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बीएमसी चुनावों में ठाकरे विरासत ही नहीं, कई दलों का भविष्‍य है दांव पर

बीएमसी चुनावों में महाराष्ट्र के कई नेताओं और पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. कुछ के लिए तो यह प्रतिष्ठा नहीं बल्कि जीवन-मरण का सवाल है. यानि की बीएमसी चुनावों के बाद महाराष्ट्र की राजनीति नई करवट लेने वाली है.

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BMC और महाराष्ट्र के अन्य नगर निगमों के चुनाव 15 जनवरी को होंगे (Photo: ITG)
BMC और महाराष्ट्र के अन्य नगर निगमों के चुनाव 15 जनवरी को होंगे (Photo: ITG)

बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव 2026 की घोषणा हो चुकी है. चार साल की डिले के बाद हो रहे इस बार के बीएमसी की कहानी महाराष्ट्र की राजनीति की एक रोमांचक और जटिल गाथा बनने वाली है. जहां सत्ता, विरासत, विश्वासघात और पुनरुत्थान के तत्व आपस में गुंथे हुए हैं. 15 दिसंबर 2025 को महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने घोषणा की कि 15 जनवरी 2026 को 29 नगर निगमों के चुनाव होंगे, जिसमें बीएमसी भी शामिल है.

यह चुनाव चार साल की देरी के बाद हो रहे हैं, और इनमें 2,869 सीटें दांव पर हैं, जिनमें 3.48 करोड़ मतदाता भाग लेंगे. बीएमसी, जिसे एशिया की सबसे धनी नगर निगम कहा जाता है और जिसका बजट 74,427 करोड़ रुपये के करीब है. यहां राजनीतिक दांव इतना ऊंचा है कि यह न केवल मुंबई की सत्ता तय करेगा, बल्कि महाराष्ट्र और राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है.

1- ठाकरे की विरासत की परीक्षा

 बीएमसी, जो शिवसेना के लिए मां की तरह रही है, अब देखना है कि अपने बेटे के लिए कितना प्यार बरसाती है. इन चुनावों में स्पष्ट हो जाएगा कि मुंबई की जनता में ठाकरे परिवार के प्रति कितना प्रेम रह गया है. बीएमसी चुनाव में मुख्य रूप से महायुति (बीजेपी + शिंदे शिवसेना + अजित पवार एनसीपी) बनाम एमवीए (उद्धव शिवसेना + शरद पवार एनसीपी + कांग्रेस) आमने-सामने हैं. लेकिन कांग्रेस के अकेले लड़ने के संकेतों ने बीएमसी के चुनावों को और जटिल बना दिया है. क्योंकि माना जा रहा है कि राज ठाकरे भी एमवीए में आ सकते हैं. 

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संजय राउत ने चुनावों की तारीख का ऐलान होने के बाद मंगलवार को कहा है कि अगले हफ्ते उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की युति का औपचारिक ऐलान किया जाएगा. दोनों भाइयों के एक साथ आने से जनता के सामने ठाकरे परिवार की विरासत 

बीएमसी चुनावों की राजनीतिक कहानी को समझने के लिए हमें 1960 के दशक में जाना होगा, जब बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की. मुंबई में मराठी मानूस की आवाज उठाकर शिवसेना ने 1995 से बीएमसी पर कब्जा जमाया.

बीएमसी चुनाव ठाकरे परिवार की राजनीतिक लीगेसी का सबसे बड़ा दांव हैं. बाल ठाकरे ने मुंबई को शिवसेना का गढ़ बनाया, और बीएमसी उनकी राजनीतिक प्रयोगशाला थी. 

 2017 के चुनावों में अविभाजित शिवसेना ने 84 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी को 82 मिलीं. लेकिन ये चुनाव गठबंधन टूटने का बीज बो गए, क्योंकि शिवसेना और बीजेपी ने अलग-अलग लड़े और बाद में साथ आए.

2019 में उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाई, जो बीजेपी के लिए विश्वासघात था. 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत ने कहानी को नया मोड़ दिया. शिंदे ने दावा किया कि उद्धव ने हिंदुत्व छोड़ दिया, और उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना का सिंबल दिया, जो उद्धव के लिए बड़ा झटका था. अब बीएमसी चुनाव इस विभाजन की पहली बड़ी परीक्षा है. जहां असली शिवसेना कौन है, यह तय होगा. 

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उद्धव ठाकरे के लिए यह चुनाव सरवाइवल का सवाल है—अगर वे जीते, तो "असली शिवसेना" का दावा मजबूत होगा; हारे, तो पार्टी का अंत निकट लगेगा .

