उत्तर प्रदेश में फाइनली सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो गया है. समाजवादी पार्टी कुल 17 सीटें देने को तैयार हो गई है. इन 17 सीटों में हालांकि करीब 10 सीटें हारने वाली ही हैं. पर इन सीटों पर समाजवादी पार्टी या कांग्रेस किसी के भी कैंडिडेट जीतने की स्थिति में नहीं होते. हालांकि अन्य जिन सीटों को कांग्रेस ने हासिल करने में सफलता पाईं हैं उससे कांग्रेस का ग्राफ समाजवादी पार्टी के मुकाबले बेहतर होता दिख रहा है. अगर राम मंदिर के चलते बीजेपी के पक्ष में हवा चलती है तो यह कहना गलत नहीं होगा कि एक बार फिर यूपी में गठबंधन करके समाजवादी पार्टी पछता रही होगी. आइये देखते हैं कि इस गठबंधन से किसे फायदा होता नजर आर रहा है.
1- कांग्रेस 21 सीट चाहती थी 17 हासिल कर ली, मतलब ज्यादा ही पा लिया
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच लगातार बातचीत होने के बाद भी गठबंधन का मामला फाइनल नहीं हो रहा था.कारण यही था कि कांग्रेस कम से कम 21 सीटें चाहती थी. समाजवादी पार्टी 10 से ज्यादा देने को तैयार नहीं थी. फाइनली समाजवादी पार्टी अगर 17 सीटें देने को तैयार हो गई तो इसका सीधा अर्थ है कि कांग्रेस ने जो चाहा उसे हासिल कर लिया. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह कहते हैं कि यूपी में कांग्रेस की जमीन बेहद कमजोर थी इसके बावजूद अगर 17 सीट समाजवादी पार्टी देने को तैयार हो गई तो यह बड़ी बात है. सिंह कहते हैं कि समाजवादी पार्टी को इस गठबंधन से कोई फायदा नहीं होने वाला है. कांग्रेस सारे फायदे बटोर ले जाएगी. सपा ने कांग्रेस को 17 सीटें दी हैं. इसमे रायबरेली, अमेठी, कानपुर, फतेहपुर सीकरी, बांसगांव, सहारनपुर, प्रयागराज, महाराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी और देवरिया हैं. हो सकता है कि बुलंदशहर या मथुरा में से एक सीट कांग्रेस लौटा दे और उसके बदले में श्रावस्ती ले लेगी. अखिलेश यादव ने इस पर लगभग सहमति दे दी है.
2-समाजवादी पार्टी से गठबंधन में महत्वहीन भूमिका नहीं चाहती थी कांग्रेस
कांग्रेस 17 सीटे लेकर ही गठबंधन के लिए तैयार हो कर यह संदेश दे दिया है कि गठबंधन में उनकी स्थिति कमजोर पार्टनर वाली नहीं है. अगर 10 सीटों से कम पर समझौता होता तो कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर होती. शायद यही कारण है कि समझौते को लेकर जो प्रेस कान्फ्रेंस हुई है उसमें कांग्रेस की तरफ से अविनाश पांडे और अजय राय शामिल थे तो समाजवादी पार्टी की ओर से नरेश उत्तम और राजेंद्र चौधरी पहुंचे थे. साथ ही प्रेस कांफ्रेंस का स्थल 'न मेरा आफिस, न तुम्हारा आफिस' उसके लिए राणा प्रताप मार्ग स्थित एक होटल को चुना गया था. मतलब साफ है कि कांग्रेस यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वह समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में अपने से बड़ी पार्टी नहीं मानती है.
