scorecardresearch
 

साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10 उपन्यास: 2025 रहा सियासत, प्रेम और पर्यावरण के नाम

'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' के वर्ष 2025 की 'उपन्यास' सूची में जो कृतियां शामिल हैं, वह जीवन की विद्रुपताओं के बीच भी उम्मीद के विविध रंगों से सराबोर हैं. इनमें सियासतबाजों पर तीक्ष्ण कटाक्ष है, तो पर्यावरण और प्रकृति को बचाने का भाव भी. किसानों के जीवन संघर्ष के साथ मातृसत्तात्मक संस्थाओं की करुणा है, तो अतीत का गौरवगान भी. खास बात यह है कि इस सूची में कथा-साहित्य के दिग्गज नाम अपवादस्वरूप ही शामिल हैं.

Advertisement
X

'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' के वर्ष 2025 की 'उपन्यास' सूची में जो कृतियां शामिल हैं, वह जीवन की विद्रुपताओं के बीच भी उम्मीद के विविध रंगों से सराबोर हैं. इनमें सियासतबाजों पर तीक्ष्ण कटाक्ष है, तो पर्यावरण और प्रकृति को बचाने का भाव भी. किसानों के जीवन संघर्ष के साथ मातृसत्तात्मक संस्थाओं की करुणा है, तो अतीत का गौरवगान भी. खास बात यह है कि इस सूची में कथा-साहित्य के दिग्गज नाम अपवादस्वरूप ही शामिल हैं. ऐसे समय में जब वर्ष 2026 दस्तक दे रहा है और आप साहित्य तक के दस उम्दा उपन्यासों की  सूची पढ़ें, उससे पहले कुछ बातें आपसे...
***
पुस्तकें आपको बताती हैं, जताती हैं, रुलाती हैं. वे भीड़ में तो आपके संग होती ही हैं, आपके अकेलेपन की भी साथी होती हैं. शब्द की दुनिया समृद्ध रहे, आबाद हो, फूले-फले और उम्दा पुस्तकों के संग आप भी हंसें-खिलखिलाएं, इसके लिए इंडिया टुडे समूह ने अपने डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' पर वर्ष 2021 में पुस्तक-चर्चा कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की थी... आरंभ में सप्ताह में एक साथ पांच पुस्तकों की चर्चा से शुरू यह कार्यक्रम आज अपने वृहत स्वरूप में सर्वप्रिय है.
भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब 'साहित्य तक' के 'बुक कैफे' में लेखक और पुस्तकों पर आधारित कई कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. इनमें 'एक दिन एक पुस्तक' के तहत हर दिन पुस्तक चर्चा; 'नई पुस्तकें' कार्यक्रम में हमें प्राप्त होने वाली हर पुस्तक की जानकारी; 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में लेखक से उनकी सद्य: प्रकाशित कृतियों पर बातचीत; और 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में किसी वरिष्ठ रचनाकार से उनके जीवनकर्म पर संवाद शामिल है. 
'साहित्य तक' पर हर शाम 4 बजे प्रसारित हो रहे 'बुक कैफे' को प्रकाशकों, रचनाकारों और पाठकों की बेपनाह मुहब्बत मिली है. 'साहित्य तक' ने वर्ष 2021 से 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला शुरू की तो उद्देश्य यह रहा कि उस वर्ष की विधा विशेष की दस सबसे पठनीय पुस्तकों के बारे में आप अवश्य जानें. 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला इसलिए भी अनूठी है कि यह किसी वाद-विवाद से परे सिर्फ संवाद पर विश्वास करती है. इसीलिए हमें साहित्य जगत, प्रकाशन उद्योग और पाठकों का खूब आदर प्राप्त होता रहा है. यहां हम यह भी स्पष्ट कर दें कि यह सूची केवल बेहतरीन पुस्तकों की सूचना देने भर तक सीमित है. यह किसी भी रूप में पुस्तकों की रैंकिंग नहीं है. 
'बुक कैफे' पुस्तकों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता और श्रमसाध्य समर्पण के साथ ही हम पर आपके विश्वास और भरोसे का द्योतक है. बावजूद इसके हम अपनी सीमाओं से भिज्ञ हैं. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक न पहुंची हों, यह भी हो सकता है कुछ श्रेणियों की बेहतरीन पुस्तकों की बहुलता के चलते या समयावधि के चलते चर्चा में शामिल न हो सकी हों... फिर भी हमारा आग्रह है कि इससे हमारे प्रिय दर्शकों, पुस्तक प्रेमी पाठकों के अध्ययन का क्रम अवरुद्ध नहीं होना चाहिए. आप खूब पढ़ें, पढ़ते रहें, पुस्तकें चुनते रहें, यह सूची आपकी पाठ्य रुचि को बढ़ावा दे, आपके पुस्तक संग्रह को समृद्ध करे, यही कोशिश है, यही कामना है. 
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों को समर्थन, सहयोग और अपनापन देने के लिए आप सभी का आभार.
***
साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' वर्ष 2025 के श्रेष्ठ 'उपन्यास' हैं ये-
***
* 'बादशाह सलामत हाज़िर हों...! | बालेन्दु द्विवेदी

