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ममता बनर्जी ने क्‍यों बुलाया इमाम सम्‍मेलन? मुस्लिम वोटबैंक में फंसी TMC का अब बाहर आना नामुमकिन

पहले भारत में हर घटना के पीछे पाकिस्तान का हाथ बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता था. अब वो दौर आ गया है कि सारी समस्या का जड़ बांग्लादेश को बताकर उपद्रवियों को बचाया जा रहा है. उपद्रवियों के खिलाफ एक शब्द भी न बोलकर ममता बनर्जी ने साबित कर दिया है कि वो मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति में किस कदर फंस चुकी हैं.

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बुधवार को इमामों के सम्मेलन में बोलते हुए. (फोटोः PTI)
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बुधवार को इमामों के सम्मेलन में बोलते हुए. (फोटोः PTI)

वक्‍फ विरोध के नाम पर मुर्शिदाबाद पिछले जुमे के बाद से शुरू हुए खूनखराबे ने न सिर्फ हिंदुओं की जान ली, बल्कि सैकड़ों परिवार के घर उजाड़ दिए. इस हिंसा पर पहले तो ममता बनर्जी सरकार आंख मूंदे रही, फिर जब पानी सिर से गुजर गया तो बीजेपी पर आरोपों की बौछार लगा दी. बुधवार को कोलकाता में हुए इमाम सम्‍मेलन में ममता बनर्जी ने जिस तरह की बातें की हैं, साफ नजर आता है कि वे मुस्लिम वोटबैंक पॉलिटिक्‍स में पूरी तरह फंस चुकी हैं. सवाल उठता है कि क्या दंगा होने के बाद किसी एक पार्टी का पक्ष बनना क्या प्रदेश के चीफ मिनिस्टर को शोभा देता है. गोधरा हो या मुजफ्फरनगर , दिल्ली हो या संभल क्या कभी ऐसा हुआ है कि हिंसा के बाद सरकार किसी एक पक्ष में खड़ी नजर आई हो. अब तक ममता बनर्जी प्रदेश में रहने वाले 27 परसेंट मुस्लिम आबादी के लिए हर हद तक जाने को तैयार दिखती थीं. पर किसी खास समुदाय की हमदर्दी के लिए किसी अपराध को लेकर आंख मूद लेना एक संवैधानिक पद पर बैठे शख्स के लिए उचित नहीं है.

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एक ऐसा समय जब अपना सब कुछ छोड़कर अपने ही देश में शरणर्थी बनने को मजबूर हुए लोगों के लिए देना था. एक ऐसा समय जब भीड़ की हिंसा का शिकार हुए उस परिवार को देना था जिस घर के पिता-पुत्र मारे गए थे. पश्चिम बंगाल की सीएम को ऐसे समय में इमामों के सम्मेलन को संबोधित करने का मतलब सब लोग समझ रहे हैं. पर शायद ममता बनर्जी ये भूल रही हैं कि राजनीति में कब आपके दुर्दिन शुरू हो जाएं ये कोई नहीं जानता. जनता देख रही है कि आपके इस कदम से करोड़ों लोग कितना हर्ट हुए हैं.

1-क्‍यों कहना पड़ा कि इमाम मस्जिदों से शांति का पैगाम दें?

ममता बनर्जी ने इमामों के सम्मेलन में अपील किया कि वे मस्जिदों से शांति का पैगम दें. क्या ममता बनर्जी को लगता है कि उनके शांति संदेश देने से हिंसा रुक जाएगी या फिर से नहीं होगी. इसका मतलब है कि वो समझती हैं कि कहीं न कहीं इस हिंसा के दोषी मस्जिदों के इमाम भी हैं. अगर इमामों को शांति का संदेश देने के लिए ममता बनर्जी के सलाह की जरूरत पड़ रही है तो सीधा मतलब है कि कहीं न कहीं हिंसा में वे भी सम्मिलित हैं. क्या ममता बनर्जी ने हिंदुओं से भी कोई अपील की? उनका हिंदुओं से अपील नहीं करने का मतलब भी सीधा है. पहला मतलब तो ये हो सकता है कि वे उन्हें अपना वोटर्स ही नहीं मानती हों. दूसरा यह भी हो सकता है कि वो समझती हैं कि हिंदुओं पर हुए अत्याचार के लिए वो दोषी नहीं हैं इसलिए उनसे बात ही क्या करना है? 

