देश के करीब 12 राज्यों में एसआईआर को लेकर बवाल मचा हुआ है. सबसे ज्यादा हल्ला पश्चिम बंगाल में है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह कहती रही हैं कि वे राज्य में एसआईआर को नहीं होने देंगी. मंगलवार को उन्होंने चैलेंज किया है कि किसी को भी राज्य से निकलने नहीं दूंगी. शायद उनका इशारा बांग्लादेश जा रहे उन अवैध प्रवासियों का था जिनके पास उचित डॉक्युमेंट नहीं हैं.
पहले भी उन्होंने ऐसा ही चैलेंज किया था पर बाद में खुद टीएमसी कार्यकर्ता आम लोगों का एसआईआर फॉर्म भरवा रहे थे. जाहिर है कि एसआईआर शुरू होने के बाद से ही भारी संख्या में बांग्लादेशी अवैध नागरिक भारत छोड़कर अपने देश जा रहे हैं. घुसपैठियों के पलायन पर कुछ दिनों तक ममता बनर्जी ने चुप्पी बनाए रखी. पर एक बार उन्होंने एसआईआर विरोध बयान देने शुरू कर दिए हैं.अब तो उन्होंने चुनौती ही दे डाली है.उधर चुनाव आयोग अपना काम जारी रखे हुए है. आज के चैलेंज से यह साफ हो गया है कि इस बार बंगाल में चुनाव एसआईआर के मुद्दे पर लड़ा जाना है.
पश्चिम बंगाल , बिहार और झारखंड आदि के सीमावर्ती जिलों के लिए यह कोई ढंकी छुपी बात नहीं है कि यहां पर हजारों की संख्या में बांग्लादेशी मुसलमानों की अवैध बस्तियां बन गई हैं. बांग्लादेश से आने वाले इन मुस्लिम घुसपैठियों को देश की तथाकथित सेक्युलर पार्टियों के संरक्षण में ये बस्तियां फली फूली हैं. इनमें से अधिकतर के राशन कार्ड और आधार कार्ड बन चुके हैं. पर वोटर आईडी बनवाने के लिए एसआईआर के मानदंड पूरे करने होते हैं, जिस पर ये लोग खरे नहीं उतर रहे हैं.
दूसरी तरफ देश में जनगणना के आंकड़े और चुनाव आयोग की मतदाता सूची के आंकड़े यह बताते हैं कि एक तरफ जहां पश्चिम बंगाल की आबादी पिछले दशक में माइनस में पहुंच गई है वहीं इस राज्य के कुछ जिलों में हंड्रेड पर्सेंट तक आबादी बढ़ी है. जाहिर है कि यह सब यूं ही नहीं हुआ है. भारतीय जनता पार्टी के लिए भी राज्य में इस बार स्टैंड करने के लिए घुसपैठियों का तगड़ा मुद्दा मिल गया है.
1-बंगाल के सीमावर्ती जिलों में प्रजनन और मृत्यु के आंकड़ों से परे है बढ़ती आबादी
पश्चिम बंगाल की पिछले 20 साल की औसत प्रजनन दर और औसत मृत्युदर की गणना करके पता चलता है कि वहां की आबादी जिस तरह से बढ़ी है उसका महिलाओं की प्रजनन दर और वहां होने वाली मृत्यु से कोई लेना देना नहीं है. 2002 से लेकर 2022 के बीच औसत प्रजनन दर 1.9 रही. जबकि, इसी अवधि में औसत मृत्यु दर 6 प्रति हजार रही. इस तरह यदि आबादी की औसत वृद्धि दर देखें तो यह महज 0.45 प्रतिशत ही है. लेकिन, बंगाल के सीमावर्ती के इलाकों में आश्चर्यजनक रूप से सौ फीसदी तक बढ़ गई है. यानी 20 साल में दोगुनी हो गई है. ऐसा तभी होता है जब किसी अमुक इलाके में जमकर पलायन हो. सवाल यह उठता है कि बंगाल के ये सीमावर्ती इलाके कोई बहुत बड़ा औद्योगिक और व्यापारिक केंद्र तो हैं नहीं, जहां लोग कामकाज की गरज से आकर रह रहे हों. फिर सवाल यही उठता है कि ये कौन लोग हैं, और कहां से आ रहे हैं? पड़ताल बेहद जरूरी है.
2-सीमावर्ती 10 जिलों के मतदाताओं की बढ़ोतरी हैरान करने वाली है
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर की मानें तो 2002 में, जब भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) ने आखिरी बार स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) कराया था, और 2025 के बीच पश्चिम बंगाल में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या में 66% की बढ़ोतरी हुई है. 2002 में कुल मतदातारओं की संख्या 4.58 करोड़ थी जो अब बढ़कर 7.63 करोड़ तक हो गई है. उस समय राज्य में 18 ज़िले थे, और ECI के आंकड़ों से पता चलता है कि जिन शीर्ष 10 ज़िलों में मतदाताओं की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि हुई है, उनमें से नौ ज़िले बांग्लादेश की सीमा से लगे हुए हैं.
ECI के उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, सीमा से लगे जिन नौ ज़िलों में सबसे अधिक वृद्धि हुई है, वे हैं:
उत्तर दिनाजपुर — 105.49%
मालदा — 94.58%
मुर्शिदाबाद — 87.65%
दक्षिण 24 परगना — 83.30%
जलपाईगुड़ी — 82.3%
कूचबिहार — 76.52%
उत्तर 24 परगना — 72.18%
नादिया — 71.46%
दक्षिण दिनाजपुर — 70.94%
शीर्ष 10 में एकमात्र गैर-सीमावर्ती जिला बीरभूम है (73.44%).
