
हाल ही में कई लोगों को अचानक ChatGPT पर 'Network Error' दिखने लगा. X की फीड रिफ्रेश नहीं हो रही थी, Spotify का गाना बीच में रुक गया. लोगों की पहली प्रतिक्रिया यही थी की शायद इंटरनेट ही स्लो है या मोबाइल में दिक्कत होगी. किसी ने Wi-Fi रीस्टार्ट किया, किसी ने एयरप्लेन मोड ऑन-ऑफ किया. लेकिन इस बार गलती आपकी डिवाइस की नहीं थी. असल वजह इंटरनेट की दुनिया के उस इनविज़िबल जायंट में गड़बड़ थी, जो पर्दे के पीछे ट्रैफिक संभालता है. इसका नाम है Cloudflare.
शटडाउन के बाद गूगल पर Cloudflare के बारे में लोगों ने खूब सर्च किया. क्योंकि जो वेबसाइट ओपन नहीं हो रही थीं वहां Cloudflare का एरर आ रहा था. लोग क्यूरियस हो गए कि आखिर ये क्लाउडफ्लेयर क्या है?

मॉडर्न इंटरनेट बेहद नाजुक है, पल भर में ठप हो सकता है
जो कुछ हुआ, वो सिर्फ एक आउटेज नहीं था. यह एक वेक-अप कॉल था कि हमारा मॉडर्न इंटरनेट बाहर से भले तेज़ और स्मार्ट दिखता हो, पर भीतर से कितना नाज़ुक है. Cloudflare के एक छोटे से बग ने दुनिया भर में लाखों वेबसाइट्स और ऐप्स को ऐसे रोक दिया जैसे किसी ने 'मास्टर स्विच' ऑफ कर दिया हो.
OpenAI, Canva, Discord जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स ठप हो गए. इंडिया में Zerodha, मीडिया वेबसाइट्स और कई प्रोडक्टिविटी टूल्स पर असर दिखा. एक कंपनी के एक ग्लिच का असर दुनिया के यूज़र्स पर ऐसे पड़ा जैसे डिजिटल ब्लैकआउट हो गया हो.
Cloudflare क्या करता है?
समस्या की जड़ समझने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि Cloudflare करता क्या है. आसान भाषा में, जब आप कोई वेबसाइट ओपन करते हैं, तो आप सीधे उस वेबसाइट के सर्वर से नहीं जुड़ते. बीच में एक सुरक्षा दीवार और ट्रैफिक मैनेजर होता है Cloudflare.
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क्लाउडफ्लेयर दुनिया भर में फैले अपने सर्वर्स पर वेबसाइट का डेटा कॉपी कर के रखता है, जिसे CDN (Content Delivery Network) कहा जाता है. इसका फायदा यह कि यूज़र जहां भी हों, उन्हें नज़दीकी सर्वर से डेटा तुरंत मिल जाता है.

उदाहरण के तौर पर अगर अमेरिकी कंपनी भारत में सर्विस दे रही है और उसका सर्वर सिर्फ अमेरिका में ही है तो उस सर्विस की स्पीड स्लो हो सकती है, लेकिन अगर उस कंपनी Cloudflare सर्विस ले रखा है तो फास्ट हो जाता है, क्योंकि इन्होंने दुनिया भर में अपना सेटअप बना रखा है.
दूसरी बड़ी भूमिका सिक्योरिटी की है Cloudflare हैकर्स के DDoS जैसे अटैक्स को गेट पर ही रोक देता है. इसलिए इसे इंटरनेट का सिक्योरिटी गार्ड और ट्रैफिक पुलिस दोनों कहा जा सकता है.
क्यों होते हैं फेल?
दिक्कत तब शुरू होती है जब ट्रैफिक पुलिस खुद ही फेल हो जाए. इस आउटेज के दौरान Cloudflare अपने सिस्टम में एक अपडेट कर रहा था. इसी दौरान उनके Bot Management System में मौजूद एक लेटेंट बग एक्टिव हो गया. एक छोटी सी इंटरनल फाइल करप्ट हो गई, जिसका साइज अचानक दोगुना हो गया. सर्वर्स इस लोड को झेल नहीं पाए, और दुनिया भर की Cloudflare-enabled साइट्स एक-एक कर के फेल होने लगीं. यह साइबर अटैक नहीं था. यह तकनीक की उसी कमजोरी की मिसाल थी जहां एक छोटी सी फाइल का करप्शन पूरे इंटरनेट का ट्रैफिक रोक देता है.
