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न पार्टी के नेता मान रहे न गुटबाजी हो रही खत्म... 3 राज्य जो राहुल गांधी के लिए बन गए हैं चुनौती!

केंद्र की सत्ता से विदाई के बाद कांग्रेस राज्यों में भी कांग्रेस सिकुड़ती ही चली गई. महज तीन राज्यों में ही कांग्रेस की अपने दम पर सरकार है. तीन राज्य ऐसे भी हैं, जहां गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही और यह राहुल गांधी के लिए चुनौती बन गए हैं.

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी.

भारतीय जनता पार्टी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार केंद्र में 11 साल का कार्यकाल पूरा करने का जश्न मना रही है. बीजेपी इस मौके पर 'संकल्प से सिद्धि तक' अभियान के जरिये 11 साल के कार्यकाल की उपलब्धियों, कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार की विफलताओं को घर-घर, जन-जन तक पहुंचाने में जुटी है. 11 साल पहले एनडीए को सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस राज्यों में भी सिकुड़ती चली गई. अपने दम पर केवल तीन (हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक) की सत्ता तक सिमटकर रह गई कांग्रेस में नई उमंग भरने की कोशिश में अब लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी मैदान में उतर आए हैं.

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कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती यह है कि पार्टी के नेता पार्टी लाइन नहीं मान रहे, ना ही गुटबाजी खत्म हो रही है. राहुल गांधी ने पार्टी के लिहाज से ट्रबल मेकिंग स्टेट्स पर फोकस कर दिया है. राहुल गांधी ने अप्रैल महीने में गुजरात का दौरा किया, जहां उन्होंने कांग्रेस के संगठन सृजन कार्यक्रम की शुरुआत की थी. गुजरात के बाद कांग्रेस के संगठन सृजन कार्यक्रम और राहुल गांधी का दूसरा पड़ाव मध्य प्रदेश, तीसरा हरियाणा रहे. राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश और हरियाणा का दौरा हाल ही में किया था. संगठन सृजन अभियान की शुरुआत इन राज्यों से करने के पीछे भी अपनी रणनीति है. राहुल के ट्रबल मेकिंग स्टेट्स पर फोकस के पीछे क्या है?

लंबे समय से कांग्रेस सत्ता से दूर

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने पार्टी के संगठन को मजबूती से खड़ा करने के लिए संगठन सृजन अभियान की शुरुआत की है. राहुल गांधी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद संसद में कहा था कि हम गुजरात में बीजेपी को हराने जा रहे हैं. राहुल गांधी भी जानते हैं कि यह टास्क उतना आसान नहीं है.

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राहुल गांधी का प्राइम फोकस गुजरात है और यही वजह है कि उन्होंने संगठन सृजन अभियान की शुरुआत के लिए इस तटवर्ती राज्य को चुना. कांग्रेस साल 1995 से ही गुजरात की सत्ता से बाहर है. गुजरात में पार्टी ने 30 साल से सत्ता का स्वाद नहीं चखा है. मध्य प्रदेश और हरियाणा में भी कहानी कुछ ऐसी ही है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ की अगुवाई वाली 15 महीने की छोटी अवधि की सरकार हटा दें, तो कांग्रेस 2003 से सत्ता से दूर है. हरियाणा में भी ग्रैंड ओल्ड पार्टी लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी है.

बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ में चुनौती

ये तीनों ही राज्य वर्षों से कांग्रेस के लिए कमजोर कड़ी बने हुए हैं. पार्टी यहां तब भी कोई कमाल करने में फेल रही थी, जब 10 साल तक देश में उसकी अगुवाई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार रही. इसके ठीक उलट ये तीनों ही राज्यों की सत्ता पर बीजेपी तब से काबिज है, जब यूपी जैसे महत्वपूर्ण राज्य में उसका अपने दम पर बहुमत के साथ सत्ता तक पहुंचना टेढ़ी खीर माना जाता है. बिहार जैसे राज्य में जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार जैसे कद्दावरों का साथ होने के बावजूद बीजेपी लालू यादव का दुर्ग नहीं भेद पा रही थी. अब, जब पूर्वोत्तर से उत्तर तक के राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकारें अधिक हैं, कांग्रेस की सोच कमल निशान वाली पार्टी को उसके सबसे मजबूत गढ़ में ही चुनौती देने की भी हो सकती है.

