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नाराज पत्नी ने दी है दहेज और घरेलू हिंसा केस में फंसाने की धमकी? ऐसे कर सकते हैं कानूनी बचाव

498A और घरेलू हिंसा कानून जैसे प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने थे, लेकिन कुछ मामलों में इनका दुरुपयोग भी हुआ है. अगर किसी पुरुष को इस तरह की धमकी मिल रही है तो उसे घबराने की बजाय कानूनी सलाह लेकर समय रहते कदम उठाना चाहिए.  न्याय केवल स्त्री या पुरुष के लिए नहीं, बल्कि सच के लिए होता है. 

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Representational Image (Photo:ChatGPT)
Representational Image (Photo:ChatGPT)

'मैं तुम्हें सबक सिखा दूंगी… अब जेल की हवा खाओगे!' ऐसी धमकी सिर्फ फिल्मों की स्क्रिप्ट में नहीं बल्कि रियल जिंदगी में भी सुनने को मिल जाती है. यह डायलॉग तब और डरावना हो जाता है जब ये धमकी दहेज प्रताड़ना या घरेलू हिंसा के केस में फंसाने को लेकर होती हैं. भारत जैसे देश में जहां महिलाएं लंबे समय तक उत्पीड़न झेलती रहीं, वहीं अब कुछ मामलों में इस कानून के गलत इस्तेमाल की बात भी सामने आई है. हमें इस बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिए कि अगर किसी पुरुष को झूठे केस में फंसाने की धमकी दी जाए, तो उसका बचाव कैसे हो? आइए कानून एक्सपर्ट से जानते हैं. 

जान‍िए – क्या हैं दहेज और घरेलू हिंसा से जुड़े कानून

1. IPC की धारा 498A:  यह धारा पति या ससुरालवालों द्वारा पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने के खिलाफ है. इसमें गिरफ्तारी गैर-जमानती होती है और पुलिस को बिना वारंट गिरफ्तारी का अधिकार होता है।

2. घरेलू हिंसा कानून (Domestic Violence Act, 2005): इसमें सिर्फ शारीरिक ही नहीं, मानसिक, आर्थिक और यौन शोषण को भी शामिल किया गया है. पीड़िता को सुरक्षा, निवास, मुआवजा और भरण-पोषण की सुविधा मिलती है.


क्या वाकई इस कानून का गलत इस्तेमाल होता है?

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट भी यह मान चुका है कि 498A का मिस यूज़ बढ़ा है. जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच ने 2017 में कहा था  कि 498A को बदले की भावना से इस्तेमाल करना न्याय की अवहेलना है. दिल्ली के वरिष्ठ अध‍िवक्ता व कानूनव‍िद एडवोकेट मनीष भदौरिया कहते हैं कि कई बार देखा गया है कि तलाक या आपसी विवाद के दौरान पत्नी द्वारा पति और उसके पूरे परिवार को गंभीर धाराओं में फंसा दिया जाता है. एडवोकेट मनीष भदौर‍िया इससे बचने का हल भी बताते हैं. 

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ऐसी स्थिति में पति को क्या करना चाहिए?

1. धमकी को हल्के में न लें
अगर पत्नी खुले तौर पर झूठे केस की धमकी दे रही है, तो उसे गंभीरता से लें. सबसे पहले उसके ऐसे बयानों के रिकॉर्ड्स रखें जैसे ऑडियो, वीडियो, चैट्स या ईमेल को सेव करके रखें. 

2.जनरल डायरी (GD) या शिकायत दर्ज कराएं
पत्नी अगर ऐसी धमकी देकर अपने घर चली जाती है तो आप अपने स्थानीय थाने में जाकर धमकी की जानकारी दे सकते हैं. इससे पहले से एक रिकॉर्ड बन जाता है कि आपके साथ क्या हो रहा है. 

3.एंटीसिपेटरी बेल (Anticipatory Bail) लें
अगर पत्नी आप पर कोई झूठा केस कर देती है तो कोर्ट से अग्रिम जमानत लेना बेहद जरूरी हो सकता है, खासकर जब आपको किसी भी वक्त गिरफ्तार किया जा सकता है. 

 4. सिविल केस की तैयारी करें
आप कोर्ट में injunction की मांग कर सकते हैं कि बिना सबूत के गिरफ्तारी या कार्रवाई न हो. इससे आपको थोड़ी सुरक्षा मिलती है. इसके अलावा क्वाश पिट‍िशन भी एक व‍िकल्प है. 

5. परिवार को सतर्क करें
अक्सर इन केसों में पूरे परिवार को आरोपी बना दिया जाता है. बुजुर्ग माता-पिता, बहन या भाई को भी अग्रिम जमानत की ज़रूरत हो सकती है. 

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कानूनी सलाह लेना जरूरी 

एडवोकेट मनीष भदौर‍िया आगे कहते हैं‍ कि 498A और घरेलू हिंसा कानून जैसे प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने थे, लेकिन कुछ मामलों में इनका दुरुपयोग भी हुआ है. अगर किसी पुरुष को इस तरह की धमकी मिल रही है तो उसे घबराने की बजाय कानूनी सलाह लेकर समय रहते कदम उठाना चाहिए.  न्याय केवल स्त्री या पुरुष के लिए नहीं, बल्कि सच के लिए होता है. 

मेंटल हेल्थ का भी रखें ध्यान

ऐसे मामलों में पति या उसका परिवार गहरे तनाव में आ जाता है. नौकरी, रिश्ते और समाज में बदनामी जैसी चीजें मानसिक रूप से तोड़ देती हैं. इसीलिए साथ में काउंसलिंग, थेरेपी या कम से कम किसी विश्वासपात्र से बातचीत करना बेहद ज़रूरी होता है. 

क्या गलतियां नहीं करनी चाहिए?

- पत्नी को धमकी न दें, वरना उल्टा आपके खिलाफ सबूत बन सकता है. 
- सोशल मीडिया पर पोस्ट या मेसेज के जरिए विवाद न बढ़ाएं. 
- पुलिस से झूठ न बोलें, सच्चाई और सबूतों के साथ पेश आएं. 

क्या हैं कानूनी विकल्प

- धारा 9 (HMA) के तहत रेस्टिट्यूशन ऑफ कॉन्जुगल राइट्स  
- धारा 10/13 (HMA) के तहत तलाक या न्यायिक अलगाव  
- काउंटर केस अगर झूठे आरोप साबित हो जाएं – IPC 182 (झूठी जानकारी देने पर सज़ा)  

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कहानी सिर्फ एक पक्ष की नहीं होती

जहां महिलाओं के लिए कानूनों का होना ज़रूरी है, वहीं यह भी ज़रूरी है कि उनका गलत इस्तेमाल न हो. हर रिश्ते में सम्मान, संवाद और समझ सबसे बड़ी ज़रूरत है. जब एक रिश्ता टूटता है तो दोनों ही पक्षों को चोट लगती है. ऐसे में कानून को बदले की भावना से नहीं, न्याय की भावना से देखा जाना चाहिए. 

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