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खुद को नास्तिक मानने वाले 'क्रिश्चियन' एमए बेबी के सामने भारत की लेफ्ट पॉलिटिक्स में प्राण फूंकने की चुनौती!

कोल्लम जिले के प्रक्कुलम में जन्मे, मरियम एलेक्जेंडर बेबी स्वयं को नास्तिक मानते हैं और पोलित ब्यूरो में एकमात्र ईसाई चेहरा हैं. उनकी असली चुनौती अगले ही कुछ महीनों में केरल और बंगाल में होगी जहां विधानसभा चुनाव होने को हैं. ये दोनों ही वो राज्य है जहां लेफ्ट एक दमदार ताकत है. केरल में तो सीपीएम 10 सालों से सत्ता में हैं, और वे हैट्रिक की तैयारी कर रहे हैं वहीं बंगाल में 'लाल किला' तो 2011 से ही दरक रहा है. 

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CPM के नए महासचिव एम ए बेबी. (फोटो- एक्स)
CPM के नए महासचिव एम ए बेबी. (फोटो- एक्स)

"वैश्विक स्तर पर यह धारणा बनाई गई कि दुनिया दक्षिणपंथ की ओर बढ़ रही है, लेकिन वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि दुनिया की करीब 25% आबादी वामपंथी दलों द्वारा शासित देशों में रहती है.

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"क्यूबा, ​​कोरिया, वियतनाम, चीन, लैटिन अमेरिकी देशों और नए शामिल श्रीलंका में यह दिख रहा है कि वामपंथी और प्रगतिशील सरकारें अभी भी दक्षिणपंथी सरकारों पर हावी हैं."

ये बयान है भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नए महासचिव मरियम एलेक्जेंडर बेबी का  (M A Baby) . अपने पहले भाषण में काफी उम्मीदों से भरे एम ए बेबी ने कहा कि पार्टी स्वीकार करती है कि भारत में वामपंथ का पतन हुआ है लेकिन आत्मनिरीक्षण और आत्मविश्लेषण के माध्यम से हमने जनता की ओर बढ़ने और उनसे सीखने और उन्हें शिक्षित करने का निर्णय लिया है.

सीपीएम के वरिष्ठ नेता मरियम एलेक्जेंडर बेबी (M A Baby) को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पार्टी का नया महासचिव चुना गया है. सीपीएम के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि पार्टी ने अपने महासचिव पद के लिए ईसाई समुदाय से आने वाले नेता को कमान सौंपी है. 71 वर्ष के एम ए बेबी के पास लंबा प्रशासनिक और संगठनात्मक अनुभव है. वे युवाओं को संगठित करने में माहिर रहे हैं, जो पार्टी के लिए नई ऊर्जा ला सकता है. 

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ई एम एस नम्बूदरीपाद के बाद मरियम एलेक्जेंडर बेबी केरल के दूसरे नेता हैं जिन्हें सीपीएम के चीफ की कमान मिली है. 

कोल्लम जिले के प्रक्कुलम में जन्मे, मरियम एलेक्जेंडर बेबी स्वयं को नास्तिक मानते हैं और पोलित ब्यूरो में एकमात्र ईसाई चेहरा हैं. वे वामपंथी पार्टी के सांस्कृतिक राजदूत भी हैं, जिन्होंने कोच्चि बिएनले कला प्रदर्शनी और दिल्ली में स्वरालय सांस्कृतिक संगठन शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 

बतौर सीपीएम के नए महासचिव एम ए बेबी के सामने महाचुनौतियां हैं. 

एमए बेबी को ऐसे समय में पार्टी की कमान मिली है जब भारत की सबसे पुरानी पार्टियों में से एक रही सीपीएम अब बंगाल, त्रिपुरा से सिमटकर मात्र केरल में बची रह गई है.

उनकी असली चुनौती अगले ही कुछ महीनों में केरल और बंगाल में होगी जहां विधानसभा चुनाव होने को हैं. ये दोनों ही वो राज्य है जहां लेफ्ट एक दमदार ताकत है. केरल में तो पी विजयन 10 सालों से सत्ता में हैं, और वे हैट्रिक की तैयारी कर रहे हैं वहीं बंगाल में लेफ्ट का 'लाल किला' 2011 से ही दरक रहा है. और अब वहां इसके अवशेष रह गए हैं. 

केरल में सीपीएम की प्रमुख टक्कर कांग्रेस से हैं. लेकिन क्रिश्चयन एमए बेबी को पार्टी का महासचिव बनाकर सीपीएम पोलित ब्यूरो ने भारत की पारंपरिक राजनीति करने की कोशिश की है और ईसाई मतदाताओं को लुभाने का काम किया है.

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इसके अलावा 2004 में  भारत की राजनीति में 44 सांसद के साथ एक अहम ताकत के रूप में रहने वाली सीपीएम अब भारत की राजनीति में अपनी धमक और ताकत की मौजूदगी दर्ज कराने के लिए लगातार संघर्ष कर रही है. 

2009 में सीपीएम की सीटें 16 रह गई, 2014 में ये आंकड़ा 9 पर पहुंच गया है. 2019 की मोदी आंधी में लेफ्ट मात्र 3 सीटें जीत सकी और 2024 में सीपीएम का आंकड़ा 4 रह गया है. ये भारत की राजनीति में पार्टी के घटते प्रभाव को दिखाता है. 

इन 4 सांसदों की भी अपनी कहानी है. इन 4 में से दो सीटें तमिलनाडु से हैं जहां पार्टी डीएमके की मदद से जीती हैं, जबकि एक सीट राजस्थान से है जहां पार्टी कांग्रेस की मदद से जीती है. 

सीपीएम अपने दम पर मात्र एक सीट केरल से जीती है. जबकि बंगाल और त्रिपुरा में पार्टी का खाता नील रहा है. 

 इतना ही नहीं एमए बेबी के सामने एक और चुनौती देश के सांस्कृतिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में पार्टी की गतिविधियों को पुनर्जीवित करना भी है. 

भारतीय जनता पार्टी और संघ को अपनी सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए एम ए बेबी ने कहा कि संघ परिवार और भाजपा सरकार  “नव-फासीवादी प्रवृत्ति” दिखा रही है और राज्यों की सत्ता पर अतिक्रमण कर रही है. उन्होंने कहा कि वे सीपीएम और वामपंथियों की स्वतंत्र ताकत का विस्तार करेंगे और स्थानीय स्तर पर लोगों के मुद्दे उठाएंगे. 
 

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