- यह रचना ज़िन्दगी और सत्ता- दोनों की चालाकियों को गहराई से दिखाती है. लेखक ज़िन्दगी को एक मदारी की तरह पेश करता है, जो इनसान को तरह-तरह के भ्रम में डालती रहती है. यह केवल किसी एक जुनूनी शासक की कहानी नहीं है. यह हर उस दौर की तस्वीर है जहाँ सत्ता की गलत समझ, घमंड और हिंसा ने इंसानी सभ्यता को नुकसान पहुँचाया. लेखक दिखाता है कि जब सत्ता विवेक से दूर हो जाती है, तो उसका असर पूरे समाज पर पड़ता है. भाषा सरल है, लेकिन असर गहरा है. रूपकों और उदाहरणों के ज़रिये लेखक कठिन बातों को भी आसानी से समझा देता है. लेखन सोचने पर मजबूर करता है और पाठक को खुद से सवाल पूछने के लिए प्रेरित करता है. यह किताब सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि ज़िन्दगी और सत्ता का एक आईना है. यह हमें बताती है कि भ्रम, घमंड और गलत फैसले इंसान को कहां तक ले जा सकते हैं. जो पाठक ज़िन्दगी की सच्चाइयों और इतिहास के सबक़ों को समझना चाहते हैं, उनके लिए यह रचना ज़रूर पढ़ने लायक है.
- प्रकाशक: वाणी प्रकाशन 
***
* खरगांव का चौक | आशा पाण्डेय

- इनसान होने का असली अर्थ जीवन को जीने में है, उसे छोड़ देने में नहीं. ज़िंदगी में सुख-दुःख आते-जाते रहते हैं, ठीक मौसम की तरह. कभी पतझड़ होता है, तो कभी बसंत. ज़रूरत इस बात की है कि हम संयम रखें, हिम्मत न हारें और मेहनत व संघर्ष के साथ आगे बढ़ते रहें. जीवन की सार्थकता कोशिश करते रहने में है. मुश्किल हालात में निराश होना स्वाभाविक है, लेकिन जीवन को खत्म कर देना किसी समस्या का हल नहीं है. जब अन्न उगाने वाला किसान ही टूटने लगे, तो यह पूरे समाज के लिए चिंता की बात बन जाती है. पिछले कुछ वर्षों से किसानों की तकलीफों की खबरें लगातार सामने आती रही हैं, जो मन को व्यथित करती हैं. यह उपन्यास इसी पीड़ा और संघर्ष की कहानी है. यह विदर्भ के किसानों की ज़िंदगी, उनके सपने, उनकी जिजीविषा और बेहतर भविष्य की उम्मीदों को सामने लाता है. उपन्यास में गाँव के सांस्कृतिक जीवन, शादी-ब्याह, त्योहार, रिश्ते, सुख-दुःख को बहुत ही सजीव ढंग से दिखाया है. यह बेचैन भी करता है और सोचने पर मजबूर भी. साथ ही उम्मीद देता है कि सामूहिकता, सहकार और संघर्ष के सहारे जीवन को फिर से संवारने की राह निकाली जा सकती है.
- प्रकाशक: वनिका पब्लिकेशंस
***
* त्रिमाया | मनीषा कुलश्रेष्ठ