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गुजरात-MP में सकारात्मक नतीजे आए तो संदेश बड़ा

पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी अबकी बार, 400 पार का नारा देकर मैदान में उतरी थी. बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को 293 सीटों पर जीत मिली और पार्टी की टैली 240 पर रुक गई थी. लगातार तीसरी बार एनडीए ने सरकार बनाई, लेकिन 2014 और 2019 की तरह बीजेपी बहुमत से चूक गई. 2014 और 2019 में विपक्ष का नेता पद हासिल करने के लिए जरूरी संख्याबल से भी पीछे रह जाने वाली कांग्रेस पार्टी का आंकड़ा सौ के करीब पहुंच गया. इससे उत्साहित कांग्रेस के नेताओं को लग रहा है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के गृह राज्य गुजरात के साथ ही मध्य प्रदेश जैसे बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले राज्यों में चुनाव नतीजे अगर उसके पक्ष में आते हैं, तो इसके संदेश बड़े व्यापक होंगे. ऐसा हुआ तो देशभर के कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बूस्ट हो सकता है.

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तीनों राज्यों में गुटबाजी सबसे बड़ी समस्या

गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश और हरियाणा तक, कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या गुटबाजी भी है. मध्य प्रदेश में गुटबाजी के कारण 15 साल बाद सत्ता पाकर भी पार्टी को 15 महीने में ही गंवा देनी पड़ी थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायकों की बगावत के बाद मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिर गई थी. मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने को लेकर कई बार अपना दर्द जाहिर कर चुके हैं. पार्टी के नेता और कार्यकर्ता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, अजय सिंह राहुल, अरुण यादव जैसे नेताओं के गुट में बंटे नजर आते हैं.

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ऐसी ही स्थिति गुजरात कांग्रेस की भी है, जहां पार्टी शक्ति सिंह गोहिल, भरत सिंह सोलंकी गुट सहित कई छोटे-छोटे गुट में बंटी रही है. हरियाणा में तो लोकसभा चुनाव में दमदार प्रदर्शन के बाद पार्टी विधानसभा चुनाव हार गई. इसके लिए भी गुटबाजी को ही जिम्मेदार बताया गया. हरियाणा कांग्रेस भूपेंद्र सिंह हुड्डा और एसआर (कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला) गुट में बंटी हुई है. विधानसभा चुनाव के दौरान भी दोनों गुटों की तल्खी खुलकर सामने आ गई थी. जाटलैंड में आलम यह है कि 10 साल से पार्टी के संगठन का गठन तक नहीं हो पाया है. सूबे में जो कैडर है, वह पार्टी का नहीं, बल्कि नेताओं का अपना-अपना कैडर है.

गुटबाजी की पहेली सुलझा पाएंगे राहुल गांधी?

राहुल गांधी क्या तीनों ही राज्यों में नासूर बन चुकी गुटबाजी की समस्या सुलझा पाएंगे? सवाल यह भी उठ रहे हैं. कांग्रेस के संगठन सृजन अभियान को गुटबाजी से पार पाने की कवायद के रूप में ही देखा जा रहा है. इस अभियान के तहत नेतृत्व हर एक जिले के लिए एक पर्यवेक्षक को संगठन खड़ा करने की जिम्मेदारी देता है. हर जिले में चार प्रदेश ऑब्जर्वर भी ब्लॉक स्तर तक जाकर जिलाध्यक्ष के लिए संभावित नामों पर चर्चा करेंगे. इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी नेतृत्व की ओर से नियुक्त पर्यवेक्षक करेंगे और आलाकमान को रिपोर्ट सौंपेंगे. इस रिपोर्ट के आधार पर आलाकमान ही जिलाध्यक्षों की नियुक्ति करेगा.

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कांग्रेस का प्लान यह भी है कि जिलाध्यक्षों को और सशक्त बनाया जाए, चुनावों के समय उम्मीदवार चयन में भी उनका रोल हो. संगठन के गठन की इस रणनीति को गुटबाजी काउंटर करने की कवायद से ही जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल, अभी तक पार्टी में जिलाध्यक्ष की कुर्सी तक वही नेता पहुंच पाते थे जो प्रदेश अध्यक्ष से जुड़े हों. इससे गुटबाजी को और हवा मिलती थी. जिलाध्यक्षों की निष्ठा संगठन की जगह नेता के प्रति अधिक होती थी. हरियाणा जैसे राज्य में कांग्रेस के संगठन का एक दशक से गठन नहीं हो पाने के पीछे भी इसी को वजह माना जाता है. संगठन सृजन अभियान से राहुल गांधी कांग्रेस में गुटबाजी की पहेली कितना सुलझा पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी.

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