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AIMIM की नई रणनीति से बिहार में महागठबंधन के मुकाबले एनडीए को फायदा या नुकसान ?

ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की धज्जियां उड़ाने वाले बयान देकर देश में असदुद्दीन ओवैसी कट्टर राष्ट्रभक्त बनकर उभरे हैं. जाहिर है कि उनकी लोकप्रियता में काफी बढ़ोतरी हुई है. अब तक देश का विपक्ष उन्हें वोटकटवा के रूप मे बीजेपी की बी टीम मानता था. अगर वो इंडिया गुट के साथ जाते हैं तो बीजेपी के कितनी बड़ी मुश्किल खड़ी करेंगे?

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AIMIM प्रमुख ओवैसी (फाइल फोटो)
AIMIM प्रमुख ओवैसी (फाइल फोटो)

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन के साथ गठबंधन करने के संकेत दिए हैं. दरअसल अभी तक ओवैसी एनडीए और इंडिया गुट की पार्टियों से एक समान दूरी बना कर रखते रहे हैं. एनडीए विरोधी पार्टियां एआईएमआईएम को हमेशा वोटकटवा के रूप में देखती रही हैं. हालांकि, ये आरोप काफी हद तक सही भी रहा है कि AIMIM के चलते एनडीए के आगे विपक्ष कमजोर हो जाता रहा है. कई ऐसे उदाहरण हैं कि एआईएमआईएम के चलते विपक्ष को कई सीटों से हाथ धोना पड़ा है. पर विपक्ष खुद भी एआईएमआईएम से निश्चित दूरी बनाकर रहना चाहता है. उसे पता है कि एआईएमआईएम को अगर अपने साथ लाए तो मुसलमानों के उनके कोर वोट पर डाका पड़ जाएगा. पर जिस तरह से ऑपरेशन सिंदूर के बाद औवैसी ने इंडिया गुट के अन्य दलों के मुकाबले खुद को जिम्मेदार राष्ट्रभक्त के रूप में पेश किया है उससे उनकी लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है. बिहार के सीमांचल एरिया में एआईएमआईएम का प्रभाव जबरदस्त है. मुस्लिम बहुल इस एरिया में कांग्रेस की भी अच्छी पकड़ है. आइये देखते हैं कि बिहार में एआईएमआईएम की नई रणनीति से बीजेपी को कितना नुकसान होने की संभावन बन रही है? 

1. AIMIM क्यों बन सकती है महागठबंधन की ताकत

AIMIM के राष्ट्रीय प्रवक्ता आदिल हसन ने मई 2025 में इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उनकी पार्टी महागठबंधन के साथ गठबंधन करने में रुचि रखती है. उन्होंने कहा, हमारी विचारधारा BJP को हराना और बिहार को सशक्त बनाना है. हम चाहते हैं कि महागठबंधन AIMIM को साथ लेकर चले. इसके लिए पार्टी कुछ कम सीटों पर लड़ने के लिए भी तैयार है. AIMIM ने शुरू में बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 50 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई थी. पर अब पार्टी की ओर संकेत दिए गए हैं कि अगर महागठबंधन के साथ गठबंधन होता है तो पार्टी कम सीटों पर भी चुनाव लड़ने को तैयार हैं.

AIMIM का मुख्य प्रभाव सीमांचल क्षेत्र के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया जैसे इलाकों में है, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. 2020 में, AIMIM ने इस क्षेत्र में पांच सीटें अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी, और बहादुरगंज जीती थी, जो इसकी ताकत को दर्शाता है.

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2. महागठबंधन की प्रतिक्रिया

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि AIMIM की ओर से अभी तक कोई औपचारिक गठबंधन प्रस्ताव नहीं मिला है. जाहिर है कि यह महागठबंधन के दलों की ओवैसी को लेकर उदासीनता ही है. दरअसल, RJD और कांग्रेस AIMIM के साथ गठबंधन को लेकर सतर्क हैं और वो कभी नहीं चाहेंगे कि असदुद्दीन ओवैसी महागठबंधन में शामिल हों. क्योंकि आरजेडी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी आदि दल AIMIM को अतीत में BJP की B-टीम और वोटकटवा कहकर उसे बदनाम करते रहे हैं.

हालांकि, जिस तरह 2020 में AIMIM के चलते RJD को नुकसान हुआ था उसकी भरपाई के लिए पार्टी इस बार जरूर सोचेगी. क्योंकि सीमांचल में मुस्लिम वोट अगर इस बार भी बंटे तो महागठबंधन एक बार फिर सत्ता से दूर हो जाएगा. 

समस्या यह है कि महागठबंधन में एआईएमआईएम के आने से सीटों बंटवारा मुश्किल हो जाएगा. RJD, कांग्रेस, और वामपंथी दल (CPI, CPM, CPI-ML) सभी मुसलमानों को अपना कोर वोटर मानते हैं. AIMIM के शामिल होने से महागठबंधन को मुस्लिम वोटों को एकजुट करने में मदद तो मिलेगी पर कांग्रेस-आरजेडी आदि के हाथ से हमेशा के लिए उनका मुस्लिम वोट बैंक बिहार में छिटकने का खतरा पैदा हो जाएगा.

3. AIMIM की रणनीति और बिहार में स्थिति

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2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM ने 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था, और पांच सीटें जीतीं भी. हालांकि, बाद में उसके चार विधायक RJD में शामिल हो गए, जिससे पार्टी को झटका लगा. वर्तमान में, अख्तरुल ईमान (अमौर) AIMIM के एकमात्र विधायक हैं. यही कारण है कि पार्टी चाहती है कि गठबंधन में आने से कम से कम विधायकों के पार्टी छोड़ने की नौबत तो नहीं आएगी. 2020 में AIMIM ने बसपा और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के साथ तीसरा मोर्चा बनाया था, जिससे RJD को नुकसान हुआ. पर चुनाव जीतने के बाद आरजेडी का नुकसान उसके फायदे में बदल गया. इस बार, AIMIM ने पहले अकेले लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन शायद अब मन बदल रहा है.

4- एनडीए पर प्रभाव

AIMIM का साथ मिलने से महागठबंधन को सीमांचल में मुस्लिम वोटों का नुकसान रुकेगा तो जाहिर है कि एनडीए को नुकसान होना तय हो जाएगा. 2020 में AIMIM की वजह से RJD को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था.

अगर AIMIM महागठबंधन में शामिल होती है, तो यह NDA के लिए चुनौती बन सकता है, क्योंकि सीमांचल की 24-30 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक रोल में हैं.

AIMIM की मांग 50+ सीटों की है, जो RJD और कांग्रेस के लिए स्वीकार करना मुश्किल हो सकता है. महागठबंधन में पहले से ही सीट बंटवारे पर तनावपूर्ण माहौल है, जैसा कि 2019 में देखा गया था. इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि यह एआईएमआईएम की रणनीति भी हो सकती है. सम्मानजनक सीट न मिलने का आरोप लगाकर अगर ऐन चुनाव से पहले महागठबंधन से एआईएमआईएम अलग होती है तो कांग्रेस और आरजेडी के लिए मुश्किल हो सकती है. क्योंकि ऐसी स्थिति में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण एआईएमआईम विक्टिम कार्ड खेलकर अपने पक्ष में करा सकती है.

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