'जब मैं बटन दबाने को कहूँ, तो सोच-समझकर दबाना. इस बार सिर्फ़ चेहरा मत देखना, काम देखना.
सिर्फ़ नाम मत देखना, नीयत देखना.
सिर्फ़ वादे मत सुनना, उनके पूरे होने का हिसाब मांगना.
कौन सा धर्म, कौन सी जात, कौन सी ज़ुबान बोलता है — यह मत देखना.
देखना कि कौन तुम्हारे लिए काम करता है, कौन तुम्हारे बच्चों के लिए स्कूल बनवाता है, खेतों में पानी लाता है, अस्पतालों में दवा पहुँचाता है.
और हां… इस बार सिर्फ़ नेता नहीं, उसकी नीयत भी देखना… और बेटा भी.'
उपरोक्त डॉयलॉग किसी मंच से बोल रहे नेता के नहीं हैं. यह डायलॉग जवान फिल्म के क्लाइमैक्स में आता है और जब सीधे तौर पर फिल्म का नायक दर्शकों को संबोधित करता है. फिल्म में बॉलिवुड के सुपर स्टार शाहरुख ने इस किरदार को निभाया था. Jawan फिल्म भारत में 7 सितंबर 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई थी.फिल्म के रिलीज होने के 6 महीन बाद देश में लोकसभा चुनावों के लिए अधिसूचना जारी होनी थी. मतलब साफ था कि इस डॉयलॉग के राजनीतिक निहितार्थ थे. उस समय कहा गया कि शाहरुख केंद्र की सत्ताधारी मोदी सरकार के खिलाफ आम लोगों से वोट देने की अपील कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने स्पष्ट रूप से किसी सरकार के पक्ष या विपक्ष में बात नहीं की थी. पर जिन लोगों ने यह फिल्म देखी थी उन्हें पता था कि हमारा हीरो किसे वोट नहीं देने की अपील कर रहा था.
1-क्यों नहीं पच रहा है जवान के लिए शाहरूख को नेशनल अवॉर्ड देना
अगर किसी मूवी में किसानों की समस्या, अमीरों लोगों की कर्जमाफी, सरकारी अस्पतालों की दयनीय स्थिति, सेना में रद्दी हथियारों की सप्लाई आदि के बारे में बताया जाए तो आप इसके लिए निश्चित ही अपनी सरकार से नाराज हो जाएंगे. फिल्म के अंत में ईवीएम के दुरुपयोग और सोच समझकर वोट देने की नसीहत भी मिल जाए तो आप क्या करेंगे? फिल्म में बीजेपी शासित राज्य उत्तर प्रदेश में घटित एक घटना को हूबहू नाम बदलकर दिखाया गया. पर खलनायक राज्य सरकार को बना दिया गया. जिस डॉक्टर कफील को सरकार ने दोषी मानकर जेल भेज दिया था उसे फिल्म की कहानी में निर्दोष बताते हुए हीरो बना दिया गया.(फिल्म की कहानी में किरदारों के नाम बदले हुए हैं) . जाहिर है कि जो लोग बीजेपी समर्थकों को यह लग रहा है कि सरकार ने यह नाइंसाफी की है.
फिल्म का मुख्य किरदार क्लाइमेक्स में आकर ईवीएम की कमियां बताते हुए सोच समझकर वोट देने की अपील करता है . इसमें कोई दो राय नहीं सकती कि बीजेपी की 2024 के लोकसभा चुनावों में जो सीटें कम हुईं उसमें इस फिल्म की भी कुछ भूमिका रही हो. निश्चित रूप से अपने पसंदीदा कलाकार के आह्वान पर लाखों लोगों ने सत्ता के खिल विपक्ष को वोट देंगे. तो क्या ये बीजेपी सरकार को नहीं दिख रहा था कि शाहरुख खान अभिनीति जवान एक एजेंडा धारी फिल्म थी. जिसका एजेंडा वर्तमान सरकार को बदनाम कर विपक्ष के समर्थन में देश की जनता का मोबलाइजेशन करना था. उसमें वो काफी हद तक सफल भी रही.
पर शाहरुख होशियार निकले उन्होंने जब समझ लिया कि मोदी सरकार भी सत्ता में आ गई, उन्होंने खुद ही सरेंडर कर दिया.
2-क्या सरकार खुद को लिबरल दिखाना चाहती है
ये सभी जानते हैं कि फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार हमेशा से सरकार समर्थकों को ही मिलता रहा है. शाहरुख की छवि मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में विरोधी की रही है. पर तीसरे कार्यकाल की शुरूआत से ही शाहरुख ने कई मौकों पर सरकार का समर्थन किया है. यह अवॉर्ड ऐसा लगता है जैसे मोदी सरकार और शाहरुख खान दोनों ने एक व्यावहारिक मध्य मार्ग को अपना लिया है. शायद यह एक मेल-मिलाप का इशारा है, जिसे मोदी सरकार ने अपने अंदाज़ में स्वीकार कर लिया है. इंस्टाग्राम पर प्लास्टर लगे हाथ के साथ शाहरुख खान की पोस्ट है कि जूरी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, एटली सर, मेरी टीम, मेरे परिवार और भारत सरकार व मेरे फैन्स का धन्यवाद. बीजेपी समर्थक अपनी झेंप मिटाने के लिए कहते हैं कि यह सम्मान बंटा हुआ है क्योंकि यह विक्रांत मैसी के साथ साझा हुआ है. जिन्हें 12th फेल में शानदार परफॉर्मेंस के लिए अवॉर्ड मिला है. पर सच्चाई यह भी है कि जूरी चाहती तो शाहरुख खान को नज़रअंदाज़ कर सकती थी.पर ऐसा नहीं हुआ क्योंकि सरकार शायद अपनी छवि बदलने की कोशिश कर रही है.