3-समाजवादी पार्टी के मुकाबले जिताऊ सीटें अब कम नहीं हैं कांग्रेस के पास
अगर कुल जिताऊ सीटों का कैलकुलेशन करें तो अब कांग्रेस के पास जिताऊ सीटों की संख्या कम नहीं है. हो सकता है कि बीएसपी की तरह से गठबंधन का सारा फायदा कांग्रेस को मिल जाए. 2019 में यूपी में बीएसपी और एसपी के बीच गठबंधन हो गया दोनों ने करीब-करीब बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा पर बीएसपी को 10 सीटें मिलीं जबकि समाजवादी पार्टी केवल 5 सीट हासिल करने में सफल हो सकी. हो सकता है कि इस बार भी इतिहास दोहराया जाए. अखिलेश की उदारता का फायदा जिस तरह 2019 के चुनावों में बीएसपी ने उठाया था उसी तरह इस बार कांग्रेस उठा सकती है. कागज पर आंकड़ों को गौर से देखें तो कांग्रेस के पास रायबरेली, अमेठी, सहारनपुर, कानपुर, अमरोहा जैसी 5 सीटें ऐसी होंगी जहां से उनकी जीत संभव हो सकती है. 2014 और 2019 में समाजवादी पार्टी 5-5 सीट ही जीत सकी थी. इस बार भी हालात कुछ बेहतर नहीं हैं. इस तरह बहुत संभावना है कि दोनों ही पार्टियों की सीट बराबर हो जाएं. यूपी में वैसे ही राम मंदिर की लहर चल रही है. इस आंधी में अगर समाजवादी का सहारा पाकर कांग्रेस ऊपर की पांच सीटें जीतकर समाजवादी पार्टी से बराबरी कर लेती है तो यह कांग्रेस के लिए एक बड़ी उपलब्धि ही होगा.
4-गठबंधन से किसको फायदा
यूपी में मुसलमानों का वोट समाजवादी पार्टी को मिलता रहा है. जाहिर है कि इस बार भी समाजवादी पार्टी को मुसलमान वोट करता. पर अगर एक बार कांग्रेस को वोटिंग हो गई और मुस्लिम वोटों की बदौलत कांग्रेस समाजवादी पार्टी के बराबर सीटें जीत लेती है तो उत्तर प्रदेश का वोटिंग पैटर्न बदल जाएगा. कांग्रेस के यूपी में जिंदा होने का सबसे बड़ा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा. समाजवादी पार्टी का मुस्लिम वोट बैंक छिटक कर कांग्रेस के पास हमेशा के लिए जा सकता है.
जहां तक वोट ट्रांसफर होने वाली बात है उसमें भी फायदा कांग्रेस को ही होने वाला है. समाजवादी पार्टी के पास तो वोट बैंक है पर कांग्रेस के पास मुस्लिम वोटों के सिवा यूपी में कोई वोट बैंक नहीं है. मुस्लिम वोट पहले भी समाजवादी पार्टी को वोट देता रहा है. कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के पिछड़े विशेषकर यादव वोटों का जमकर फायदा होने वाला है.
2017 में समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस को गठबंधन में 105 सीटें दी थीं, लेकिन कांग्रेस महज 7 सीटें जीत पाई थी. दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है . शायद यही कारण है कि अखिलेश कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बहुत इच्छुक नहीं दिख रहे थे.
5-कांग्रेस को दी गई सीटों में से कई पर समाजवादी पार्टी ज्यादा मजबूत
जिन 17 सीटों को समाजवादी पार्टी कांग्रेस को दे रही है उनमें से कई ऐसी सीटें हैं जहां आंकड़ों का गणित समाजवादी पार्टी के साथ है. यहां तक कि रायबरेली और अमेठी में भी बीजेपी की मुख्य कंटेंडर समाजवादी पार्टी हो चुकी है. पिछले विधानसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि रायबरेली और अमेठी से कांग्रेस साफ हो चुकी है. 2022 के विधानसभा चुनावों में रायबरेली में 4 सीटें समाजवादी पार्टी की हैं जबकि एक बीजेपी की हैं. उसी तरह अमेठी में 3 सीट बीजेपी की है तो 2 सीट समाजवादी पार्टी ने जीती है. इसी तरह प्रयागराज , बाराबंकी आदि में समाजवादी पार्टी दूसरे स्थान पर थी फिर भी गठबंधन में ये सीटें कांग्रेस को मिल रही हैं. कई ऐसी सीटें भी हैं जहां पिछले चुनावों में बीएसपी दूसरे नंबर पर है उन सीटों पर भी कांग्रेस के बजाय समाजवादी पार्टी अगर चुनाव लड़ती तो बेहतर पोजिशन में होती.