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PM मोदी के राजनीतिक स्टाइल से कांग्रेस और राहुल की सियासत में क्या बदलाव आए? 5 Points

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बुधवार को 75वां जन्मदिन है. पीएम मोदी ने अपनी सियासी तौर-तरीके से बीजेपी को सियासी बुलंदी दी तो कांग्रेस की राजनीति पर भी असर डाला है. राहुल गांधी को सड़क पर उतरकर कांग्रेस को दोबारा से खड़े करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

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नरेंद्र मोदी की सियासत से बदला राहुल गांधी का तेवर (Photo-ITG)
नरेंद्र मोदी की सियासत से बदला राहुल गांधी का तेवर (Photo-ITG)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जिंदगी के 75 साल का सफर तय कर लिया है. गुजरात के एक साधारण परिवार में जन्मे और एक चाय बेचने वाले के बेटे नरेंद्र मोदी सत्ता के शिखर तक पहुंचे हैं. इस तरह से उन्होंने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है. गुजरात के मुख्यमंत्री से देश में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का खिताब नरेंद्र मोदी के नाम है.

नरेंद्र मोदी ने 18 साल की उम्र में राजनीति में कदम रखा. बूथ कार्यकर्ता से प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया. नरेंद्र मोदी के राजनीतिक उदय से बीजेपी को सियासी बुलंदी मिली है तो कांग्रेस की सियासत पर भी असर पड़ा है और राहुल गांधी की राजनीति में निखार आया है.

गुजरात के एक छोटे से कस्बे वडनगर में 17 सितंबर 1950 को नरेंद्र मोदी का जन्म हुआ था. उनके पिता दामोदरदास मूलचंद मोदी रेलवे स्टेशन के पास एक चाय की दुकान चलाते थे, जबकि उनकी माँ हीराबेन एक गृहिणी थीं.

प्रधानमंत्री मोदी ने सियासत में कदम रखा तो फिर पलटकर नहीं देखा और देश की राजनीति के तौर-तरीके को पूरी तरह से बदलकर रख दिया. बीजेपी को सियासी ताकत दी तो कांग्रेस को भी अपनी परंपरागत शैली बदलनी पड़ गई. मोदी के चलते कांग्रेस की सियासत पर क्या-क्या प्रभाव पड़ा, यह पाँच पॉइंट्स में समझें:

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1. सत्ता से कांग्रेस इतनी दूर कभी नहीं रही

नरेंद्र मोदी के राजनीतिक उभार के बाद से कांग्रेस का सियासी आधार दिन-ब-दिन कम होने लगा. नरेंद्र मोदी साल 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने, उसके बाद से कांग्रेस कभी दोबारा राज्य की सत्ता में नहीं लौट सकी. गुजरात में बीजेपी का सियासी दबदबा कायम है. 2002 से लेकर 2014 तक मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, उसके बाद देश के प्रधानमंत्री बने.

2014 में बीजेपी पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने. 2014, 2019 और 2024 लगातार तीन लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, लेकिन कांग्रेस अपनी वापसी नहीं कर सकी. कांग्रेस अपने सियासी सफर में इतने लंबे समय तक सत्ता से कभी दूर नहीं रही. 1977 में भी पार्टी सत्ता से बाहर हुई, लेकिन तीन साल के बाद वापसी कर गई थी और उसके बाद 1995 में बाहर हुई तो 9 साल के बाद 2004 में वापसी की थी.

2014 में बाहर हुई तो अभी तक उसका सियासी वनवास जारी है. सत्ता से दूर रहने के चलते कांग्रेस के तमाम नेता पार्टी छोड़कर चले गए. कांग्रेस देश की ही नहीं, कई राज्यों की सत्ता से भी दूर हो गई. कांग्रेस सत्ता में वापसी करने के लिए कई प्रयोग कर चुकी है, लेकिन सफल नहीं रही.

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2. राहुल गांधी को मिली नई सियासी पहचान

नरेंद्र मोदी की राजनीतिक शैली ने कांग्रेस को सत्ता से दूर किया, जिसका सियासी असर राहुल गांधी की राजनीति पर भी पड़ा. प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के दो साल बाद 2004 में राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक पारी का आगाज़ किया. कांग्रेस के 10 साल सत्ता में रहने के बाद 2014 में यह माना जा रहा था कि अब आगे की सियासी पारी राहुल गांधी संभालेंगे, लेकिन नरेंद्र मोदी की लहर में कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया. इस तरह राहुल गांधी की राजनीति पर ग्रहण लग गया.

प्रधानमंत्री मोदी के सियासी तौर-तरीके के चलते राहुल गांधी को अपनी राजनीतिक शैली बदलनी पड़ी. 2014 और 2019 में मिली हार के बाद राहुल को एसी की राजनीति से बाहर निकलकर सड़क पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा. राहुल गांधी ने संघर्ष कर अपनी सियासी पहचान बनाने की कवायद शुरू की. इससे राहुल गांधी की छवि काफी बदली है और गंभीर नेता के तौर पर उनकी पहचान बनी है.

राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की, जिसमें कन्याकुमारी से कश्मीर तक का सफर तय किया. इसके बाद पूर्वोत्तर से गुजरात तक का सफर तय किया. अभी हाल में राहुल ने बिहार में 'वोट अधिकार यात्रा' निकाली. इसके अलावा राहुल गांधी अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों से मुलाकात कर रहे हैं और जनता से जुड़े मुद्दों को उठा रहे हैं. इससे राहुल गांधी की छवि मजबूत हुई और वे जननेता के तौर पर खुद को स्थापित करने में जुटे हैं.

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3. कांग्रेस की नई सोशल इंजीनियरिंग

देश की सत्ता के शीर्ष पर पहुँचने वाले नरेंद्र मोदी दूसरे ओबीसी नेता हैं. एच.डी. देवगौड़ा के बाद मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से राजनीति का ओबीसीकरण हुआ है. इस तरह मोदी ने बीजेपी को बनिया-ब्राह्मण वाली पार्टी से निकालकर दलित-ओबीसी की पार्टी बना दी. बीजेपी की इस राजनीति से राहुल गांधी ने भी सीख ली और कांग्रेस की राजनीति को ओबीसी पर केंद्रित किया है. राहुल गांधी इन दिनों कांग्रेस की नई सोशल इंजीनियरिंग बनाने में जुटे हैं, दलित और मुस्लिम के साथ ओबीसी समुदाय को जोड़ने पर काम कर रहे हैं.

राहुल गांधी जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाने से लेकर आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से भी ज़्यादा बढ़ाने की माँग कर रहे हैं. राहुल का यह तरीका उनकी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी से बिल्कुल अलग है. इंदिरा गांधी ने 1980 में ओबीसी आरक्षण देने वाले मंडल कमीशन को ठंडे बस्ते में डाल दिया तो राजीव गांधी ने 1990 में इसका विरोध किया था. नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद राहुल गांधी को अहसास हुआ कि कांग्रेस ने कितनी बड़ी गलती की है, जिसके चलते वो अब लगातार पार्टी के मंच से दलित, ओबीसी और आदिवासी समुदाय के मुद्दे पर मुखर रहते हैं.

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4. गांधी परिवार से बाहर कांग्रेस की कमान

कांग्रेस की कमान लंबे समय तक गांधी परिवार के हाथों में रही है. 1998 से लेकर 2017 तक सोनिया गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रहीं और उसके बाद राहुल गांधी ने कमान संभाली, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस के तमाम नेताओं ने राहुल से पार्टी अध्यक्ष बनने की गुहार लगाई, लेकिन वो तैयार नहीं हुए.

कांग्रेस की कमान गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को सौंपने का प्लान बना. 24 साल के बाद कांग्रेस की कमान गांधी परिवार से बाहर गई. 2022 में मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बने. इसके पीछे मुख्य वजह यह थी कि बीजेपी सवाल उठाती रही कि कांग्रेस में गांधी परिवार के सिवा कोई दूसरा अध्यक्ष नहीं बन सकता. इस तरह कांग्रेस को गांधी परिवार की छवि से बाहर निकालने के लिहाज से खड़गे को कमान सौंपी गई.

5. देश का राजनीतिक पैटर्न कैसे बदल गया?

2014 से पहले सियासी दलों का फोकस अल्पसंख्यक वोटों पर हुआ करता था. कांग्रेस से लेकर तमाम सियासी दल अपनी राजनीति अल्पसंख्यक केंद्रित कर रखे थे, लेकिन 2014 के बाद पूरी राजनीति ही बदल गई. नरेंद्र मोदी ने अलग-अलग जातियों में बिखरे हुए हिंदुओं को हिंदुत्व की छतरी के नीचे एकजुट कर पूरा सियासी खेल ही बदल दिया. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर बीजेपी के तमाम नेता खुलकर हिंदुत्व की राजनीति करने का दांव चले, जिसमें मंदिर में पूजा-पाठ करने से लेकर हिंदुत्व की बात खुलकर करने लगे.

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मोदी और बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति का सियासी असर यह पड़ा कि अल्पसंख्यक केंद्रित रहने वाली राजनीतिक दलों की सियासत पूरी तरह से हाशिए पर चली गई. अल्पसंख्यक केंद्रित पॉलिटिक्स पूरी तरह बहुसंख्यक की ओर शिफ्ट हो गई. इसका नतीजा है कि राहुल गांधी से प्रियंका गांधी तक, तेजस्वी यादव से लेकर अखिलेश यादव तक मंदिरों पर माथा टेकते नज़र आते हैं.

हालांकि, इससे पहले भी वो मंदिर जाया करते थे, लेकिन दिखावा नहीं किया करते थे. लेकिन, अब खुलकर करते हैं. इसके अलावा, मुसलमानों के मुद्दे पर खुलकर बोलने से बचते हैं, क्योंकि मुस्लिम परस्ती के आरोप में बहुसंख्यक वोट नाराज़ न हो जाएं.

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