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बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय अपने एक्स हैंडल पर लिखते हैं कि

' ममता बनर्जी स्पष्ट रूप से हिल गई हैं. जब उन्हें किसी कोने में धकेला जाता है, तो वे सरासर झूठ का सहारा लेती हैं.

आज, उन्होंने बीएसएफ को घसीटा, केंद्र सरकार को दोषी ठहराया और अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का बचाव किया, जो मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के घरों, जीवन और आजीविका को तबाह करने वाली हिंसक मुस्लिम भीड़ का हिस्सा थे. वास्तविकता? लगभग 400 किलोमीटर की सीमा असुरक्षित है क्योंकि उनकी सरकार ने जानबूझकर बाड़ लगाने के लिए आवश्यक भूमि को रोक रखा है, जिससे उनकी लुंगी वाहिनी के सदस्यों की अनियंत्रित आवाजाही को बढ़ावा मिलता है.

मालदा-मुर्शिदाबाद बेल्ट में बीड़ी और जूट कारखानों पर एक नज़र डालें - जो टीएमसी से जुड़े मुस्लिम व्यापारियों द्वारा नियंत्रित हैं - सच्चाई को उजागर करते हैं: अवैध बांग्लादेशियों को नियमित रूप से सस्ते श्रम के रूप में काम पर रखा जाता है. उन्हीं व्यक्तियों को उनके इशारे पर हिंसा भड़काने के लिए जुटाया गया था.

इन सबके बीच, नवजात शिशुओं और नवविवाहितों सहित विस्थापित हिंदू परिवारों के लिए उनकी ओर से सहानुभूति का एक भी शब्द नहीं आया है. उनकी चुप्पी उनकी मिलीभगत जितनी ही स्पष्ट है.

वह सांप्रदायिक अशांति और सामने आए दिल दहला देने वाले निर्दोष लोगों की जान के लिए जिम्मेदारी से बच नहीं सकतीं.

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जहां तक वक्फ अधिनियम को लागू न करने के उनके दावे की बात है - यह एक और झूठ है. कोई राज्य सरकार भारतीय संसद द्वारा पारित अधिनियम की अवहेलना नहीं कर सकती. अनुपालन वैकल्पिक नहीं है; यह अनिवार्य है. उन्होंने सीएए के बारे में भी इसी तरह के दावे किए, लेकिन वह भी देश का कानून है.

और अंत में, मुख्यमंत्री के लिए एक शब्द: पश्चिम बंगाल की सीमा श्रीलंका से नहीं लगती। एक ही सांस में, वह बुनियादी भूगोल को कुचलने और सार्वजनिक बुद्धिमत्ता का अपमान करने में कामयाब रही. '


2-बीजेपी आएगी तो मुसलमानों का सब छिन जाएगा, दिल्‍ली में मांस-मछली बेचना बैन कर दिया है

ममता बनर्जी के लिए मुख्य मुद्दा आज की तारीख में बंगाल में शांति होनी चाहिए पर उन्हें राजनीति ही दिख रहा है. इमामों के सम्मेलन में जाकर उन्हें और भड़काने का काम कहां से न्यायोचित हो सकता है. बनर्जी कहती हैं कि अगर बंगाल में शांति होगी तो सब अच्छा रहेगा. भाजपा बंगाल में ध्रुवीकरण करना चाहती है ताकि हमारी सरकार चली जाए और उनकी सरकार आए, जब वे आएंगे तो आपका खाना भी बंद कर देंगे. दिल्ली में देखिए कैसे उन्होंने बंगाली इलाकों में मछली और मांस बंद कर दिया है.
 
अगर ये सभा आम सभा होती या हिंदू -मुसलमानों की कोई शांति कमेटी होती तो ममता बनर्जी की ये बात ऐसी लगती जैसे कि वो सांप्रादियकता के खिलाफ बोल रही हैं. कल्पना करिए कि इमामों के सम्मेलन में जो बातें ममता बनर्जी ने कहीं, वैसी ही बातें योगी आदित्यनाथ संभल में मुसलमानों की मौत के बाद प्रदेश भर के पुजारियों को बुलाकर कहते तो यूपी की फिजां कैसी होती? वक्फ संशोधन बिल के पहले भी ममता बनर्जी ने राज्य की जनता को सीएए के नाम पर भड़काया था. पर आज तक एक भी मुसलमान की नागरिकता पूरे देश में नहीं गई है.