- आकाश को पिता और धरा को माँ कहा गया है. यहीं से जीवन का जन्म और विस्तार हुआ है. स्वाभाविक रूप से मनुष्य का लगाव माँ से अधिक होता है, पर इतिहास में पितृसत्ता और मातृसत्ता दोनों की अपनी-अपनी परंपराएँ और प्रभाव रहे हैं. लंबे समय से समाज में पितृसत्ता का कठोर और आक्रामक रूप हावी रहा है। ऐसे में भारतीय मातृवंशीय समाजों पर केंद्रित मनीषा कुलश्रेष्ठ का उपन्यास त्रिमाया एक सुखद और विचारोत्तेजक अनुभव देता है.
यह उपन्यास मातृसत्ता और इकोफेमिनिज़्म की विराट दुनिया को चार अध्यायों- विलक्षण माया, मायाविडु, सुनहरे तारों के पुल: माइया मार्गरीटा और त्रिमाया के माध्यम से खोलता है. कथा की शुरुआत जंगल, हाथियों और उनके मातृसत्तात्मक समाज से होती है, जहाँ प्रकृति, स्वतंत्रता और सामूहिक जीवन की सुंदर झलक मिलती है. आगे कहानी प्रशासनिक प्रशिक्षण, मेघालय के खासी समाज और केरल के नायर समाज की मातृवंशीय परंपराओं तक पहुँचती है. उपन्यास प्रेम, संस्कृति और इतिहास के सहारे यह दिखाता है कि कैसे एक सशक्त मातृसत्ता धीरे-धीरे पितृसत्ता में बदलती चली गई. 
- प्रकाशक: वाणी प्रकाशन 
***
* शेष रहेगा प्रेम | रश्मि कुलश्रेष्ठ

- जीवन में सबसे अधिक सहजता से होता है प्रेम. चुपचाप छू जाता है किसी पछुवा बयार की तरह. इसके होने में ना प्रयासों की जरूरत पड़ती है, ना ही किसी विधि-विधान की. यह जीवन में ऐसे आता है जैसे पड़ोसी के घर का पता पूछने आया अजनबी आपके घर का मेहमान बन जाए और बाद में आपको भी भाने लगे. फिर धीरे-धीरे अपनी परिधि लांघ कर आपके हिस्से में दाखिल हो जाए. जब तक आप कुछ समझें, तब तक यह जीवन भर के लिए किसी मोह में बांध ले आपको. और जब छूटे तो किसी पूरी हो चुकी कहानी की तरह जीवन का अंत हो जाए. इस उपन्यास में प्रेम है, त्याग है, विछोह है, और पुनर्मिलन है. उपन्यास तृष्णा, केशव, मिसेज़ खत्री और सिंह साब के प्रेम को उम्र के अलग-अलग मोड़ों से गुज़रते और जवां होते दिखाता है. इसमें एक और महत्त्वपूर्ण किरदार है स्वयं प्रेम जिसकी जुबानी इन किरदारों की कहानी पाठकों के सामने आती है. शानदार कहानी, चुंबकीय लेखन, जबरदस्त उतार-चढ़ावों से जूझती कहानी, पाठक को अपने साथ जुझाती है, झुंझलाती है और अंत में चेहरे पर एक मंद मुस्कान छोड़ जाती है. कृति 'शिवना नवलेखन पुरस्कार 2024' और 'आजतक साहित्य जागृति सम्मान' से पुरस्कृत है.
- प्रकाशक: शिवना पेपरबैक्स
***
* आर्यावर्त | प्रमोद भार्गव

- जैसे-जैसे इनसान की उम्र बढ़ती है, उसकी ज़िंदगी में तरह-तरह की घटनाएँ होती हैं. कुछ बातें पहले से सोची हुई लगती हैं और कुछ अचानक घट जाती हैं. ऐसे में इनसान अक्सर इन्हें भाग्य, दुर्भाग्य या किस्मत से जोड़ देता है. यह दुनिया हमेशा चलती रहने वाली व्यवस्था में बंधी है, जिसमें एक अद्भुत संतुलन दिखाई देता है. इस संतुलन को कौन चलाता है? यही सवाल हमें ईश्वर की ओर ले जाता है. सजीव और निर्जीव, पूरी सृष्टि पाँच तत्वों से बनी मानी गई है- अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश. जब इन तत्वों का संतुलन बिगड़ता है, तो उसका असर सिर्फ इनसान के स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ता, बल्कि पूरी सृष्टि पर पड़ता है. ऐसा असंतुलन विनाश और प्रलय की स्थिति पैदा कर सकता है, जो मानव सभ्यता और उसके विकास को भी मिटा सकता है. फिर भी, जो लोग बच जाते हैं, वे आगे बढ़ने और जीते रहने की कोशिश करते हैं. जीवन के प्रति यही जिजीविषा भारतीय दर्शन का मूल है. दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में ऐसी कई कथाएं मिलती हैं. यह उपन्यास उन्हीं कथाओं को भावनात्मक, सामाजिक और तथ्यात्मक दृष्टि से सरल भाषा में पाठकों के सामने रखता है.
- प्रकाशक: प्रकाशन संस्थान
***
* बिना मुरादों वाला दिया | रेखा झा

