वाकई स्त्री देह की रचना किसी नियति से कम नहीं है, जिसे समझ पाना काफी मुश्किल है. पुरुषों को सेक्स, हिंसा, रुतबे और ताकत की ओर खींचने वाला टेस्टोस्टीरॉन महिलाओं में बहुत कम होता है. इसकी बजाय औरतों में एस्ट्रोजन हार्मोन होता है जो बेहतरीन अवस्था में उन्हें मूडी और खराब हालत में चिड़चिड़ी या झगड़ालू बना देता है.
वैज्ञानिक दावा करते हैं कि महिलाओं में सबसे अहम सेक्स ऑर्गन उनके मस्तिष्क में होता है जो सेक्स के दौरान भावनात्मक और रिश्तों पर आधारित कारकों से उत्तेजित होता है जबकि इसके उलट पुरुषों में दैहिकता अधिक होती है. इसलिए औरतें प्यार की चाहत रखती हैं जबकि पुरुषों पर सेक्स हावी रहता है.
पिछले 62 साल से बहस बदस्तूर जारी हैः क्या औरतों के शरीर में कामोत्तेजक जोन होते हैं जिनका मस्तिष्क से कोई लेना-देना नहीं होता? जर्मन गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. अर्नस्ट ग्रेफनबर्ग ने 1950 में चरम-सुख के एक ऐसे स्थान का पता लगाने का दावा किया था-वजाइना (योनि) के अंदर छिपी एक छोटी-सी जगह जो महिलाओं को जबरदस्त ऑर्गेज्म (चरम-सुख) का एहसास करा सकती है.
पुरुषों में कामेच्छा को बढ़ाने वाली गोली वियाग्रा के आने के 14 साल बाद भी इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए कुछ खास नहीं हो सका है. चरम-सुख देने वाला स्पॉट आज भी भ्रामक बना हुआ है. कुछ वैज्ञानिकों और डॉक्टरों को इसके अस्तित्व पर संदेह है और इसे सिर्फ मीडिया का हो-हल्ला बताया जाता रहा है. इसे नाम देने में 31 साल खर्च हुएः जी-स्पॉट, जो ग्रेफनबर्ग के नाम पर था. दो साल पहले लंदन के किंग्स कॉलेज के शोधकर्ताओं ने इसे मनगढ़ंत करार दिया था. पिछले साल, येल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कहा कि जी-स्पॉट जैसी चीज का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है.
इसके बावजूद, महिलाओं के कामोत्तेजक बिंदुओं से जुड़ा लोगों का सोच या विज्ञान संबंधी जिज्ञासा पूरी तरह गायब नहीं हो सकी है. इस साल अप्रैल में अमेरिकी गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. एडम ऑस्त्रजेंस्की ने जर्नल ऑफ सेक्सुअल मेडिसिन में लिखा कि उन्हें जी-स्पॉट मिल गया है. इसकी मौजूदगी के संदिग्ध होने के पीछे असल कारण यह है कि यह छोटा है, उंगली के नाखून का भी आधा.
वैसे महिलाओं के शरीर में कामोत्तेजक बिंदु के तौर पर सिर्फ जी-स्पॉट ही नहीं होता. स्त्री देह में ऐसे कई और भी बिंदु होते हैं. वैज्ञानिक अब ''ए-स्पॉट'' और ''यू-स्पॉट'' की बात कर रहे हैं.
चूंकि फार्मा इंडस्ट्री अभी तक औरतों के लिए वियाग्रा जैसी दवा लेकर नहीं आ सकी है, लिहाजा यही खोज सामयिक है. जितनी ज्यादा संख्या में औरतें यौनानंद को लेकर खुलेंगी, वैसे ही डॉक्टरों के पास ऑर्गेज्म से वंचित रहने की समस्याएं लेकर आने वाली महिलाओं की संख्या में भी इजाफा देखने को मिलेगा. ऐसा होने भी लगा है.
महिलाओं के ऑर्गेज्म की कुंजी को ढूंढना ही होगा. वैज्ञानिक चेताते हैं कि पुरुषों और महिलाओं को आनंददायक स्पॉट्स तलाशने के लिए प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है. ऐसा लगता है कि प्रकृति ने भी महिलाओं को चरम-सुख के कुछ सूत्र दे रखे हैं.