कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. राजनीतिक दल अपने-अपने चुनाव अभियान को धार देने में जुटे हैं. पार्टी के टिकटों के बंटवारे का सिलसिला भी शुरू हो गया है. ऐसे में एक और भी बहस शुरू हो गई है कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा? इसका जवाब निश्चित रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि चुनाव के बाद बहुमत का आंकड़ा किसे हासिल होता, लेकिन पार्टियों में संभावित उम्मीदवारों को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं.
जेडीएस में कुमारस्वामी एकलौते चेहरे
मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने अभी तक अपने-अपने पत्ते नहीं खोले हैं. जेडीयू में यह बात साफ है कि कुमारस्वामी ही मुख्यमंत्री पद के चेहरे होंगे. हालांकि, कर्नाटक की सियासी स्थिति ऐसी है, जिसमें तीसरे नंबर की पार्टी जेडीएस लग रही है. सरकार का नेतृत्व करने की उनकी एकमात्र उम्मीद विधानसभा के समीकरण पर निर्भर है, जिसमें किसी भी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिले और पिछली बार की तरह किंगमेकर के रूप में उभरे. इसके बावजूद सूबे में मुख्यमंत्री की संभावनाओं पर बहस चुनावी रण में बड़े मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती दिख रही है.
बीजेपी सीएम पर नहीं खोल रही पत्ते?
कर्नाटक में बीजेपी ने लगातार यह रुख अपना रखा है कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की अगुवाई में चुनाव में उतरेगी, लेकिन पार्टी ने यह भी स्टैंड लिया है कि नतीजे घोषित होने के बाद नेतृत्व के सवाल पर फैसला किया जाएगा. असम विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने इसी तरह का रुख अपनाया था और चुनाव तक सर्बानंद सोनोवाल को नेतृत्व में रखा था, पर जीत के बाद मुख्यमंत्री पद का ताज हिमंत बिस्वा सरमा के सिर सजा था. हाल ही में कुमारस्वामी ने कहा था कि आरएसएस के पंसदीदा प्रह्लाद जोशी हैं.
कर्नाटक में बीजेपी ने अपने कोर वोटबैंक लिंगायत समुदाय को बनाए रखने और वोक्कालिगा समुदाय को लुभाने के प्रयास को देखते हुए जोशी के नाम को उभारा है. जब बीजेपी ने येदियुरप्पा की जगह बोम्मई को सीएम बनाया था, तो स्पष्ट रूप से लिंगायत पर उसकी नजर थी. इस तरह कहा गया कि बोम्मई येदियुरप्पा द्वारा समर्थित भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की पसंद थे. तथ्य यह है कि अब बीजेपी नेतृत्व उन्हें सीएम चेहरे के रूप में घोषित करने में हिचकिचा रहा है. पिछले दो सालों में अपने नेतृत्व पर जोर देने या पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का विश्वास जीतने में बोम्मई सफल नहीं हो सके.
2018 में बीजेपी ने येदियुरप्पा पर चला था दांव
बता दें कि 2018 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव से एक साल से अधिक समय पहले येदियुरप्पा को पार्टी के सीएम चेहरे के रूप में घोषित कर दिया था. इस बार पार्टी ज्यादा सतर्क है और खुद को किसी नाम के साथ बंधन में नहीं बांधना चाहती. रणनीतिकारों का तर्क स्पष्ट है कि कर्नाटक चुनावों में जातिगत समीकरण को देखते हुए पार्टी लिंगायतों के समर्थन को बनाए रखना चाहती है, वोक्कालिगा समाज के साथ पिछड़ी जातियों के बीच अपना वोट आधार बढ़ाना है. दलितों और आदिवासियों तक अपना आधार बढ़ाना है, इसीलिए पार्टी ने किसी नेता को प्रोजेक्ट नहीं करना सुरक्षित समझा.
कर्नाटक बीजेपी की सियासत में येदियुरप्पा का मामला अलग था. वह एक प्रभावशाली लिंगायत नेता थे, उन्हें अपनी जाति से पूरा समर्थन और मान्यता प्राप्त थी जबकि मौजूदा मुख्यमंत्री बोम्मई के बारे में ऐसा कहना मुश्किल है. ऐसे में नेतृत्व के सवाल को ओपेन रखने और चुनाव जीतने की स्थिति में अपने पत्ते खोलने का दांव चल सकती है. देखा गया है कि अधिकांश भाजपा नेताओं को जिन्हें मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री के रूप में पेश किया गया है, उसमें सेंध लग जाती है. ऐसे में बीजेपी रणनीति के तहत दांव चल रही है और किसी भी चेहरे को सीएम प्रोजेक्ट करने के बजाय सामूहिक नेतृत्व के साथ उतर रही है.
बीजेपी भी सीएम चेहरे पर खामोश
कर्नाटक में कांग्रेस का मामला भी कुछ बीजेपी जैसा ही है. केपीसीसी अध्यक्ष डीके शिवकुमार और विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धारमैया खुले तौर पर अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. हालांकि, वे केंद्रीय नेतृत्व के फैसले का पालन करने का भी वादा करते हैं. कांग्रेस के दोनों नेता कर्नाटक के दो महत्वपूर्ण सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं, पार्टी इनका समर्थन अपने साथ बनाए रखना चाहती है. 2013 में कांग्रेस की जीत के लिए यह दांव महत्वपूर्ण था. 2018 में कांग्रेस के लिए इस इस वोट में गिरावट देखी गई. इस बार अच्छे प्रदर्शन के लिए कांग्रेस को इन वोटों की वापसी लगाए हुए हैं.
पिछले विधानसभा चुनावों में वोक्कालिगा समुदाय के वोटों में तीन गुना बंटवारा देखा गया है. इस बार कांग्रेस इन वोटों को एकमुश्त जुटाना चाहती है. सिद्धारमैया और शिव कुमार दोनों को अभियान में सक्रिय रखने और चुनाव के बाद के नेतृत्व की स्थिति को खुला रखने की आवश्यकता को स्पष्ट करता है. कांग्रेस में एक और सीएम चेहरे के दावेदार हैं. यह मल्लिकार्जुन खड़गे हैं, जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष है. हालांकि, उनकी राष्ट्रीय भूमिका को देखते हुए उनके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होने की संभावना नहीं है, लेकिन वे निश्चित रूप से चुनाव नतीजे के बाद अंतिम निर्णय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा?
(इनपुट: संदीप शास्त्री)