मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की अयोध्या जन्मभूमि है, सालों तक विवादों का केंद्र रही अयोध्या अब राम मंदिर के भूमि पूजन को लेकर एक बार फिर चर्चा में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच अगस्त को मंदिर का भूमि पूजन करेंगे. राम मंदिर आंदोलन ने देश की राजनीति को पूरी तरह से बदलकर रख दिया. राम के सहारे बीजेपी फर्श से अर्श पर पहुंच गई, लेकिन अयोध्या पर राज करने का मौका लेफ्ट से लेकर राइट तक सभी राजनीतिक दलों को मिला है.
सरयू नदी के किनारे बसी भगवान राम की नगरी अयोध्या एक बार फिर सुर्खियों में है. एक दौर में अयोध्या कौशल राज्य की राजधानी हुआ करती थी, लेकिन नवाबों के दौर में फैजाबाद की नींव पड़ी और अवध रियासत की राजधानी बनी. इसके बाद 2018 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फैजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया. इसके बावजूद यह लोकसभा सीट अभी भी फैजाबाद के नाम से ही जानी जाती है. हालांकि, अयोध्या नाम से विधानसभा सीट जरूर है, जो अपनी उपस्थिति को बनाए हुए है.
लोकसभा सीट का सियासी इतिहास
फैजाबाद लोकसभा सीट 1957 में वजूद में आई, इसके बाद से अब तक 16 बार चुनाव हुए. इस सीट पर कांग्रेस 7 बार जीत चुकी है जबकि राम के नाम पर सियासत करने वाली बीजेपी को 5 बार जीत मिली है. वहीं, सपा-बसपा-सीपीआईएम-भारतीय लोकदल को भी एक-एक बार प्रतिनिधित्व करने का मौका यहां के लोगों ने दिया है.
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1957 में फैजाबाद लोकसभा सीट पर आम चुनाव हुए और राजा राम मिश्र यहां से सांसद चुने गए. इसके बाद कांग्रेस 1971 तक लगातार चार बार जीत दर्ज की. कांग्रेस के विजय रथ को भारतीय लोकदल के अंतराम जयसवाल ने 1977 में रोका और यहां से जीतकर वो सांसद बने. हालांकि, 1980 और 1984 दोनों ही चुनावों में कांग्रेस ने जबरदस्त जीत दर्ज की.
कम्युनिस्ट पार्टी से मित्र सेन यादव जीते
90 के दशक से पहले 1988 में बीजेपी राममंदिर आंदोलन को अपने एजेंडे में शामिल कर चुकी थी. कांग्रेस राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने से लेकर राम मंदिर का शिलान्यास कराने का क्रेडिट लेना चाहती थी. इसके लिए राजीव गांधी ने 1989 लोकसभा चुनाव अभियान का आगाज अयोध्या से किया था. इसके बावजूद 1989 में कम्युनिस्ट पार्टी के मित्र सेन यादव यहां से जीत दर्ज कर सांसद बने.
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बीजेपी से विनय कटियार ने खाता खोला
बीजेपी का पहली बार खाता 1991 में खुला और विनय कटियार यहां से सांसद चुने गए. इसके बाद 1996 में भी विनय कटियार यहां से सांसद चुने गए थे लेकिन 1998 के चुनावों में सपा के हाथों विनय कटियार को हार का सामना करना पड़ा. हालांकि 1999 में वो एक बार फिर चुनाव जीतने में सफल रहे, लेकिन 2004 में बसपा के मित्रसेन यादव जीतकर एक बार फिर संसद पहुंचे. इसके बाद 2009 में कांग्रेस से निर्मल खत्री उतरे और सांसद चुने गए. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लल्लू सिंह यहां से सांसद चुने गए हैं.
अयोध्या विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
रामायण में सरयू नगर के तट पर बसी अयोध्या की स्थापना के बारे में कहा गया है कि विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज ने यह नगरी बसाई थी. 2018 में सीएम योगी आदित्यनाथ ने फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया. लोकसभा सीट भले ही फैजाबाद हो, लेकिन विधानसभा सीट अयोध्या के नाम से जानी जाती है, जहां बसपा छोड़कर सूबे के सभी राजनीतिक दलों को प्रतिनिधत्व करने का मौका मिला है.
अयोध्या में आगाज जनसंघ की जीत से हुआ
अयोध्या विधानसभा सीट 1967 में पहली बार वजूद में आई. इससे पहले अयोध्या का क्षेत्र फैजाबाद सदर विधानसभा क्षेत्र के तहत आता था. 1967 के चुनाव में अयोध्या सीट से जनसंघ के बृजकिशोर अग्रवाल ने जीत दर्ज की. इसके बाद 1969 में कांग्रेस के विश्वनाथ कपूर जीतने में कामयाब रहे, लेकिन 1974 में जनसंघ के वेद प्रकाश अग्रवाल ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली. 1977 में जनता पार्टी से जयशंकर पांडेय जीते, लेकिन 1980 में कांग्रेस से निर्मल खत्री जीतने में कामयाब रहे और 1985 में कांग्रेस से ही सुरेंद्र प्रताप सिंह विधायक बने.
90 के बाद बीजेपी महज एक बार हारी
जयशंकर पांडेय 1989 में जनता दल से चुनावी मैदान में उतरे और उन्होंने सुरेंद्र प्रताप को मात देकर दोबारा से कब्जा जमाया. इसके बाद लालू 1991 में बीजेपी से लल्लू सिंह मैदान में उतरे और वे राम के नाम पर जीतने में कामयाब रहे. बीजेपी पहली बार खाता खोलने में कामयाब रही, इसके बाद से 2007 तक लगातार 5 बार बीजेपी से विधायक बने. 2012 में बीजेपी को पहली बार सपा से मात मिली. यहां से तेजनारायण पांडेय विधायक बने, लेकिन 2017 के चुनाव में बीजेपी वेद प्रकाश गुप्ता को मैदान में उतारकर अयोध्या सीट पर अपने सियासी वर्चस्व को बरकरार रखने में कामयाब रही.