ठाकरे परिवार से ही बाहर निकलकर राज ठाकरे ने एमएनएस बनाई थी. आज उनकी पूरी राजनीति हीं दांव पर है. अगर अपने भाई उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर भी वो बीएमसी चुनावों में कुछ करिष्मा नहीं दिखा पाते हैं. 2009 में एमएनएस ने 28 सीटें जीतीं, लेकिन बाद में गिरावट आई. अब राज ठाकरे उद्धव से गठबंधन की चर्चा में हैं, जो ठाकरे परिवार की एकजुटता का प्रतीक हो सकता है. 

2-एकनाथ शिंदे के राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई

2022 में शिवसेना के टूटने के बाद एकनाथ शिंदे असली शिवसेना के सर्वेसर्वा बन चुके हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में एकनाथ शिंदे की पार्टी ने शिवसेना यूबीटी से बेहतर परफार्म करके यह साबित कर दिया था कि वे शिवसेना के असली उत्तराधिकारी हैं. पर जिस तरह बीएमसी चुनावों में ठाकरे बंधु साथ आ रहे हैं उससे लड़ाई टफ हो गई है. अगर एकनाथ शिंदे बीएमसी चुनावों में अपना कमाल नहीं दिखा पाते हैं तो जाहिर है कि शिवसेना की लीगेसी उनके हाथ से फिसल सकती है. 
 एकनाथ शिंदे खुलकर बाला साहब ठाकरे के हिंदूवादी नीतियों पर काम कर रहे हैं. वे अपने द्वारा महायुति सरकार के मुंबई के विकास के लिए किए कामों को गिनाते हैं. अगर शिंदे बीएमसी चुनावों में अपनी स्ट्राइक रेट लोकसभा और विधानसभा चुनावों वाली ही रखते हैं तो जाहिर है कि वे बाल ठाकरे के असली वारिस साबित होंगे. 

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3-महायुति की महत्वाकांक्षा, बीजेपी का विस्तार

बीजेपी के लिए बीएमसी चुनाव महाराष्ट्र में डोमिनेंस का दांव है. 2017 में भारतीय जनता पार्टी शिवसेना के करीब पहुंची, लेकिन अब महायुति के साथ पार्टी चाहेगी को बीएमसी को अपने पूर्ण नियंत्रण में कर ले.
 2024 विधानसभा चुनावों में महायुति की जीत ने उन्हें आत्मविश्वास दिया है. बीजेपी मुंबई को ट्रिपल इंजन सरकार का हिस्सा बनाना चाहेगी. जाहिर है कि केंद्र, राज्य और नगर निगम उनके नियंत्रण में होंगे तो बहुत कार्यों को अंजाम तक पहुंचाने में आसानी होगी.  दूसरे अगर बीजेपी हारती है तो यह साफ हो जाएगा कि पार्टी का का शहरी वोट बैंक दरक रहा है.उत्तर भारतीय, गुजराती और हिंदुत्व समर्थक बीजेपी के लिए बीएमसी पर अधिकार करने के सारथी बन सकते हैं. 

4-कांग्रेस अकेले चुनाव लड़कर खुद को साबित करेगी

कांग्रेस के लिए बीएमसी चुनाव रिवाइवल का मौका है. पार्टी जिस हौसले के साथ अकेले चुनाव लड़ने का मन बनाया है वो हैरान करने वाला नहीं है. महाराष्ट्र में कांग्रेस के कोर वोटर्स अभी भी बड़े पैमाने पर है. बीएमसी चुनावों में कांग्रेस को यह भी पता चलेगा कि मुंबई के मुसलमान कांग्रेस के साथ जाते हैं या शिवसेना यूबीटी का हाथ पकड़ते हैं. कहा जा रहा है कि खुद राहुल गांधी मुंबई में कैंपेन करेंगे, जो पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए उत्साहित करने की बात है. कांग्रेस अकेले लड़ने की सोच रही है, पर एमवीए नेताओं से अभी भी बातचीत जारी है.

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कांग्रेस राज्य में सिविक गवर्नेंस फेल्योर, इंफ्रास्ट्रक्चर क्रंच और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों  पर फोकस कर रही है. अगर कांग्रेस मुंबई में अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह महाराष्ट्र में उनके बेस मजबूत करेगा और भविष्य के नींव तैयार करेगा. 

5-मुसलमान कहां जाएंगे?

शिवसेना (UBT) आज की राजनीति में मुंबई वो सब कर रही है जो उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस मुसलमानों के ध्यान में रखकर करती रही है. जिस तरह शिवसेना ने तमिलनाडु के एक मंदिर के मुद्दे पर जज पर महाभियोग की मांग में शामिल हुई उससे बाल ठाकरे के समर्थक उनसे दूरी बना सकते हैं. पर आज की तारीख में उद्धव मुसलमानों के साथ हर कदम पर ताल मिला रहे हैं.जाहिर है कि मुसलमानों की हमदर्दी उन्हें मिल रही है. पर मुसलमानों के लिए धर्मसंकट तब खड़ा होगा जब कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) आमने-सामने होंगे.

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