
केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने मंगलवार को भारत बंद का ऐलान किया है. अब इसे इत्तेफाक कहें या सोची समझी रणनीति कि भारत बंद से एक दिन पहले सोमवार को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव किसानों के समर्थन में सड़क पर उतरकर धरने पर बैठे, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया. सपा की एंडवास रणनीति के चलते भारत बंद की सुबह सूबे में अखिलेश के धरने और गिरफ्तारी की खबर अखबारों में छाई हुई है.
अखिलेश के घर के बाहर पुलिस का पहरा
कृषि कानून के खिलाफ सपा ने किसान यात्रा निकालने का ऐलान किया था. किसान यात्रा में शिरकत करने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को कन्नौज जाना था, लेकिन पुलिस ने उनके आवास पर देर रात से ही पहरा बिठा दिया और विक्रमादित्य मार्ग पर तीन जगहों पर बैरिकेडिंग कर पूरी तरह से सील कर रखा था. सोमवार दोपहर 10 बजे तक सपा कार्यकर्ता नजर नहीं आ रहे थे. इस दौरान सपा के विधान परिषद सदस्य आशू मलिक और राजपाल कश्यप जरूर आए, लेकिन उनके साथ न तो कार्यकर्ताओं की कोई भीड़ थी और न नेताओं की फौज.

ऐसे में करीब साढ़े दस बजे आवास का गेट खुलता है और अखिलेश यादव अपनी गाड़ी पर सवार होकर तेजी से निकलते हैं. पुलिस अखिलेश रोकने की कोशिश करती तब तक वह पहली बैरिकेडिंग तक पहुंच जाते हैं. इसके बाद अखिलेश अपनी गाड़ी छोड़कर पैदल चल पड़ते हैं और दूसरी बैरिकेडिंग क्रॉस कर जाते हैं. इसके बाद बंदरियाबाग चौराहे पर पहुंचकर धरने पर बैठ जाते हैं, जहां आधे घंटे की झड़प के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेकर इको गार्डन भेज दिया. इस दौरान सपा कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर चुके थे.
अखिलेश आधे घंटे तक धरने पर बैठे रहे
अखिलेश को रोके जाने का सपा कार्यकर्ताओं ने जोरदार विरोध किया. इस तरह से अखिलेश यादव ने लखनऊ की सड़कों पर उतरकर 9 साल पुराने इतिहास को दोहराया है. साल 2011 में सूबे में मायावती सरकार के दौरान सपा के तीन दिवसीय धरने में अखिलेश शामिल होने के लिए दिल्ली से लखनऊ पहुंचे थे, लेकिन अमौसी हवाई अड्डे से बाहर आते ही पुलिस ने उन्हें हिरासत में लने की कोशिश की तो वहीं पर धरने पर बैठ गए थे. इस धरने ने सपा कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया था और अखिलेश ने इसी के बाद सूबे की यात्रा पर निकलकर अपने पक्ष में माहौल बनाने का काम किया था.
किसानों के मुद्दे के जरिए अखिलेश यादव के सड़क पर उतरने की शुरुआत मानी जा रही है. सरकार ने उन्हें कन्नौज जाने से रोककर और पुलिस हिरासत में लेकर मुकदमा दर्ज कर सपा को माइलेज लेने का मौका जरूर दे दिया है. सोनभद्र और हाथरस में मामले में जिस तरह प्रियंका गांधी ने मौके पर पहुंच कर सुर्खियां बटोरी थीं. ऐसे ही किसानों के बहाने अखिलेश यादव भी रणनीति बनाने में सफल रहे हैं.
सपा को ऐसे ही सड़क पर उतरना होगा
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार काशी यादव कहते हैं कि अखिलेश यादव के सिर्फ एक दिन के धरने देने और सड़क पर उतरने से कुछ नहीं होने वाला है. लोगों से जुड़े हुए मुद्दों को लेकर अखिलेश यादव को लगातार सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ संघर्ष करना होगा. हालांकि, यह बात जरूर है कि अखिलेश ने किसानों के मुद्दे पर पहल कर जरूर माइलेज लेने की कोशिश की है, जिससे सपा कार्यकर्ताओं में एक नया जोश दिखा है.
काशी यादव कहते हैं कि अखिलेश को याद रखना होगा कि 2012 से पहले उन्होंने साइकिल यात्रा की थी, तब पार्टी सत्ता में आई थी और वह सपा का सबसे बड़ा चेहरा बन कर उभरे थे. उस वक्त मुलायम सिंह ही पार्टी का चेहरा थे और पूरा कुनबा एक था, लेकिन अब हालात पहले जैसे नहीं है. शिवपाल अलग हो चुके हैं और हाल के दिनों में कांग्रेस सड़क पर संघर्ष करती दिखी है. ऐसे में सपा को सत्ता में वापसी करनी है तो अपने जमीनी आधार को मजबूत करने के लिए ऐसे ही सड़क पर संघर्ष करते रहना होगा.
सपा ने सड़क पर संघर्ष के दिए संकेत
हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोमवार को ट्वीट कर कहा है, 'कदम-कदम बढ़ाए जा, दंभ का सर झुकाए जा... ये जंग है जमीन की, अपनी जान भी लगाए जा.' इतना ही नहीं उन्होंने ने कहा कि अन्नदाता से अन्याय के खिलाफ अंतिम सांस तक समाजवादी संघर्षरत रहेंगे. किसानों के हक में आवाज बुलंद करते रहेंगे. सरकार तीनों किसान विरोधी कानून वापस ले. जब तक यह कानून वापस नहीं होता तब तक पार्टी पूरे प्रदेश में लगातार पदयात्रा आयोजित करेगी. एक तरह से साफ है कि सपा इस मुद्दे को लेकर आरपार के मूड में है.
किसानों के पक्ष में खड़े होना सपा की मजबूरी
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि सपा इस मुद्दे पर तब जागी है जब किसानों ने आंदोलन को नया रूप दिया है. यह अलग बात है कि किसान आंदोलन चल रहा है तो आपने सांकेतिक धरना प्रदर्शन कर दिया. एक दिन के धरने से काम नहीं चलेगा, इसे लगातार करना होगा. ऐसा भी नहीं है कि सपा सड़कों पर नहीं उतर रही है, लेकिन नेतृत्व के बगैर दिखती है. ऐसे में अखिलेश खुद अगर जमीन पर उतरते हैं तो ही राजनीतिक संदेश देने में सफर रहेंगे. हालांकि, इस धरने ने जरूर सपा को सुर्खियां बटोरने का मौका दे दिया है.
उत्तर प्रदेश में किसान किंगमेकर की भूमिका में हैं, सूबे की 300 विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाके की हैं. खासकर पश्चिम यूपी में तो किसान राजनीति की दशा और दिशा तय करते हैं. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि सपा का राजनीतिक आधार किसान और पशुपालक ही रहा है. हाल के दिनों में जिस तरह से बीजेपी ध्रुवीकरण के जरिए ग्रामीण इलाके में अपना राजनीतिक आधार बनाने में कामयाब हुई है और उपचुनाव में कांग्रेस जिस तरह से दो सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है, उससे सपा के लिए चुनौती खड़ी हो गई है. ऐसे में किसान आंदोलन के पक्ष में सपा का खड़ा होना एक मजबूरी बन गई है, क्योंकि किसानों के अंदर गुस्सा बढ़ रहा है और 2022 के विधानसभा चुनाव में अब वक्त ज्यादा नहीं रह गया है, जिसके चलते सपा किसानों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए उनके पक्ष में खड़ी है.