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Exclusive:आखिर क्यों है सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन को देश भर में उतारने की जल्दी?

इस वैक्सीन को अभी तक पंजाब के दो जिलों और दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इंट्रोड्यूस किया गया है. हालांकि इसके कारगर रहने का कोई सबूत उपलब्ध नहीं है.

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सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन
सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन

सर्वाइकल कैंसर से जुड़ी वैक्सीन (टीका) को लेकर विवाद गहरा गया है. सरकारी पैनल से जुड़े विशेषज्ञ ना सिर्फ इसकी प्रभाविता बल्कि कीमत को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं. हकीकत में पैनल के एक सदस्य ने तो इस मामले में सरकार पर ही आंकड़ों से खिलवाड़ करने का आरोप लगा दिया है जिससे कि इस वैक्सीन को देश भर में उतारा जा सके.

बीते हफ्ते स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजकर सर्वत्र टीकाकरण कार्यक्रम में HPV नाम की इस वैक्सीन को इंट्रोड्यूस करने का विरोध किया था.

सरकारी विशेषज्ञ डॉ जैकब पुलियेल के निष्कर्षों को प्रतिष्ठित ‘ब्रिटिश जर्नल फॉर कैंसर ’ में जगह मिली है. पुलियेल नेशनल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन (NTAGI) के सदस्य हैं, जो इस तरह के टीकों को मंजूरी देती है.

बिना अनुमति आंध्र में कथित ट्रायल में 7 लड़कियों की मौत

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बता दें कि HPV वैक्सीन का ट्रायल पहले विवादों में आ चुका है जब आंध्र प्रदेश के खम्मम जिले में टीकाकरण के बाद 7 लड़कियों की मौत हो गई थी. स्वास्थ्य पर संसद की 72वीं स्थाई समिति ने इस तथ्य को हाईलाइट किया था.

इस वैक्सीन को अभी तक पंजाब के दो जिलों और दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इंट्रोड्यूस किया गया है. हालांकि इसके कारगर रहने का कोई सबूत उपलब्ध नहीं है.

वैक्सीन को पंजाब में PGIMER (पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च) के डॉक्टरों की सिफारिश के बाद इंट्रोड्यूस किया गया था. इन डॉक्टरों का कहना था कि वैक्सीन से ना सिर्फ 99% मृत्यु दर को रोका जा सकेगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि वैक्सीन की कीमत 100 अमेरिकी डॉलर (6403 रुपए) भी हो तो भी ये लाभकारी रहेगी. वैक्सीन को जब पूरे देश में उतारा जाएगा तो इसकी कीमत 14 अमेरिकी डॉलर (896.42 रुपए) पड़ेगी

डॉ जैकब पुलियेल ने ऐसे डॉक्टरों से सवाल उठाया किया है, जिन्होंने कैटलन यूनिवर्सिटी, बार्सिलोना के स्वास्थ्य अर्थशास्त्रियों का हवाला देते हुए, वैक्सीन को 100 डॉलर कीमत पर भी प्रभावी बताया. डॉ पुलियेल ने कहा है कि क्या ये विशेषज्ञ ये कहना चाहते हैं कि अगर ये वैक्सीन 3.30 डॉलर की होती तो प्रभावी नहीं होती.  

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विशेषज्ञों ने भारतीय आंकड़ों और भारतीय परिस्थितियों के हिसाब से ये स्टडी की है. ये अभी तक की अकेली स्टडी है, जो HPV वैक्सीन की भारत में कीमत की प्रभाविता को लेकर की गई है.

हालांकि NTGAI के निष्कर्षों को खारिज करते हुए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की पूर्व डीजी डॉ सौम्या स्वामीनाथन का कहना है कि वैक्सीन को देश भर में 5 अमेरिकी डॉलर की कीमत पर इंट्रोड्यूस किया जा रहा है, जो उचित कीमत है.

वैक्सीन की कीमत पर ही नहीं इसकी प्रभाविता (असर) पर भी डॉ पुलियेल के रिसर्च पेपर में सवाल उठाया गया है. वैक्सीन सिर्फ 10 साल पुरानी है और भारत में इसकी प्रभाविता को लेकर किसी स्टडी का कोई रिकॉर्ड नहीं है. सिर्फ बिना अनुमति लिए एक बार आंध्र प्रदेश में आदिवासी लड़कियों पर ट्रायल हुआ है.

जन स्वास्थ्य अभियान नाम का एनजीओ इस मुद्दे पर अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहा है. इस एनजीओ से जुड़े मनमोहन शर्मा का कहना है, वैक्सीन 9 और 14 साल उम्र की लड़कियों को दी गई जबकि अमूमन कैंसर 45 साल से ऊपर की महिलाओं को होता है, ऐसे में ये कैसे जाना जा सकता है कि वो कारगर है या नहीं.

वहीं डॉ स्वामीनाथन का कहना है कि वैक्सीन काम कर रही है या नहीं, ये जानने के लिए इतना लंबे समय तक इंतजार किया जा सकता है. ऐसी रिपोर्ट है कि ये वैक्सीन 80 फीसदी तक वायरस को मार देती है, ऐसे में ये वैक्सीन दी जाती है तो वो कारगर रहेगी.

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PGIMER टीम की दलील थी कि पंजाब में एक साल में जितनी भी लड़कियां जन्म लेती हैं, उनमें 740 में कैंसर विकसित होता है. ऐसे में लड़कियों को अगर वैक्सीन दी जाती है तो 99 फीसदी यानी 733 को कैंसर से बचाया जा सकता है.

जो हैरान करने वाली बात है वो ये है कि संसद की स्थाई कमेटी की रिपोर्ट की अनदेखी करते हुए इसे देश भर में उतारा जा रहा है. इस कमेटी ने अपनी 72वीं रिपोर्ट में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की भूमिका को लेकर चौंकाने वाले तथ्यों का हवाला दिया है. क्या ICMR बिना अनुमति मानव पर क्लिनिकल ट्रायल को बढ़ावा दे रहा है.  

इस मामले के तूल पकड़ने पर जांच कमेटी का गठन किया गया. लेकिन स्थाई समिति ने पाया कि कमेटी में शामिल डॉक्टरों में से एक डॉक्टर उस कंपनी की मेहमाननवाजी का आनंद ले रहा था, जो ट्रायल करा रही है.

कमेटी ने ये भी पाया कि ICMR ने अमेरिकी एजेंसी, PATH, के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं जिसे बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर फंड मिलता है. ये देश में वैक्सीन को इस्तेमाल के लिए मंजूरी से मिलने से पहले ही हो गया था

इस संदर्भ में एक्टिविस्ट्स के वकील कोलिन गोंसाल्वेस का कहना है, ‘क्योंकि सरकार इन तथ्यों पर कुछ नहीं कर रही थी, इसलिए एक्टिविस्ट्स सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. लेकिन फार्मा कंपनियों ने इस कदम को इस आधार पर रोक दिया कि संसदीय समिति पर सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई नहीं कर सकता.’

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डॉ स्वामीनाथन का कहना है, ‘क्योंकि कोर्ट में जांच चल रही है, इसलिए रिपोर्ट या संबंधित डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती.

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