भारत की न्याय व्यवस्था पर आई 2025 की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश में हर 10 लाख लोगों पर सिर्फ 15 जज हैं, जबकि 1987 की कानून आयोग की सिफारिश थी कि यह संख्या कम से कम 50 होनी चाहिए. देश की आबादी लगभग 1.4 अरब है और जजों की कुल संख्या सिर्फ 21,285 है.
एक जज पर 15,000 तक केस
2025 इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के अनुसार, हाई कोर्ट में 33% पद खाली हैं, जबकि कुल मिलाकर 21% पदों पर नियुक्तियां नहीं हुई हैं. इसका मतलब यह है कि जो जज कार्यरत हैं, उन पर भारी दबाव है. रिपोर्ट बताती है कि देशभर की जिला अदालतों में एक जज के पास औसतन 2,200 मुकदमे हैं. वहीं, इलाहाबाद और मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में प्रति जज 15,000 तक केस हैं.
कहां कितनीं महिला जज?
महिलाओं की भागीदारी थोड़ी बढ़ी है. जिला अदालतों में 2017 में जहां 30% महिलाएं थीं, वहीं 2025 में यह संख्या 38.3% हो गई है. हाई कोर्ट में यह आंकड़ा 11.4% से बढ़कर 14% हुआ है. सुप्रीम कोर्ट में अब भी सिर्फ 6% महिला जज हैं.
5% जज अनुसूचित जनजातियों (ST) से हैं
जातीय प्रतिनिधित्व की बात करें तो जिला अदालतों में सिर्फ 5% जज अनुसूचित जनजातियों (ST) से हैं और 14% अनुसूचित जातियों (SC) से. वहीं, 2018 से अब तक हाई कोर्ट में नियुक्त 698 जजों में सिर्फ 37 SC-ST समुदाय से हैं. ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व 25.6% है.
कानूनी सहायता पर राष्ट्रीय खर्च सिर्फ 6.46 रुपये प्रति व्यक्ति है, और पूरी न्याय व्यवस्था पर खर्च 182 रुपये प्रति व्यक्ति सालाना है.
रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली समेत कई हाई कोर्ट में 50% से ज्यादा केस तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं. दिल्ली में 2024 में जिला अदालत के एक जज के पास औसतन 2,023 केस थे और केस निपटाने की दर 78% रही, जो देश में सबसे कम है.