- यह एक लघु-उपन्यास है जिसमें लेखिका ने समस्तीपुर जिले के पूसा में बिताए अपने बचपन के उन दिनों को याद किया है जिन्हें सिर्फ वह ही नहीं बल्कि हम सब अपने बचपन में जीते हैं और फिर जीवन भर उन्हें अपनी यादों में ज़िंदा रखते हैं. छुम-छुम बस में छुम-छुम ड्रेस पहनकर मुन्नी का पूसा जाना, वहां अपनी झुंड-भर मासियों की नन्ही बिल्ली बन जाना, और उनके साथ उस बड़ी दुनिया से परिचित होना जो उसके लिए अभी बिलकुल नई है. उसे बताया जाता है कि 'मजार भी एक तरह का मंदिर ही होता है. जिस तरह मंदिर में भगवान होते हैं, मजार में पीर बाबा होते हैं.' सिर्फ यही नहीं, पूसा में आम और लीची के बाग भी हैं जहां इतने किस्म के आम और इतनी किस्म की लीचियां हैं कि मुन्नी को स्कूल जाना भी नहीं अखरता. और फिर गुल्लू मासी तो हैं ही! एक मीठे बचपन की यह मीठी कहानी एक रौ में अपने-आपको पढ़वा लेती है; जिस माधुर्य और जीवंतता के बारे में यह उपन्यासिका बताती है, वह मिठास और जीवन इसकी अपनी बुनावट का भी हिस्सा है.
- प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन समूह
***
* राममोहन | देवेश वर्मा

- यह उपन्यास राजनीति और समाज से जुड़े कई बुनियादी सवाल उठाता है जैसे- राजनीति असल में क्या है, नेताओं का चरित्र कैसा होता है, स्त्री कल्याण को लेकर उनकी सच्ची सोच क्या है, और क्या जातियों का उत्थान सच में संभव है या यह सिर्फ़ वोट पाने की एक चाल है. इसी संदर्भ में राजनीति को 'काजल की कोठरी' कहा गया है, जहाँ जाकर बेदाग रह पाना मुश्किल हो जाता है. कहानी का नायक आज़ादी के बाद के भारत का एक निडर और महत्वाकांक्षी युवक है. वह अपनी जातिगत सीमाओं को मानने से इनकार करता है और ऐसे सपने देखता है, जो उसके जैसे सामाजिक हालात वाले लोगों के लिए आसान नहीं हैं. रास्ता मुश्किल है, चुनौतियाँ बड़ी हैं, लेकिन उसकी उम्मीद और आगे बढ़ने की ज़िद उसे हार मानने नहीं देती. धीरे-धीरे उसे समझ आता है कि भारत में सम्मान के साथ जीने के लिए राजनीति या अफसरशाही की ताकत बहुत मायने रखती है. आजादी के तुरंत बाद के लगभग पच्चीस वर्षों के कालखण्ड की पृष्ठभूमि पर रचा गया यह उपन्यास प्रान्तीय उत्तर भारत की तत्कालीन राजनीतिक उठापटक और सामाजिक स्थितियों का जीवन्त चित्रण प्रस्तुत करता है.
- प्रकाशक: सेतु प्रकाशन
***
* लीला: गाथा एक 'कुप्रसिद्ध' इंदौरी औरत की | लक्ष्मी शर्मा