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मोनोपली का खेल और सिंगल प्वाइंट ऑफ फेलियर
असल मुद्दा सिर्फ यह ग्लिच नहीं है. असली खतरा यह है कि हमने इंटरनेट को धीरे-धीरे कुछ गिनी-चुनी कंपनियों पर टिका दिया है. AWS, Google Cloud, Microsoft Azure और Cloudflare, आज इंटरनेट का इंफ्रास्ट्रक्चर इन्हीं हाथों में है. इसे सिंगल प्वाइंट ऑफ फेलियर कहते हैं. अगर AWS रुकता है तो आधा इंटरनेट लड़खड़ा जाता है.
अगर Cloudflare बैठता है, तो लाखों वेबसाइट्स, ऐप्स और APIs एक लाइन से डाउन हो जाते हैं. इंटरनेट को कभी डिसेंट्रलाइज़्ड होना था, लेकिन आज हम उतने ही सेंट्रलाइज़्ड हो चुके हैं जितना किसी टेलीकॉम या पावर ग्रिड सिस्टम को नहीं होना चाहिए.
भारत के लिए भी रेड फ्लैग
भारत के लिए यह समस्या और बड़ी है, क्योंकि हम अब एक डिजिटल फर्स्ट इकोनॉमी हो चुकी हैं. हमारी पेमेंट्स UPI से लेकर कार्ड स्वाइप तक, हमारी ट्रेडिंग, हमारा एंटरटेनमेंट, हमारा न्यूज़ कंजम्प्शन, सब क्लाउड पर चलता है. जब Cloudflare जैसा बड़ा प्लेयर डाउन होता है, तो ई-कॉमर्स साइट्स के चेकआउट लोड नहीं होते, स्टॉक ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म्स पर दिक्कत आती है, मीडिया का बैकएंड रुक जाता है.
बिज़नेस का हर मिनट लाखों-करोड़ों में तोलने लायक नुकसान होता है. आम यूज़र सोचता है कि ऐप खराब है, सर्वर धीमा है, या उसका डेटा ख़त्म हो गया है. लेकिन असल में ये बैकएंड इंफ्रास्ट्रक्चर का फेलियर होता है जिसे आज भी ज़्यादातर लोग पहचान नहीं पाते.
इस घटना ने इंडियन स्टार्टअप्स के लिए भी एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, अगर कल फिर ऐसा शटडाउन हुआ, तो फॉलबैक क्या है? क्या ट्रैफिक के पास दूसरा रास्ता होगा? क्या सिस्टम मल्टी प्रोवाइडर रेडी हैं?
एक बग और डिजिटल इकॉनमी ठप!
अभी सच यह है कि आसानी के लिए सब Cloudflare जैसी सस्ती और तेज़ सर्विसेज पर जाते हैं, लेकिन किसी भी कंटीेजेंसी प्लान को सीरियसली नहीं बनाते.
मेरी राय में यह आउटेज सिर्फ एक टेक्निकल इश्यू नहीं था. यह एक चेतावनी है. इंटरनेट जिस रफ़्तार से स्केल हुआ है, उसकी रिलायब्लिटी और रेजिलिएंस उसी स्पीड से नहीं बढ़ाई गई. हम तेज़ी के पीछे भागते-भागते इतनी डिपेंडेंसी एक ही टोकरी में डाल चुके हैं कि एक बग से पूरी डिजिटल इकोनमी हिल जाती है.
आगे का रास्ता साफ़ है. कंपनियों को Multi-CDN और मल्टी क्लाउड स्ट्रैटिजी अपनानी होगी. यानी अगर Cloudflare बैठ जाए तो ट्रैफिक Akamai, Fastly या AWS CloudFront जैसे दूसरे रास्तों से भी जा सके. भारत को भी डिजिटल बैकबोन को 'एसेंशियल डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर' की तरह ट्रीट करना होगा, जहां ट्रांसपेरेंसी, इंसिडेंट रिपोर्ट और जिम्मेदारी अनिवार्य हों.
अगली बार अगर आपका कोई फेवरेट ऐप अचानक न खुले, तो तुरन्त फोन या Wi-Fi को दोष मत दीजिए. हो सकता है इंटरनेट के किसी और मास्टर स्विच ने फिर से झपकी ले ली हो. और जब तक इंटरनेट सेंट्रलाइज़्ड रहेगा, ऐसी झपकियों का असर दुनिया भर में महसूस होता रहेगा. क्योंकि डिसेंट्रलाइजेशन और Web3 ही इसके प्रॉपर सॉल्यूशन हैं.