देश की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली काशी में स्थित भगवती मां जगदम्बिका के 51 शक्तिपीठों में से एक विशालाक्षी देवी के दरबार में पूजा-अर्चना के लिए देश के कोने-कोने से भारी संख्या में श्रद्धालुओं का आना शुरू हो चुका है.
पौराणिक मान्यताओं को देखते हुए मंदिर में हर साल लाखों भक्त देवी के दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन कुंभाभिषेक के दिन यहां भक्तों की तादाद बहुत ज्यादा होती है. मान्यता है कि भगवती मां जगदम्बिका के 51 शक्तिपीठों में देवी विशालाक्षी का पीठ सबसे प्रमुख है.
कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की अगुवाई में 17 अप्रैल को विशालाक्षी देवी का चतुर्थ कुंभाभिषेक मनाया जाएगा, जिसमें लाखों श्रद्धालुओं के शामिल होने की उम्मीद जताई जा रही है.
इस दरबार की महत्ता बताते हुए मंदिर के महंत अरुणाचल शास्त्री ने कहा, 'इस मंदिर में प्रतिस्थापित देवी मां की प्रतिमा स्वयंभू मानी जाती है. नाटकोटि नगरक्षेत्रम ने वर्ष 1908 में इस मंदिर का जीर्णोधार कराया था. इस बीच समयकाल से प्रभावित होने पर वर्ष 1971 में शंकराचार्यो की आम सहमति से श्रृंगेरीपीठ के शंकराचार्य ने यहां एक और प्रतिमा की स्थापना कराई थी, जिसके बाद से यहां दोनों विग्रहों की पूजा-अर्चना की जाती है. इसके अलावा हर 12वें वर्ष पर यहां कुंभाभिषेक भी किया जाता है.'
शास्त्री ने बताया कि पौराणिक कथाओं के मुताबिक अपने पिता द्वारा राजमहल में यज्ञ के दौरान किए पति भगवान शंकर के अपमान से दुखी होकर सती पार्वती ने अपने प्राण त्याग दिए थे, जिसके बाद क्रोधित भगवान शंकर यहां तांडव करने लगे थे, लेकिन भगवान शंकर के गुस्से और सृष्टि की रक्षा के लिए देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 टुकडों में विभक्त कर दिया था.
ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु द्वारा विभक्त चक्र चलाने के बाद देवी का मुख यहां गिरा था, तभी से इसे शक्तिपीठ की मान्यता मिली थी. यह भी मान्यता है कि देवाधिदेव महादेव इसी शक्तिपीठ में विश्राम करने के लिए आते हैं जिसके लिए यहां एक पलंग भी लगाया गया है.
मंदिर में पूजा-अर्चना करने वाले आचार्यों के मुताबिक कुंभाभिषेक के दिन यहां पूजा करने का खास महत्व रहता है, जिसका पुण्य लाभ कमाने के लिए बंगाल, बिहार, तमिलनाडु, केरल, गुजरात, आंध्र प्रदेश सहित देश के कोने-कोने से लाखों लोग यहां आते हैं. नवरात्र के समय तो इस मंदिर में तिल रखने तक की जगह नहीं मिलती है.