3-कोलकाता बनाम सीमावर्ती जिले
SIR आंकड़ों ने पश्चिम बंगाल के शहरी और ग्रामीण-सीमावर्ती क्षेत्रों के बीच चिरस्थायी असमानता को उजागर किया है. कोलकाता, राज्य की राजधानी, जहां 2002 में 23 लाख मतदाता थे, वहां केवल 4.6% वृद्धि हुई . अब यहां मतदाताओं की संख्या 24 लाख के करीब है. यह प्राकृतिक शहरीकरण और माइग्रेशन के अनुरूप है, लेकिन सीमावर्ती जिलों की तुलना में यह ठहराव जैसा लगता है.
दक्षिण 24 परगना में 83.3% वृद्धि, उत्तर 24 परगना में 72.1%, और हावड़ा में 57.1% वृद्धि क्या दर्शाता है? कोलकाता में हिंदू बहुल (85% से अधिक) आबादी स्थिर रही, जबकि सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम रेशियो बढ़ा. उदाहरण के लिए, मालदा में 2002 से 94% मतदाता वृद्धि हुई, जहां मुस्लिम आबादी 51% है. ईसीआई के अनुसार, SIR के दौरान इन जिलों में 40% से अधिक नाम 2002 सूची से मेल नहीं खाते, जो संदिग्ध हैं. कोलकाता में यह आंकड़ा मात्र 8% है. यह दर्शाता है कि सीमा क्षेत्रों में अनियंत्रित प्रवास ने मतदाता सूची को बहुत अधिक बढ़ाया है.जबकि शहरी विकास में सख्त सत्यापन रहा.
जाहिर है कि यह असंतुलन टीएमसी को दर्जनों सीटों पर मजबूत करता है. जिन सीमावर्ती विधानसभाओं में 70% से अधिक मुस्लिम वोटर हैं. SIR इस असंतुलन को सुधारने का प्रयास है, ताकि लोकतंत्र का आधार मजबूत हो. जाहिर है कि यह बीजेपी के लिए फायदेमंद है. बीजेपी इस मामले को जितना मुद्दा बनाएगी और टीएमसी इसका जितना विरोध करेगी दोनों के कोर वोटर उसके साथ उतना ही जुड़ेंगे.
4-घुसपैठ बनाम शरणार्थी पर राजनीति
SIR ने पश्चिम बंगाल की राजनीति को गरमा दिया है. सीमावर्ती जिलों में बेतहाशा बढ़ी आबादी के पीछे भाजपा का कहना है कि ये घुसपैठ है. गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, कुछ दल घुसपैठियों को बचाने के लिए SIR का विरोध कर रहे हैं. अमित मालवीय ने ईसीआई डेटा से टॉप 10 जिलों में नौ सीमावर्ती होने का हवाला दिया, दावा किया कि ये 'ममता का वोट बैंक' हैं. भाजपा का तर्क है कि बांग्लादेश से रोहिंग्या और मुस्लिम घुसपैठिए मतदाता बनकर फैल गए हैं, जिसके चलते 2019 चुनावों में टीएमसी को फायदा पहुंचा.दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने ईसीआई को पत्र लिखा, SIR को 'बैकडोर NRC' बताया. टीएमसी का कहना है कि सीमावर्ती जिलों की आबादी में बढ़ोतरी हिंदू शरणार्थियों की है, क्योंकि बांग्लादेश में हिंदू आबादी 23% (1951) से घटकर 8% (2022) हो गई. इसके साथ ही टीएमसी केंद्र और बीएसएफ पर नाकामी का आरोप लगाती है.
TMC प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने कहते हैं कि सीमावर्ती जिलों में तेज़ जनसंख्या वृद्धि का कारण बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थी हैं. बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 1951 में 23% थी, जो 2022 में घटकर 8% रह गई. वे चीन नहीं गए. कुछ असम और त्रिपुरा गए, लेकिन बहुसंख्यक पश्चिम बंगाल आए हैं.उन्होंने BJP पर मुस्लिम घुसपैठ का झूठा नैरेटिव फैलाने का आरोप लगाया है.
चक्रवर्ती कहते हैं कि ऐसे लोग कूचबिहार, अलीपुरद्वार और बोंगांव में बसे, जहां BJP ने उन्हीं के वोट से जीत हासिल की. मालदा और मुर्शिदाबाद में मुसलमानों की संख्या अधिक है और वहां हमने सीटें जीतीं. लेकिन हमारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धार्मिक विभाजन में विश्वास नहीं करतीं और सभी की सुरक्षा की मांग कर रही हैं.
5-SIR की प्रक्रिया बंगाल में क्यों अनिवार्य हो गई है
सीमावर्ती जिलों के संदर्भ में SIR एक जरूरी अभियान बन चुका है. इस पर राजनीति बिल्कुल नहीं होनी चाहिए. यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला बन गया है. सीमावर्ती जिलों में भी बीएलओ घर-घर जाकर दस्तावेज (आधार, 2002 वोटर लिस्ट) सत्यापित कर रहे हैं. सीमावर्ती जिलों में यह जरूरी है क्योंकि घुसपैठ से मतदाता सूची में 20-30% फर्जी नाम हो सकते हैं, जो चुनाव परिणाम बदल सकते हैं.
मुस्लिम आबादी में 2 से 4% दशकीय वृद्धि हो सकता है पर यहां तो उससे कहीं बहुत ज्यादा जनसंख्या बढ़ोतरी है.जाहिर है कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होती है.