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राज्यसभा का नहीं मिला टिकट, क्या आजम खान के गढ़ रामपुर से चुनाव लड़ेंगे मुख्तार अब्बास नकवी?

केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को बीजेपी ने राज्यसभा का प्रत्याशी नहीं बनाया है जबकि उनका कार्यकाल 29 जून को खत्म हो रहा है. नकवी को अपने मंत्री पद की कुर्सी को बचाए रखने के लिए छह महीने में संसद पहुंचना होगा. राज्यसभा से पत्ता कटने के बाद अब उनके पास रामपुर लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़ने का विकल्प बचा हुआ है. ऐसे में क्या 12 साल बाद नकवी रामपुर से किस्मत आजमाने उतरेंगे?

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केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी
केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बीजेपी ने किसी मुस्लिम को नहीं दिया राज्यसभा का टिकट
  • मुख्तार अब्बास नकवी रामपुर सीट से तीन बार लड़ चुके चुनाव
  • साल 1998 में नकवी रामपुर से पहली बार सांसद बने थे

राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट भी सोमवार को जारी कर दी है. बीजेपी ने राज्यसभा के लिए अपने किसी भी मुस्लिम नेता को प्रत्याशी नहीं बनाया है जबकि केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, एमजे अकबर और सैयद जफर इस्लाम का कार्यकाल खत्म हो रहा है. ऐसे में मुख्तार अब्बास नकवी की साख दांव पर है, क्योंकि अगर वो दोबारा से संसद नहीं पहुंचते हैं तो उन्हें छह महीने के भीतर मंत्री पद छोड़ना पड़ सकता है. ऐसे में मुख्तार अब्बास नकवी क्या रामपुर लोकसभा सीट से उपचुनाव में किस्मत आजमाएंगे? 

बीजेपी ने राज्यसभा के लिए कुल 22 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है, जिसमें केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी सहित किसी भी मुस्लिम नेता का नाम शामिल नहीं है. ऐसे में अब नकवी के रामपुर से लोकसभा उपचुनाव लड़ने की संभावनाओं को खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि 1998 में पहली बार इसी रामपुर से जीतकर नकवी सांसद और अटल सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बने. 

बीजेपी की सियासत में मुख्तार अब्बास नकवी ने अपनी सियासी अहमियत बनाई और अब बीजेपी ने जब उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं दिया तो उनके सियासी भविष्य को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. वहीं, रामपुर लोकसभा सीट से आजम खान के इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है, जहां पर बीजेपी हरहाल में जीतने की कोशिश में है.

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1998 के बाद नहीं जीते लोकसभा चुनाव

राज्यसभा से टिकट कटने के बाद मुख्तार अब्बास नकवी के लोकसभा उपचुनाव लड़ने की कयास लगाए जा रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि रामपुर सीट से नकवी चुनाव लड़ते रहे हैं. रामपुर सीट से नकवी तीन बार किस्मत आजमा चुके हैं और 1998 में सांसद बने थे, लेकिन 1999 और 2009 में भी चुनाव लड़े पर जीत नहीं सके. इस तरह नकवी 1998 के बाद कोई भी लोकसभा चुनाव जीत नहीं पाए और 2016 से उन्हें पार्टी ने झारखंड से राज्यसभा में भेजा.  

मुख्तार अब्बास नकवी का 29 जून को राज्यसभा में मौजूदा कार्यकाल खत्म हो रहा है और बीजेपी ने उन्हें किसी भी राज्य से प्रत्याशी नहीं बनाया है. ऐसे में रामपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है. ऐसे में रामपुर लोकसभा सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए बीजेपी नकवी को प्रत्याशी बनाने का दांव चल सकती है. 1998 में रामपुर सीट पर जीत का परचम नकवी फहरा चुके हैं और फिर से बीजेपी उन पर दांव खेल सकती है. 

बीजेप मुस्लिम वोटों के झुकाव को परखने के लिए समय-समय पर सियासी प्रयोग करती रहती है. रामपुर लोकसभा सीट से आजम खान ने खुद उपचुनाव लड़ने के लिए मना कर दिया है, लेकिन उनके परिवार से कोई लड़ेगा कि नहीं ये तस्वीर साफ नहीं है. जेल से बाहर आने के बाद से आजम खान ने भले ही खुलेतौर पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव को लेकर कोई बयान न दिया हो, लेकिन नाराजगी साफ दिखी है. जेल से बाहर आए दस दिन हो रहे हैं, लेकिन अभी तक आजम और अखिलेश के बीच मुलाकात नहीं हुई है. 

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वहीं, सपा के नाराजगी के सवाल पर आजम खान ने कहा था 'मैंने कभी किसी दूसरी कश्ती की तरफ देखा तक नहीं है, सवार होना तो बहुत दूर की बात है. अभी तक अपनी जिंदगी में लाइन खींचकर रखी थी, लेकिन अंदाजा हुआ कि दुआ सलाम सभी से रखनी चाहिए. दुआ सलाम के अलावा अगर चाय नाश्ता भी हो तो उसमें एतराज नहीं होना चाहिए, जब सब चाय-नाश्ता करते हैं तो मैं नहीं कर सकता. जब यह अधिकार सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को हासिल है तो मैं भी उन्हीं जैसा इंसान हूं. 

आजम खान ने इस तरह से दूसरे दलों के नेताओं के साथ अपने रिश्ते को मजबूत करने के संकेत दिए थे. माना जाता है कि आजम खान की नाराजगी को दूर करने के लिए अखिलेश यादव ने कपिल सिब्बल को निर्दलीय राज्यसभा भेजने का फैसला किया, क्योंकि सिब्बल ने ही सुप्रीम कोर्ट से आजम की जमानत कराई है. इस बात को आजम ने खुले तौर पर कपिल सिब्बल का शुक्रिया अदा किया था. 

वहीं, अब रामपुर सीट पर सभी की नजर है कि सपा और बीजेपी से कौन चुनावी मैदान में उतरेगा. सपा और बीजेपी ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं जबकि बसपा ने साफ कर दिया है कि रामपुर सीट पर वो अपना कैंडिडेट नहीं उतारेगी. ऐसे में मुस्लिम बहुल रामपुर सीट पर बीजेपी मुख्तार अब्बास नकवी को उतारकर साल 1998 जैसे नतीजे दोहराने का सियासी दांव चल सकती है. 

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रामपुर लोकसभा सीट से भले ही नकवी 13 साल से चुनाव न लड़े हों, लेकिन अपनी सक्रियता को उन्होंने बनाए रखा है. अल्पसंख्यक मंत्री के तौर पर मुख्तार अब्बास नकवी ने रामपुर में हुनर हंट भी लगवाया था. इसके अलावा महीने-दो-महीने पर रामपुर का दौरा करते रहे हैं. रामपुर सीट पर 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है और बीजेपी नकवी के जरिए मुस्लिम और हिंदू वोटों का कॉम्बिनेशन बनाकर जीत का परचम फहराने का दांव चल सकता है. मुख्तार अब्बास नकवी को भी अपने मंत्री पद को बचाए रखने के लिए छह महीने में संसद पहुंचना होगा. ऐसे में राज्यसभा से खाली हाथ होने के बाद फिलहाल उनके पास रामपुर सीट से चुनाव लड़ने का ही विकल्प बचा है.

 

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