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ममता बनर्जी ने योगी के बयानों को आधार बनाकर भी इमामों को भड़काने की कोशिश की. यह तो अच्छा रहा कि इमाम ये बातें समझ रहे थे कि ममता बनर्जी वोट के लिए उन्हें भड़का रही हैं. पर अगर पश्चिम बंगाल में फिर कहीं हिंसा होती है तो इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार ममता बनर्जी ही होंगी.


3-ममता सरकार में मुस्लिम क्‍यों हुए हिंसक, जबकि असम-कश्‍मीर में ज्‍यादा मुस्लिम मेजोरिटी के बावजूद शांति है

मान लीजिए कि वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम के चलते मुस्लिम समुदाय में नाराजगी है. तो नाराजगी और जगहों पर क्यों नहीं दिख रही है. यूपी और बिहार में भी मुसलमान हैं वहां क्यों नहीं दिख रही है. आसाम में मुसलमान 34 प्रतिशत के करीब हैं, जबकि कश्माीर 68 परसेंट मुसलमान हैं. पर कहीं से भी इस तरह की हिंसक खबरें आईँ हैं क्या ? जाहिर है कि मुर्शिदाबाद में बंगाल सरकार खुद चाहती रही होगी कि हिंसा हो.

आज इमामों के सम्मेलन में जिस तरह एक शब्द भी हिंसा करने वालों के खिलाफ ममता ने नहीं बोला इसका साफ मतलब है कि वो आरोपियों को बचा रही हैं. जिस प्रदेश में इतनी खुली छूट मिलने का संदेश आम लोगों के बीच जाएगा , जाहिर है कि वहां के कुछ लोग हिंसक हो ही जाएंगे. और जब राजनीतिक फायदा होता नजर आएगा तो यह काम उत्साह के साथ किया जाएगा.

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4-बांग्‍लादेशी घुसपैठिये केंद्र की समस्‍या हैं, ममता सरकार की नहीं

मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के पीछे बांग्लादेशियों का हाथ होने की बात करके प्रदेश की मुख्यमंत्री ने उन सैकड़ों गुंडों को क्लिन चिट दे दी है जो जुमे की नमाज के बाद दुकानों , और मॉल्स को लूट रहे थे , गाड़ियां फूंक रहे थे. किसी भी घटना या समस्या को लाइट करना हो तो उसे जनरलाइज करन सबसे बड़ी पॉलिसी होती है.

पहले भारत में हर घटना के पीछे पाकिस्तान का हाथ बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता था. अब वो दौर आ गया है कि सारी समस्या का जड़ बांग्लादेश को बताकर उपद्रवियों को बचाया जा रहा है.   ममता बनर्जी ये कहकर नहीं बच सकतीं कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या केंद्र की है. रोजमर्रा का हर काम राज्य के जिम्मे ही होता है. आधार कार्ड बनाने के लिए राशन कार्ड और बैंक खातों के लिए राज्य सरकार ही एड्रेस प्रूफ जारी करती है. 

5-इंडिया गुट में कांग्रेस की जगह लेने के लिए सबसे बड़ा मुस्लिम रहनुमा बनने की होड़

इमाम सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी कहती हैं कि 'इंडिया गुड के सभी दलों को बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति का विरोध करने के लिए उनका साथ देना चाहिये.' पिछले कुछ महीनों से इंडिया गुट के दलों में मुसलमानों का रहनुमा बनने के लिए हर लक्ष्मण रेखा पार करने के लिए नेता तैयार दिख रहे है. ऐसे में ममता पीछे नहीं दिखना चाहती हैं. जिस तरह पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और ममता बनर्जी ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे अपना सिर झुकाया है, वो कुछ तो कहता ही है. क्या कांग्रेस के उभार के चलते ऐसा हो रहा है. क्या 2024 में कांग्रेस को मिली सफलता के चलते क्षेत्रीय दलों में कांग्रेस के उभार का डर समा गया है. क्या इन लोगों को लगता है कि उनका कोर वोट बैंक मुसलमान कभी भी अपने पुराने घर वापस जा सकता है? शायद यह सही भी है. मुसलमान जिस तरह कांग्रेस के साथ जुड़ रहे हैं, वह दिन दूर नहीं है कि क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो जाएगा.

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