अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2022 की शॉर्टलिस्ट में गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' का डेजी रॉकवेल द्वारा किया अनुवाद 'Tomb of Sand' भी शामिल है. क्यों न इस उपलब्धि को भारतीय साहित्य के एक बेहतर अवसर के रूप में बदल दिया जाये.
एकाएक दरवाज़े पर दस्तक हुई तो वह सिहर उठी. उसकी आंखों में खौफ़ उभरा. उसने पहले शौहर की बन्द आंखों, फिर उन दस खुली आंखों की तरफ़ देखा जो गुलाबी डोरों के बीच भयभीत हिरनियों की सवालिया नज़रें थीं.
संजीव बख्शी का प्रशासनिक जीवन उनके साहित्यिक जीवन से गुंथा हुआ है. अपने संस्मरणों में वे दोनों को साथ-साथ साधते हैं. 'केशव, कहि न जाइ का कहिये' में भी उन्होंने यही दर्ज किया है.
जाने-माने शायर फ़रहत अहसास के संपादन में एक चयन आया है 'कहने में जो छूट गया' नाम से, जिसमें समकालीन उर्दू शायरी के पांच अहम शायरों मनीष शुक्ल, मदन मोहन दानिश, शारिक कैफ़ी, खुशवीर सिंह 'शाद' व फ़रहत एहसास की ग़ज़लें शामिल हैं.
भारतीय राजनीति को अटल बिहारी वाजपेयी ने लंबे अरसे तक अपनी प्रभावी उपस्थिति से सराबोर रखा. यह यों ही नहीं है कि उनके धुर विरोधी भी उन्हें एक 'बुरी पार्टी में अच्छा आदमी' करार देते थे... शायद इसीलिए जानीमानी पत्रकार, स्तंभकार और लेखक सागरिका घोष ने अंग्रेजी में 'ATAL BIHARI VAJPAYEE' नाम से एक पुस्तक लिखी, जो जगरनॉट से प्रकाशित हुई है.
प्रबोध कुमार मुंशी प्रेमचंद के दौहित्र थे. उनका नाम अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के मानव विज्ञानियों में लिया जाता है. जहां तक साहित्यिक रचनाधर्मिता का प्रश्न है, उनकी अनेक रचनाएं कहानियां, आलोचना, कल्पना, कहानी, कृति और वसुधा आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं.
महाभारत कथा के जिन पात्रों में आज भी लोगों की जिज्ञासा है, घटोत्कच उनमें प्रमुख है. साहित्य आजतक पर पढ़िए एक्शन और एडवेंचर से भरपूर, रेखाचित्रों से सजे नमिता गोखले के पूर्ण मनोरंजक उपन्यास 'घटोत्कच के मायाजाल में' का एक अंशः
नेताजी की 125वीं जयंती पर जानिए कि महात्मा गांधी और नेताजी के आपसी रिश्ते क्या थे, कि वैचारिक पथ अलग होने के बावजूद सुभाष बाबू ने उन्हें राष्ट्रपिता कहा. लेखक राज खन्ना की पुस्तक 'आजादी से पहले, आजादी के बाद' का अंश
इधर कुछ सालों से पाठक कहानी व उपन्यास से कथेतर विधाओें की ओर मुड़े हैं. वे संस्मरणों, आत्मकथाओं व जीवनियों में दिलचस्पी रखते हैं. सेलीब्रिटीज के जीवन में क्या कुछ हो रहा है, यह जानने की जिज्ञासा भला किसे नहीं होती. इसलिए प्रोफाइल लेखन का रास्ता प्रशस्त हुआ है. कथा और कथेतर विधाओं में साल 2021 में क्या कुछ लिखा गया, इसका जायज़ा ले रहे हैं हिंदी के सुधी कवि समालोचक डॉ ओम निश्चल
साहित्य तक की टॉप 10 पुस्तकों की कड़ी में जो काव्य संकलन दर्ज हुए वे हैं...
साल का आखिरी दिन है और बुक कैफे की टॉप 10 पुस्तकों की इस कड़ी में आज लोकप्रिय उपन्यासों की चर्चा हुई है.
गांव की माटी में पनपते सहज संबंध हों या उठऊआ विवाह की कोशिश, प्रवासी धरती का अपराध हो या देवी-देवताओं से भरे किस्से. ये कथा संकलन हैं खास
साहित्य तक पर बुक कैफे की टॉप 10 पुस्तकों की कड़ी में जिन पुस्तकों को जगह मिली
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के तहत पुस्तकों की चर्चा की एक कड़ी इसी साल जनवरी में शुरू हुई थी. अनूदित पुस्तकों की सूची में इन टॉप 10 पुस्तकों ने जगह बनाई.
प्रकाशकों ने कोरोना, जीएसटी और प्रसार संबंधी मुश्किलों और मौजूदा संकट को देखते हुए वही पुस्तकें पुन: छापी हैं जिनकी मांग आज भी है या जिनके पुनर्मुद्रित संस्करण के निकल जाने की आशा है. हिंदी के बाजार पर साहित्य आजतक की एक नजर
कविता के पाठक अन्य विधाओं से बहुत कम होते हैं फिर भी यह विधा सारी विधाओं पर हमेशा भारी रहती है. 2021 में कोरोना के संकट के कारण छपाई प्रकाशन इत्यादि के काम में एक तरह की मंदी जरूर छायी रही फिर भी साल के मध्य और आखिर तक सैकड़ों कविता संग्रह बाजार में आ चुके हैं.
बांग्लादेश लिबरेशन वार को इस साल 50 वर्ष हो चुके हैं. भारत के विभाजन के बाद दक्षिण एशिया की यह दूसरी सबसे बड़ी घटना है. और इस घटना का विस्तार और बारिकियों के साथ एक महत्वपूर्ण किताब अब लोगों के लिए उपलब्ध है.
राकेश कायस्थ 'आरामगंज' के बहाने 'रामभक्त रंगबाज' में आज के दौर के क्रूर माहौल, मासूम आस्था और शातिर सियासत पर सवाल खड़े करते हैं.
किताब में लेखक खुद को अपने भीतर ही तलाशने, आत्मा को देह के भाव से अलग देखने और चेतन और अचेतन मन की सोच और काम करने के तरीके में अंतर पर बात करते हुए जीवन के सही उद्देश्य पर बात करते हैं.
कुछ किताबें अपने आपमें ऐतिहासिक होती हैं. किसी दस्तावेज सरीखी. ऐसी कि हमारे वर्तमान का चेहरा इतना साफ दिखता है कि हम और हमारा समाज बेनकाब हो जाते हैं. पत्रकार और शोधार्थी शिरीष खरे की किताब 'एक देश बारह दुनिया- हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर' ऐसी ही है.