- यह एक ऐसी स्त्री की कहानी है, जिसे समाज ने उसके अस्तित्व से अधिक उसके नाम और आरोपों से पहचाना. लीला इंदौर की साधारण स्त्री है, लेकिन उसका जीवन साधारण नहीं रह पाता. उसने प्रेम किया, रिश्तों में भरोसा रखा और अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जीने का साहस किया. यही साहस समाज को स्वीकार नहीं हुआ और उसने उसे 'कुप्रसिद्ध' कहकर ठुकरा दिया. अंततः यही अस्वीकृति उसकी पहचान बन गई. लीला का जीवन एक स्त्री के संघर्ष, उसकी इच्छाओं और उसकी जिजीविषा का दर्पण है. उसके जीवन में प्रेम है, मोहभंग है, रिश्तों की गर्माहट और विश्वासघात की ठंडक है. वह टूटती भी है, किन्तु हर बार अपने भीतर से उठ खड़ी होती है. लक्ष्मी शर्मा की भाषा में सादगी है और साथ ही तीखापन भी. गद्य सीधा है, परंतु भीतर से गहराई लिए हुए है. पढ़ते-पढ़ते लगता है जैसे हम किसी स्त्री की जीवन-डायरी देख रहे हों, जिसमें आँसुओं की नमी भी है और आत्मबल की चमक भी. ये कहानी आपको रोमांचित करती है, हंसाती है, रुलाती है डराती भी है और सोचने पर मजबूर करती है.
- प्रकाशक: शिवना पेपरबैक्स
***
* ग़रीबज़ादे | राजू शर्मा

- आम आदमी सत्ता की चक्की में जिस क्रूरता से पीसा जाता है उसे 'ग़रीबज़ादे' में बहुत गहराई से देखा जा सकता है. इस उपन्यास में भारतीय समाज और व्यवस्था की नब्ज़ को जिस गहराई से कथाकार ने दर्ज किया है, वह हिन्दी कथा परिदृश्य में विरल है. इसी उपन्यास का एक हिस्सा पढ़कर सुनाता हूं- गरीबी का उन्मूलन! भाईसाहब, गरीबी का भी वध करना होता है. यह बिरले लोग ही कर सकते हैं. जिनके पास यह दुर्लभ क्षमता है. वार करने के लिए फरसा है. समझे. मैं खुद को गरीबी के जल्लाद के रूप में देखता हूं जनाब... उपन्यास में वर्णन की ख़ूबी यह है कि न सत्ता इकहरी है और न जनता का शोषण एकांगी है. इस बहुस्तरीय सत्ता और शोषण की परतों को लेखक ने गहरे औपन्यासिक भूगोल में विन्यस्त किया है. इस कारण यह उपन्यास कला की दृष्टि से गहराई और विस्तार दोनों प्राप्त कर सका है.
- प्रकाशक: सेतु प्रकाशन
***
* लोकराधन | डॉ ओम प्रकाश पाण्डेय

- शिक्षा का अंतिम उद्देश्य क्या है? आज के भौतिकतावादी युग में यह एक कठिन प्रश्न है. क्या शिक्षा का लक्ष्य केवल रोज़गार पाना, शिक्षक बनना, व्यवसाय करना या सरकारी अधिकारी बनना भर है? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए लेखक ने देश की प्राचीन और समृद्ध शिक्षा प्रणाली की पर गहन शोध कर इस उपन्यास जो रचा है. उपन्यास की कहानी, पुरानी है, जो सत्यधन एवं शुभंवदा की मैत्री पर आधारित है. नायक महामात्य सत्यधन प्रारंभ में राज्य-हित को लेकर चिंतित दिखाई देता है. मानवता के उत्थान के लिए वह अपने सुख और सांसारिक भोगों का त्याग कर देता है. वह स्वयं को राजनीति से अलग कर लेता है और आगे चलकर इन सभी कार्यों से विरक्त भी हो जाता है. किंतु नायक अपने मूल आध्यात्मिक गुण मानव सेवा से स्वयं को अलग नहीं कर पाता. नायिका शुभवदा का अहंकार-रहित व्यक्तित्व, जो रानी के पद पर होते हुए भी एक सामान्य स्त्री की तरह तपस्या में लीन है, भारतीय नारी के विशिष्ट स्वरूप को प्रस्तुत करता है. शुभवदा का उदात्त चरित्र पाठकों को गहराई से प्रभावित करता है. 
- प्रकाशक: नोशन प्रेस
***
'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' के वर्ष 2025 की सूची में शामिल सभी रचनाकारों, लेखकों, अनुवादकों प्रकाशकों को हार्दिक बधाई! साहित्य और पुस्तक संस्कृति के विकास की यह यात्रा आने वाले वर्षों में भी आपके संग-साथ बनी रहे. 2026 शुभ हो. नए वर्ष की शुभकामनाएं स्वीकारें, आप सब पाठकों, दर्शकों का प्यार बना रहे.

 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement