पिछले 2 हफ्ते से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि भारतीय जनता पार्टी में किसी दलित को अध्यक्ष बनाया जा सकता है. इस बीच राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर कंट्रोवर्सी हो गई. कांग्रेस और समूचे विपक्ष ने इस मुद्दे को इस तरह लपक लिया जैसे गृह मंत्री ने कितना बड़ा अपराध कर दिया हो. इस मुद्दे पर बैकफुट पर आ चुकी भारतीय जनता पार्टी अब इससे निकलना चाहती है. कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के सामने इस संकट से निकलने का सबसे बड़ा स्टेप यही हो सकता है कि किसी दलित नेता को पार्टी प्रेसिडेंट पद पर बैठा दिया जाए. पर भारतीय जनता पार्टी की राजनीति वहीं से शुरू होती है जहां से विपक्ष और आम लोग सोचना बंद कर देते हैं. इसलिए यह कहना आसान नहीं है कि बीजेपी में कौन अध्यक्ष बन रहा है. पर परिस्थितियां जैसी बन रही हैं उसके हिसाब से तो भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे अधिक सुटेबल अध्यक्ष किसी दलित जाति से ताल्लुक रखने वाला ही हो सकता है.
1-मल्लिकार्जुन खड़गे इफेक्ट
कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनावों के काफी पहले मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ दलित नेता को पार्टी प्रेसिडेंट पद पर पहुंचाकर अपना संदेश दे दिया था. कांग्रेस की यह रणनीति कारगर भी रही. कर्नाटक विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में पार्टी के पक्ष में दलित वोटों को सीधे मूव करते देखा गया है. जबकि पिछले कई चुनावों से दलित वोट हार्डकोर दलित राजनीति करने वाली पार्टियों और बीजेपी में बंट रहा था. पर 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को उत्तर से दक्षिण तक के राज्यों में दलित वोटों का भरपूर साथ मिला. भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस के इस कार्ड की काट के लिए कुछ कुछ वैसा ही करना होगा. जाहिर है कि देश का प्रेसिडेंट पद बीजेपी की तरफ से एक आदिवासी महिला को दिया गया है तो पार्टी प्रेसिडेंट भी किसी दलित महिला को दिया जा सकता है.
2-इधर कुछ ज्यादा ही ब्राह्मणों की नियुक्ति हुई
पिछले 10 सालों में संवैधानिक पदों पर होने वाली नियुक्तियों में सवर्णों का प्रतिशत दिन प्रतिदिन कम होते देखा जा रहा था. विशेषकर ब्राह्मणों का ग्राफ तो सबसे तेजी से गिरा. पर कुछ दिनों से बीजेपी में ऐसा महसूस किया जा रहा है कि बीजेपी की छवि एक बार फिर अगड़ों की पार्टी की बन रही है. पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बाद हरियाणा से राज्यसभा में जाने वाली रेखा रानी शर्मा की नियुक्ति ऐसी रही जिसका दबी जुबान में पार्टी में विरोध भी हुआ. दरअसल, चाहे राजस्थान हो या महाराष्ट्र या हो हरियाणा, इन सभी जगहों पर ब्राह्मणों की संख्या बेहद कम है. फिर भी पार्टी ने अन्य बहुसंख्यक जातियों की उपेक्षा करके ब्राह्मणों को संवैधानिक पद सौंपे. जाहिर है कि अब वक्त आ गया है कि किसी दलित को पार्टी की सबसे अहम जिम्मेदारी देकर सवर्ण पार्टी होने का ठप्पा मिटाया जा सके.
3-आरएसएस भी चाहेगा कि कोई दलित अध्यक्ष बने
भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में तो दलित नेता अध्यक्ष पद तक पहुंच चुका है. पर आरएसएस के इतिहास में कभी कोई दलित नेता संगटन के सबसे बड़े पद तक नहीं पहुंचा है. इस बात के लिए अक्सर आरएसएस पर विपक्ष तंज भी कसता रहा है. यही कारण है कि कोई दलित नेता बीजेपी का अध्यक्ष बनता है दो निश्चित रूप से संघ उसका समर्थन करेगा.
हालांकि ऐसे लोगों की संख्या बहुत ही कम है जो आरएसएस का समर्थन भी रखते हैं और मजबूत संगठनात्मक अनुभव भी रखते हों. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसे दलित नेता जिनकी संभावित उम्मीदवारों में नाम आगे चल रहा है उनसमें केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, बीजेपी महासचिव दुष्यंत गौतम और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बेबी रानी मौर्य के नाम चर्चा में हैं. अर्जुन राम मेघवाल की एजुकेशन और मोदी सरकार में मिली उनकी अहम जिम्मेदारियों के चलते ऐसा लगता है कि इस रेस में वो सबसे आगे हो सकते हैं. बेबी रानी मौर्या को भी जिस तरह कुछ साल पहले उत्तराखंड के राज्यपाल पद से त्यागपत्र दिलवाकर मेन स्ट्रीम राजनीति में वापसी करवाई गई थी उससे उनके नाम के महत्व को आंका जा सकता है.
हालांकि, जैसा इतिहास बताता है उसके हिसाब से यह असंभव नहीं है कि कोई ऐसा चेहरा भी आ जाए जिसे कोई जानता भी न हो. मोदी जी की पिछली पसंदों को देखते हुए, यह एक लो-प्रोफाइल और भरोसेमंद नेता भी हो सकता है.
4-नेतृत्व के लिए हर तरह से मुफीद
चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस, हर पार्टी में दलित नेताओं को बड़े पद दे तो दिए जाते हैं पर उनका रिमोट पार्टी के अन्य बड़े नेताओं के हाथ में ही रहता है. कांग्रेस में दलित प्रेसिडेंट के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे की ताजपोशी हो चुकी है पर उन्हें अध्यक्ष पद पर कितनी शक्ति मिली हुई ये सभी जानते हैं. उन्हें न किसी की नियुक्ति का अधिकार है और न ही किसी की बर्खास्तगी का. बिना गांधी परिवार से सलाह लिए वो एक कदम नहीं चल सकते हैं. ऐसा ही बीजेपी में होगा और यह नेतृत्व के लिए हर तरह से मुफीद ही होगा. कोई नहीं चाहता कि किसी महत्वपूर्ण पद पर ऐसा व्यक्ति बैठ जाए जो अपने मन से फैसले लेने शुरू कर दे.
5-मायावती का कमजोर होना
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के कमजोर होने से एक ऐसी जगह खाली हुई है जिसे भरने के लिए हर पार्टी बेचैन है. उत्तर प्रदेश भीम ऑर्मी चीफ चंद्रशेखर बहुत समय से लगे हुए हैं. जिस तरह उपचुनावों में उनकी पार्टी ने कुछ सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों से अधिक वोट हासिल किए हैं उससे यही लगता है कि भविष्य उज्ज्वल है. पर जबसे वो सांसद बने हैं उनकी राजनीति डिरेल होती दिख रही है. दूसरे कांग्रेस बहुत तेजी से अपने कोर वोटर्स दलितों के बीच पैठ बना रही है. अखिलेश यादव और बीजेपी भी दलितों के बीच पैर पसार रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी यही चाहेगी कि किसी उत्तर प्रदेश के किसी दलित नेता को सर्वोच्च पद पर बैठा दिया जाए जिससे दलितों के बीच बीजेपी को लेकर पॉजिटिव संदेश जाए. यूपी के ही दलित नेता रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर बीजेपी यह प्रयोग पहले भी कर चुकी है. जो काफी फायदेमंद साबित हुआ था.