 

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बसपा के कद्दावर कुर्मी नेता लालजी वर्मा को भी अखिलेश समाजवादी पार्टी में लाए और पार्टी का महासचिव बनाया. कुर्मी वोटरों के बीच पहुंच बनाने के चलते ही स्वर्गीय सोने लाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल को भी अपने साथ लाए. कृष्णा पटेल की छोटी बेटी पल्लवी पटेल ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर ही उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशवचंद्र मौर्या को 2022 के विधानसभा चुनावों में शिकस्त दी थी. वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं कि अगर नीतीश कुमार इंडिया ब्लॉक में होते और तो अखिलेश यादव को करीब 40 जिलों में कुर्मी वोटर्स का सपोर्ट मिलता. कुर्मी और यादवों की जुगलबंदी के चलते कई सीटों पर उलट फेर होने की संभावना रहती पर अब ऐसा नहीं होने वाला है. 

एनडीए किस तरह कुर्मी वोटर्स को साध रही है

नीतीश कुमार के एनडीए में आने से निश्चित है कि कुर्मियों के वोट अब बीजेपी को मिलने वाले हैं. वैसे भी यूपी और बिहार में कुर्मियों और अतिपिछड़ों के वोट एंटी यादव रहे हैं. आम तौर पर यूपी और बिहार में ये वोटिंग पैटर्न रहा है कि यादव समुदाय जिस किसी पार्टी को वोट देता है गैर यादव ओबीसी वोट जिसमें कुर्मी भी आते हैं , का वोट उस पार्टी के एंटी पार्टी को जाता है. बीजेपी के साथ यूपी में पहले ही अपना दल (अनुप्रिया पेटल) कई सालों से साथ हैं. अपना दल की अनुप्रिया पटेल मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं तो उनके पति आशीष पटेल यूपी सरकार में मंत्री हैं. जौनपुर के एक सम्मानित कुर्मी परिवार से आने वाली सुषमा पटेल ने भी अभी हाल ही में समाजवादी पार्टी को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी को जॉइन कर लिया है. इसी दौरान समाजवादी पार्टी को एक और सेटबैक का सामना करना पड़ा है. समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य और लखीमपुरी खीरी से 3 बार के लोकसभा सदस्य कद्दावर कुर्मी नेता रवि प्रकाश वर्मा ने समाजवादी पार्टी को छोड़कर कांग्रेस जॉइन कर लिया है. जाहिर है कि कागज पर तो कुर्मी वोटों का गणित अखिलेश य़ादव का गड़बड़ा गया है. अब धरातल पर क्या होता है यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे.

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पिछले चुनावों में कुर्मी वोटों पर किसका रहा दबदबा

यूपी में राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री रहते 2001 में एक सोशल जस्टिस कमेटी का गठन किया गया था. इस कमेटी की रिपोर्ट को आधार माने तो राज्य में करीब 7.46 परसेंट के करीब कुर्मी वोटर्स हैं. गौरतलब है कि इनमें से लगभग 15% पूर्वी यूपी में केंद्रित हैं. सीएसडीएस का अध्ययन कहता है 2022 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को कुर्मी और कोइरी के 66% वोट मिले. यानि कि कुर्मी वोटरों का बहुमत पहले से ही बीजेपी को वोट दे रहा है. एसपी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए अपना दल (कमेरावादी) को छह सीटें दी थी. पल्लवी पटेल ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और केशव प्रसाद मौर्य को हराया लेकिन अपना दल (कमेरावादी) एक भी सीट नहीं जीत सकी और उसे केवल 0.278% वोट मिले. दूसरी ओर, एनडीए की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने 17 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा और उनमें से 12 पर जीत हासिल की.2022 में मिली असफलता के बाद केशव मौर्य के खिलाफ पल्लवी पटेल की अहम जीत के बावजूद अखिलेश उन्हें कभी तवज्जो देते नहीं दिखे.दूसरी ओर बीजेपी कुर्मी वोटों के लिए अनुप्रिया पटेल को मोदी सरकार में जगह दी है और उनके पति को योगी सरकार में भी जगह मिली हुई है. 

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