3-शाहरुख को ही देना था पठान के लिए भी दे सकते थे
एक बात यह भी हो रही है कि शाहरुख खान को ही देना था तो 2023 में ही बनी फिल्म पठान (2023) के लिए भी यह पुरस्कार दिया जा सकता था. बल्कि पठान कई मायने में जवान से बेहतर भी थी. जहां तक शाहरूख की एक्टिंग की बात है दोनों ही फिल्मों में उन्होंने अपनी भूमिका एक ही जैसी निभाई थी.पठान में शाहरुख ने एक रॉ एजेंट की भूमिका निभाई, जो देशभक्ति, एक्शन और व्यक्तिगत बलिदान की कहानी थी. एक राष्ट्रवादी सरकार के लिए एक राष्ट्रवादी फिल्म को पुरस्कार देना उसकी इमेज के हिसाब से बेहतर भी था.
दूसरी ओर, जवान में शाहरुख ने डबल रोल (विक्रम राठौर और आज़ाद) की भूमिका को निभाया. जिसमें भ्रष्टाचार, किसानों की बदहाली और सरकारी जवाबदेही जैसे मुद्दों को उठाया गया.
देश की जनता जानती है कि सरकार के खिलाफ किसानों ने एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया था. क्या शाहरुख खान की यह फिल्म उन किसानों के प्रति नैतिक समर्थन का प्रतीक था? जूरी ने पठान के मुकाबले जवान के शाहरुख को पसंद किसानों पर अन्याय की वैधता पर मुहल लगा दिया. जाहिर है कि सरकार अवॉर्ड देकर हो सकता है कि अपनी झेंप मिटा रही हो.
4-केरला स्टोरी को मिले पुरस्कार को बैलेंस किया गया जवान से?
राष्ट्रीय पुरस्कारों में जवान में अच्छे अभिनय के लिए जहां शाहरुख खान को सर्वेश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला वहीं द केरला स्टोरी (2023) को 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (2025) में सम्मानित किया गया है. कहा जा रहा है कि इन पुरस्कारों को वैचारिक रूप से संतुलित करने की कोशिश की गई. वरिष्ठ पत्रकार अनिल पांडेय कहते हैं कि शाहरुख खा को पुरस्कार देकर सरकार ने ये साबित कर दिया है कि कांग्रेसी सरकारों की तरह यह सरकार पुरस्कारों में भेदभाव नहीं करती है. जवान में जिस तरह मोदी सरकार को घेरा था उस तरह की फिल्म कांग्रेस सरकार बनती तो बैन हो जाती या तमाम सेंसर होने के बाद रिलीज हो पाती. पांडेय कहते हैं कि सरकार ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं कि उसकी नजर में सभी लोग बराबर हैं. सरकार की आलोचना करने वालों को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता.
द केरला स्टोरी को सर्वश्रेष्ठ निर्देशन और छायांकन के लिए पुरस्कार मिला है. सुदीप्तो सेन के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और प्राशांतनु महापात्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ छायांकन का पुरस्कार मिला है. दोनों फिल्मों की विषयवस्तु और वैचारिक ध्रुवीकरण ने इस धारणा को बल मिलता है कि मोदी सरकार पुरस्कारों के चयन में एक बैलेंस पॉलिसी पर काम कर रही है.
जवान को कुछ लोग केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार की सांकेतिक आलोचना करती है वहीं द केरला स्टोरी ने जबरन धर्मांतरण और आतंकवाद जैसे संवेदनशील विषयों को उजागर किया है. जाहिर है कि अगर शाहरुख खान को पुरस्कार नहीं मिलता तो आज देश के लिबरल इस बात हल्ला मचाते कि केरला स्टोरी जैसी इस्लामोफोबिक और भाजपा समर्थक फिल्म को पुरस्कार क्यों मिला. केरल के मंत्री साजी चेरियन और कांग्रेस-सीपीआई(एम) नेताओं ने इसके पुरस्कार को राजनीतिक चाल करार दिया, जबकि जवान के पुरस्कार को कुछ राष्ट्रवादियों ने शाहरुख की राष्ट्र-विरोधी छवि से जोड़ा.
इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि राष्ट्रीय पुरस्कार जूरी, जिसका नेतृत्व अशुतोष गोवारीकर ने किया, ने जवान में शाहरुख के डबल रोल की गहराई और द केरल स्टोरी के साहसिक निर्देशन को सराहा. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि दोनों फिल्मों को पुरस्कृत करके जूरी ने वैचारिक ध्रुवीकरण को संतुलित करने की कोशिश की, ताकि न तो वामपंथी-उदारवादी खेमा और न ही दक्षिणपंथी समूह पूरी तरह असंतुष्ट हो. हालांकि, पुरस्कारों का चयन मुख्य रूप से कलात्मक और तकनीकी उत्कृष्टता पर आधारित होता है पर भारत में राष्ट्रीय पुरस्कार सरकारे अपने विचारों को प्रमोट करने वाले लोगों को देती रही है.