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समीक्षा

आशुतोष अग्निहोत्री के कविता संग्रह 'मैं बूँद स्वयं, खुद सागर हूँ' का लोकार्पण समारोह

जब हिंदी के गौरवगान में बदल गया कविता संग्रह 'मैं बूँद स्वयं, खुद सागर हूँ' का लोकार्पण समारोह

22 जून 2025

आखिर क्या वजह थी कि आईएएस कवि-लेखक आशुतोष अग्निहोत्री के कविता संग्रह 'मैं बूँद स्वयं, खुद सागर हूँ' का लोकार्पण समारोह लोकार्पित कृति, उसकी विषय-वस्तु और गुणवत्ता की जगह गृह मंत्री द्वारा भारतीय भाषाओं के गौरव-बोध से जुड़े वक्तव्य पर केंद्रित हो गया? एक विवेचन

यतीन्द्र मिश्र और उनका कविता-संग्रह 'बिना कलिंग विजय के'

युद्ध और हत्या का सांस्कृतिक विकल्प: बिना कलिंग विजय के

11 जून 2025

कलिंग विजय एक भयानक ऐतिहासिक स्मृति है - क्रूरता की पराकाष्ठा, वीभत्सता की अति और विजेता के मन में उपजा अवसाद इस युद्ध का सत्त है. कवि, कलाविद यतीन्द्र मिश्र के 12 साल बाद आए कविता-संग्रह 'बिना कलिंग विजय के' का यही प्रस्थान बिंदु यही है. इस चर्चित संग्रह पर नाटककार, कवि, विनय कुमार की राय

Book Review

ध्यान-साधना और एकांत... अध्यात्म की खोज में निकले एक संन्यासी की यात्रा है 'हिमालय में 13 महीने'

02 अप्रैल 2025

किताब की शुरुआत अध्यात्म की खोज यात्रा से शुरू होती है और ईश्वरीय तत्व की पहचान तक पहुंचती है. पाठकों हिमालय की रहस्यमय ऊंचाई, वादियों और घाटियों की रोचक गहराई से होते हुए जब लेखक के आत्म साक्षात्कार की तरफ बढ़ते हैं तो इस दौरान वह खुद से भी साक्षात्कार की मनोदशा में पहुंच जाते हैं.

woh islam jo humse kahin choot gaya

Book Review: 'वो इस्लाम जो हमसे कहीं छूट गया' और फिरकों में बंटी इंसानियत डूब गई गफलत में

22 जनवरी 2025

ऐसा क्या और क्‍यों है कि पवित्र कुरआन जैसी किताब और दुनिया के सबसे बड़े मजहबों में से एक इस्लाम के बारे में इक्‍कीसवीं सदी में भी तरह-तरह के सवाल और शंकाएं कायम हैं? 'वो इस्लाम जो हम से कहीं छूट गया' किताब के जरिये इस्लाम से जुड़े तमाम बिंदुओं को संदर्भों के साथ समझाने की कोशिश की है रिटायर्ड जज रज़ी अहम चिश्ती ने. वे बलिया (यूपी) की हजरत सूफी मुहिउद्दीन चिश्ती पशुहारी शरीफ दरगाह के गद्दीनशीन भी हैं.

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